
– विवेक कुमार मिश्र-

गांधीजी के विचार, केवल एक विचारधारा भर नहीं है बल्कि विचार की एक अविरल नदी है जहां अपने प्रयोग से गांधी के विचार व दर्शन को जीते हैं। गांधीजी के विचार को मानना मूलतः मनुष्यता के प्रयोग पर चलने की एक सहमति है। गांधी विचार को हिंसा के द्वारा, जिद् के साथ या किसी दबाव में स्वीकार नहीं किया जा सकता। उनके शब्दकोश में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। वे कहते हैं कि कायरता और हिंसा में से यदि किसी एक का चुनाव करना हो तो मैं सबसे पहले हिंसा का चुनाव करुंगा। पर गांधीजी का यह दृढ़ विश्वास था कि किसी भी समस्या का स्थाई समाधान हिंसा के रास्ते नहीं हो सकता। युद्ध से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता । युद्ध से हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते। किसी भी समस्या के समाधान के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है । बाहर भीतर के द्वंद में गांधीजी भीतर की समृद्धि पर जोर देते थे।
प्रेम की दुनिया कायम करनी होगी
बापू हमारे स्व पर भरोसा करते थे। मनुष्य की अंतरात्मा पर उनका अगाध विश्वास था। हमें अपने भीतर ही समस्या के समाधान को खोजने की कोशिश करनी चाहिए। आज जो भी संकट नजर आ रहे हैं वे सब हम या हमारे ही जैसे किसी मनुष्य द्वारा पैदा किया गया है। इसलिए समस्या के समाधान के उपाय भी हमारे भीतर ही होंगे। गांधीजी मूलतः मनुष्य की आंतरिक सुचिता पर बल देते थे। यह आंतरिक सुचिता ही जीवंत आध्यात्मिक मनुष्य की रचना करती है। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि मूल रूप से मनुष्य ठीक है और जो भी बिगाड़ होता है वह दिखावे व सभ्यता के आवरण का परिणाम है । आज मनुष्यता के सामने हिंसा एक बडी चुनौती है इससे निजात पाने के लिए प्रेम की दुनिया कायम करनी होगी – जहां एक दूसरे के विचार के प्रति सम्मान का भाव हो । किसी भी ताकत के बल पर सिद्धांत की स्थापना नहीं की जा सकती । यदि ऐसा होता तो सारे विचार सत्ता तंत्र के ही होते पर पूरी दुनिया में मनुष्यता के जो विचार हैं वे संतों व श्रृषि मनीषियों द्वारा खोजे गये हैं।
विचार को जीना पड़ता है
विचार को जीना पड़ता है। जब तक हम किसी विचार को जीवन में उतार नहीं सकते तब तक उसे दूसरों को देने कहने या प्रयोग करने की सलाह देने का कोई अर्थ नहीं है। किसी भी विचार के प्रतिपादन का तब तक कोई अर्थ नहीं जब तक कि हम उसका जीवन में प्रयोग न कर सके। जहा तक गांधीजी के विचार का सवाल है तो वे स्वयं सबसे पहले अपने विचारों की परीक्षा करते या यों कहे कि सबसे पहले प्रयोग करते फिर सूत्र रूप में समाज को विचार सौंपते। यह हो सकता है कि उनके विचार पर चलने में कठिनाई हो पर मनुष्यता के संरक्षण के लिए उनके विचार ही प्रासंगिक हैं। वे स्वयं इन विचारों का प्रयोग कर इनकी सफलता को स्थापित कर चुके थे। उनके सिद्धांत सहज मन के सिद्धांत थे जिसे आचरण में ढ़ालने की जरूरत है। इसे मन से मानना पड़ता है। आज के संकट में सबसे बड़ा संकट है कि मनुष्य मशीनों के बीच घिर गया है। मनुष्य जब मशीनों के बस में होता है तो वह खोखला हो जाता है। वह एक तरह से मशीन का दास हो जाता है। मशीन पर यह निरर्भरता ही मनुष्यता की एक तरह से सबसे बड़ी दुश्मन है । मशीन की उतनी ही आवश्यकता होनी चाहिए जितने से मनुष्य के जीवन यापन में कोई दिक्कत न आवे।
