क़तआत (मुक्तक)
शकूर अनवर
1
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चाॅंद सूरज और बिजली में चमक तेरी ही है।
कहकशाॅं* में नूर* तेरा तू सितारों में रहा।
दश्तो दरिया में सराबोआबशारों में भी तू।
सब में तेरा हुस्न है तू इस्तआरों*में रहा।
2
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यहाॅं के लोग मुहज़्ज़ब* है अमन वाले हैं।
इसी को दुनिया में मुल्के अमान* कहते हैं।
यहीं पे बहती हैं गंगो जमन की धाराऍंं।
इसी ज़मीन को हिंदोस्तान कहते हैं।
3
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तुम अपने आप को यूॅं मुंतशिर* न होने दो।
कि दुशमनों का तुम्हीं पर ही वार हो जाये।
तुम्हारे पाॅंव में ज़ंजीर ग़म की पड़ जाये।
तुम्हारे सर पे मुसीबत सवार हो जाये।
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कहकशाॅं* सितारों की लड़ी आकाश गंगा
नूर* रोशनी
सराब*मरीचिका
आबशारों* झरनों
इस्तआरों*प्रतीकों
मुहज़्ज़ब* सु संस्कृत
मुल्के अमान* शांति का देश
मुंतशिर* बिखराव
शकूर अनवर
9460851271

















