
-सुनील कुमार Sunil Kumar
फिलीस्तीन के गाजा पर इजराइली हमलों ने इस धरती पर कई तरह के मॉडल पेश किए हैं। जो धर्म को मानने वाले लोग हैं, उनके लिए गाजा आज जहन्नुम, नर्क, या ‘लिविंग हेल’ बन चुका है। और यह कहने वाले हम नहीं हैं, ये भाषा संयुक्त राष्ट्र संघ, या कि योरप के दो दर्जन से अधिक देशों की है। ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा जैसे बहुत से देशों ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ बताया है, और कहा है कि अगर इजराइल की फौज का गाजा पर यह मानव संहार इसी तरह जारी रहा तो वे इजराइल पर प्रतिबंध लगाएंगे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने लीबिया में गाजा की स्थिति को हिटलर के नाजी यातना शिविरों जैसा कहा। और अभी इसी महीने इजराइल के एक पूर्व प्रधानमंत्री एहुद ओल्मर्ट ने कहा कि इजराइल गाजा में जिस तरह की फिलीस्तीनी बस्ती बसाने की बात कर रहा है, वह एक नस्ल के सफाए, और यातना शिविर जैसा होगा। उन्होंने कहा कि इजराइल की ऐसी योजना मानवता के खिलाफ जुर्म होगी। उन्होंने कहा कि हमास के इजराइल पर 7 अक्टूबर 2023 के हमले के बाद आत्मरक्षा के नाम पर इजराइल का जो हमला शुरू हुआ था, वह अब युद्ध अपराधों में बदल गया है। ब्राजील, अर्जेंटीना, तुर्की ने अलग-अलग शब्दों में यह कहा है कि हिटलर की आत्मा आज इजराइल में जिंदा है, और इनमें कोई फर्क नहीं है। ट्यूनिशिया के राष्ट्रपति ने कहा कि जर्मनी में यहूदियों के जनसंहार के समय जिन लोगों ने यहूदियों को बचाया था, वे लोग आज गाजा में यहूदियों के वैसे ही जुर्म देख रहे हैं।
हमने पिछले कुछ महीनों से फिलीस्तीन के मुद्दे पर लिखना बंद कर रखा था। ऐसा भी नहीं कि पिछले अमरीकी राष्ट्रपति ने फिलीस्तीन के मामले में कोई रहमदिली दिखाई हो, और अब अमरीका का जल्लाद राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प कोई नई ज्यादती कर रहा हो। ट्रम्प की बकवास से परे, पिछला अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी, जितनी ट्यूब मरहम फिलीस्तीन भेजता था, हजार-हजार किलो के उतने बम इजराइल को देता था, गाजा पर गिराने के लिए। ट्रम्प तो रिपब्लिकन पार्टी का है जो कि फिलीस्तीन विरोधी, मुस्लिम विरोधी मानी जाती है, लेकिन इसके मुकाबले थोड़ी सी अधिक इंसानियत की नीतियों वाली डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन का हाल भी कोई अच्छा नहीं था। यही वजह है कि फिलीस्तीन में अब तक 60 हजार से अधिक लोग इजराइली हमलों में मारे जा चुके हैं, कुछ इजराइली विश्लेषकों और पत्रकारों का यह भी मानना है कि यह संख्या बहुत अधिक हो सकती है, एक लाख तक। कुछ और जानकारों का यह मानना है कि अगर भूख और कुपोषण से मरने वाली मौतों को जोड़ लिया जाए, तो यह संख्या सवा लाख या डेढ़ लाख कितनी भी हो सकती है।
धरती के नर्क बने हुए, दुनिया का सबसे बड़ा मलबा बने हुए, और दुनिया की सबसे बड़ी कब्रगाह बने हुए फिलीस्तीन में आज भुखमरी के करीब पहुंचे बच्चे घूरों पर ढूंढ-ढूंढकर, कुछ मिल जाए तो, कुछ खा रहे हैं, लेकिन इसकी भी गुंजाइश बहुत कम रह गई है। एक पूरी नस्ल, और पूरे देश की यह हालत देखकर दुनिया के बहुत से देश आज चुप हैं, और बहुत से देश खुलकर इजराइल के साथ हैं। हिटलर ऊपर कहीं बैठा, या जमीन के नीचे कहीं दफन, इजराइल को रश्क की नजरों से देख रहा होगा कि यहूदियों को मारते हुए दुनिया का इतना समर्थन तो उसे भी नहीं मिला था। आज दुनिया की सबसे बड़ी तानाशाह-ताकत, अमरीका जिस हद तक इजराइली जनसंहार के साथ है, और संयुक्त राष्ट्र जिस हद तक बेबस है, उसे देखते हुए हमें पिछले कुछ महीनों से कुछ भी लिखना फिजूल लग रहा था। अब तो धीरे-धीरे गाजा से आने वाली खबरों को पढऩा और सुनना भी फिजूल का लग रहा है कि दुनिया के नागरिक कोई भी अधिकार और कोई भी ताकत अब नहीं रखते हैं, अमरीका और इजराइल के मिलेजुले जनसंहार को रोकने के लिए।