जहां आवश्यक हो वहीं मशीन का प्रयोग हो
मनुष्य के लिए मशीन है न कि मशीन के लिए मनुष्य । श्रम से दूर हुए मनुष्य को पुनः श्रम से जोड़ने के लिए उसके भीतर गांधी विचार के प्रति सम्मान का भाव व अपने उपर विश्वास पैदा करने की जरूरत है। श्रम के साथ जुड़कर ही सही मायने में मनुष्य न केवल मानवीय सभ्यता को बचाने का उद्योग करेगा वल्कि प्रकृति की भी रक्षा करेगा। आज की सभ्यता में हिंसा व मशीनों ने जिस तरह से जगह बनाई है उसका परिणाम सबसे ज्यादा मनुष्य के लालच व प्रकृति के शोषण में दिखलाई पड़ता है। सारे महानगर मशीन व मनुष्य के लालच को सबसे ज्यादा भोग रहे हैं। यदि मानवीय सभ्यता किसी उपाय से बचेगी तो वह जरूरत भर के उपयोग से न कि अबाध शोषण से। अब मानवता के सामने वह समय आ गया है कि वह मशीन व हिंसा के खिलाफ चले। जहां आवश्यक हो वहीं मशीन का प्रयोग हो न कि दिखावे के लिए।
अहिंसा व सत्य पर जोर
गांधीजी के विचार पर चलकर ही सही मायने में सभ्यता व मानवीय सभ्यता का निर्माण किया जा सकता है। मशीन की जरूरत हो पर हम मशीन के दास न हों। मनुष्य की स्वतंत्रता व स्व की दुनिया पर सबसे ज्यादा जोर गांधीजी देते थे। वे बार – बार अपने प्रयोग व सिद्धांत में अहिंसा व सत्य पर जोर देते हैं । उनके विचार मूलतः इस मिट्टी के प्रति एक विनम्र प्रयोग है । गांधी विचार को मानने में कोई जल्दबाजी नहीं है । वह एक अवस्था है जिसे बहुत आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता पर मनुष्यता के संरक्षण के लिए इसके अलावा कोई और विकल्प भी नहीं है । गांधी विचार मूलतः जीवन के प्रयोग है जिसे पृथ्वी पर आखिरी मनुष्य के जिन्दा रहने तक एक जरूरत के रूप में महसूस किया जायेगा।
गांधीजी सूत्रों पर मानव जाति को चलने की जरूरत
गांधीजी के विचारों के साथ चलना कोई आसान कार्य नहीं है। वे पूरे जीवन भर जिस किसी सिद्धांत को अभिव्यक्त किया उस सिद्धांत के प्रति उनके स्वयं के प्रयोग हैं। अपने जीवन के व्यापक अनुभव व प्रयोग से एक सिद्धांत को रचकर गांधीजी हम सबके लिए कुछ सूत्र छोड़कर चले जाते हैं। इन सूत्रों पर मानव जाति को चलने की जरूरत है । किसी भी विचार को किसी एक परिधि में या एक देश – काल में बांधा नहीं जा सकता । विचार जब इस पृथ्वी पर आते हैं तो इस पृथ्वी के साथ लम्बी यात्रा करते हैं । हम सब इस यात्रा के एक सह यात्री भर हैं । गांधीजी के लिए कोई भी विचार अंतिम सत्य नहीं है – सबसे पहले विचार को अपने प्रयोग से प्रमाणित करने की जरूरत है फिर उस सिद्धांत पर सबसे पहले वे खुद चलते हैं फिर दूसरों को चलने की राय देते । उनकी दुनिया में केवल वहीं विचार चल सकते जिसे प्रयोग करके स्थापित किया गया हो । कोरा विचार या केवल सिद्धांत की बात उनके यहां नहीं थी । यहां सब कुछ जीवन से निर्धारित हो रहा था । गांधीजी विचार की स्वतंत्रता के हिमायती थे । वे विचार को तब तक स्वीकार नहीं करते जब तक कि प्रयोग द्वारा उसे सिद्ध न कर लिए हों । सत्य , अहिंसा , सत्याग्रह, अपरिग्रह , अस्तेय मूलतः भारतीय सभ्यता व संस्कृति व जीवन प्रणाली के अंग हैं जिसे गांधीजी आधुनिक संदर्भों में प्रयोग करते हैं ।
(F-9 , समृद्धि नगर स्पेशल, बोरखेड़ा, बारां रोड, कोटा – 324002)