हर तरफ़ ग़म के बगूले इक किरन उम्मीद की। ज़िन्दगी जैसे किसी सहरा में नख़लिस्तान है।।

shakoor anwar 00
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

सब्ज़* अब्यज़* ज़ाफ़रानी* रंग इसकी शान है।
ये जो परचम* है तिरंगा मेरा हिंदुस्तान है।।
*
धर्म को मज़हब को छोड़ा अब तो ये ईमान है।
झूट पर मबनी* बयाॅं* और हाथ में क़ुरआन है।।
*
जिसने हमको वरग़लाया* सीधी सच्ची राह से।
अपने अंदर ही तो वो बैठा हुआ शैतान है।।
*
ज़लज़ले सैलाब दंगे या सियासी वारदात।
ज़िन्दगी तो अब यहाँ बस मौत का फ़रमान* है।।
*
हर तरफ़ ग़म के बगूले इक किरन उम्मीद की।
ज़िन्दगी जैसे किसी सहरा में नख़लिस्तान है।।
*
है ग़म ए दुनिया ग़म ए जाना* ग़म ए फ़िक्रे मुआश*।
इतने सारे ग़म ग़मों के बीच में इक जान है।।
*
जाओ “अनवर” अब यहाँ सब मेहरबाॅं उन्क़ा* हुए।
अब कहाँ का आदमी और कौनसा इन्सान है।।
*

सब्ज़*हरा रंग
अब्यज़*सफ़ेद रंग
ज़ाफ़रानी* केसरिया रंग
परचम* ध्वज झंडा
मबनी*आधारित
बयाॅं*बयान
वरग़लाया* बहकाया
फ़रमान*आदेश
नख़लिस्तान*रेगिस्तान में हरा भरा ज़मीन का टुकड़ा जिसमें खजूर के पेड़ लगे हों
ग़म ए जाना* प्रेम का दुख
ग़म ए फ़िक्रे मुआश* रोज़ी रोजगार का दुख
उन्क़ा* दुर्लभ

शकूर अनवर
9460851271

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