
– विवेक कुमार मिश्र-

चाय की तरह ही होटल की चाय होती
कप प्लेट के साथ सजी और सुंदर प्याले में
अपने होने की उपस्थिति कुछ ज्यादा कराते हुए
चाय की छवि जो और गाढ़ा हो जाती
यहां जो चाय लाते उनके लिए
चाय और कॉफी में फर्क ज्यादा लगता
चाय पीते हुए आदमी सहज और सादे से दिखते
जिनके साथ कुछ सहज रहा था सकता
तो कुछ मन की भी कहा जा सकता
कुछ सुना और सुनाया जा सकता
वहीं जो काफी की मांग करते
वो कुछ अलग ही दिखते
काफी के साथ एक विशेष रूप आ जाता
काफी है तो जरूर कोई बड़े साहब होंगे
या कुछ बड़ा नखड़ा होगा
पर चाय के साथ कुछ अलग से नहीं होता
एक चाय जो घर की होती ,
एक चाय जो थड़ी की होती
और एक चाय जो होटल की होती
सब एक सहजता के छंद पर पांव रखते
ऐसे आ जाती हैं कि चाय है तो
संसार और सांसारिकता भी है ही
चाय को आप कभी भी किसी तरह से
बातों का जरिया बनाते ले सकते हैं
खाने से पहले भी ले लें तो चलेगा
और खाने के बाद भी लें तो चलेगा
बिना कुछ लिए भी चाय लें तो भी चलेगा
और सोने से पहले भी चाय लें लेते हैं
तो कोई दिक्कत नहीं
हर कोई अपने ही अंदाज में चाय लेता है
यह सहजता भला और कहां
कहीं भी किसी भी रंग रूप में
आप धड़ल्ले से चाय पी सकते हैं
और चाय पर संसार भर की चर्चा करते चलें
चाय के साथ दुनिया जहान …
अपनी गति में चलता ही रहता …।
– विवेक कुमार मिश्र
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)