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-डाँ आदित्य कुमार गुप्ता

किताबेंं देती हैं साथ
मित्रवत्
उस समय भी
जब किसी का नहीं होता साथ
जब अंदर का मन
छटपटाहाता है,
नहीं दिखाई देता कोई मार्ग
अंतर्द्वंद्व का सागर
घहराने लगता है चहुँ ओर
नहीं कोई ओर छोर।
समस्याओं का चक्रव्यूह
घेर लेता है जिन्दगी को
अभिमन्यु की तरह ।
तब ये किताबें ही
चक्र बनकर करती हैं सामना
आपद महारथियों से
और देती हैं सम्बल
लड़खड़ाते पैरों को ।
डाँ आदित्य कुमार गुप्ता
बी-38 मोती नगर विस्तार थेकड़ा रोड़ बोरखेड़़ा कोटा ।
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