
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

काम आसाॅं न समझ इश्क़ में जल जाने का।
हौसला चाहिये इस शग़्ल* में परवाने का।।
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तुझ से मंसूब* तमन्नाओं ने दम तोड़ दिया।
सिलसिला ख़त्म हुआ यूँ मेरे अफ़साने का।।
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मैकदे में तुझे किस बात का डर है वाइज़*।
उज़्र* महफ़ूज़ तेरे पास है समझाने का।।
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दिल पे शबखूॅं* जो पड़ा था वो बहुत याद आया।
आज अहसास हुआ फिर कहीं लुट जाने का ।।
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अब तो उरयानी* बहुत आम हुई जाती है।
अब ज़माना भी नहीं है कोई शरमाने का।।
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अब बुतों में कहाँ ख़्वाइश वो ख़ुदा बनने की।
अब तो नक़्शा ही बदल डाला सनम ख़ाने का।।
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जिस तरह जाल में फॅंसता हुआ पंछी “अनवर”।
बस वही हाल हुआ है तेरे दीवाने का।।
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शब्दार्थ:-
शग़्ल*काम
मंसूब*संबद्ध
वाइज़*उपदेशक
उज़्र*बहाना
महफ़ूज*सुरक्षित
शबखूॅं*रात के वक्त पड़ने वाला डाका
उरयानी*नग्नता
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शकूर अनवर
9460851271