
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

हवा में गेंद की मानिंद क्यूॅं उछलता है।
जो इस ज़मीन पे गिरता है वो सॅंभलता है।।
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मैं अपने तर्ज़े सुख़न* को भी क्यूॅं नहीं बदलूॅं।
ज़माना देखिए हर हाल में बदलता है।।
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ग़मो अलम मेरे दिल में क़याम*करते हैं।
हुज़ूमे यास* मेरे साथ-साथ चलता है।।
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बदल ही जायेंगी तारीकियाॅं* उजालों में।
हर एक रात के पर्दे से दिन निकलता है।।
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मैं इसलिए भी हूॅं मज़िल से बे ख़बर “अनवर”।
मेरे वजूद* से इक रास्ता निकलता है।।
”
तर्जे़ सुख़न* काव्य शैली
ग़मो अलम* दुख दर्द
क़याम* निवास करना
हुज़ूमे यास*मायूसी की भीड़
तारीकियाँ* अंधकार
वजूद* अस्तित्व
शकूर अनवर