यह नौबत फिलीस्तीन जैसे छोटे मुल्क के खत्म हो जाने, या फिलीस्तीनियों की नस्ल के खत्म हो जाने से भी अधिक खतरनाक नौबत है। पिछली कुछ सदियों में धीरे-धीरे इस दुनिया ने सभ्यता की जितनी मंजिलें पार की थीं, अंतरराष्ट्रीय समझौते किए थे, नीतियां बनाई थीं, मानवाधिकारों की फेहरिस्त तैयार की थी, युद्ध के नियम बनाए थे, वे सब खत्म होने की शुरूआत गाजा में हो चुकी है। यह सभ्यता के अंत की शुरूआत है। इसे सिर्फ एक छोटे मुल्क का खात्मा न माना जाए, इसे पूरी दुनिया में न सिर्फ लोकतंत्र, न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय समझ, बल्कि मानवीय सभ्यता के अंत की शुरूआत भी मानना ठीक होगा जो कि कुछ सदियों के लोकतांत्रिक इतिहास के भी हजारों बरस पहले शुरू हुई है। गाजा अपने आपमें उतना बड़ा हादसा नहीं है, जितना बड़ा हादसा सभ्यता के अंत का आरंभ है। जब धरती से सभ्यता खत्म होने का सिलसिला शुरू हुआ है, तो उसके महज गाजा तक रह जाने की उम्मीद करना गलत होगा। अब डोनल्ड ट्रम्प सरीखे अमरीकी इतिहास के सबसे कमीने कारोबारी राष्ट्रपति को यह कहने का हौसला मिल चुका है कि वह पूरे के पूरे गाजा को एक रियल स्टेट प्रोजेक्ट बनाएगा, और अरब दुनिया में एक नई सैरगाह पेश करेगा। अमरीकी राष्ट्रपति को यह कहने का हौसला है कि अड़ोस-पड़ोस के देश फिलीस्तीनियों को बसाएं।
यह सिलसिला कल्पना से परे है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं, और अंतरराष्ट्रीय अदालतें मिलकर भी गाजा में भुखमरी को नहीं रोक पा रही हैं, और वहां पर खाने के लिए लगी भीड़ पर इजराइली फौज के बेहिसाब और नाजायज हमलों में एक-एक दिन में दर्जनों भूखे मारे जा रहे हैं, और दुनिया अपने-अपने घर बैठी खा रही है। जो मुस्लिम देश इसी तरह अरब दुनिया में अपनी आसमान छूती इमारतों में ऐश कर रहे हैं, वे अपने ही मुस्लिम भाई-बहनों के फिलीस्तीन को इस तरह भूखा मरते देख रहे हैं। न तो कोई ब्रदरहुड कहीं रह गया, न कोई मजहब का साथ रह गया, और न ही दुनिया की इस सबसे बड़ी बेइंसाफी के खिलाफ अल्लाह की कोई नसीहत इन मुस्लिम देशों के काम आ रही है। गाजा इस बात का सुबूत है कि हर किस्म के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय, धार्मिक-नैतिक मॉडल यहां चकनाचूर हो गए हैं, और भूख से बिलखते, दम तोड़ते बच्चों की तस्वीरों, खबरों, और आंकड़ों के बीच सोने के डायनिंग टेबिलों पर लोग बिरयानी खा रहे हैं, उनमें से किसी को कोई धार्मिक या नैतिक बात नहीं झकझोर रही है। जब रईसों से लेकर तानाशाहों तक हर किसी का यह हाल है, तो हमें इस मुद्दे पर कुछ भी लिखना फिजूल लग रहा था, लेकिन अब लग रहा है कि इतिहास तो किसी तरह दर्ज होना ही चाहिए। आज नजारा ऐसा है कि हिटलर ने यहूदियों के साथ जो कुछ किया था, यहूदी, यानी इजराइली वही कुछ फिलीस्तीन के साथ कर रहे हैं। इतिहास के बारे में कहा जाता है कि वह अपने को दोहराता है, यह इतिहास तो एक सदी के भीतर अपने आपको इस बुरी तरह दोहरा रहा है कि लोग, खुद इजराइल के बड़े-बड़े लेखक-पत्रकार, वहां के पूर्व प्रधानमंत्री इजराइल के किए हुए को हिटलर के किए हुए के बराबर मान रहे हैं।
विश्व में आज महान नेताओं की सिर्फ अस्थियां बची हैं, या उनकी कब्रें बची हैं। यह विश्व सभ्यता की विरासत नहीं रह गया है, यह विश्व उस जंगल के कानून पर चल रहा है जहां सबसे अधिक ताकतवर का ही राज होता है। इस विश्व ने सभ्यता की समझ को इस बुरी हद तक खो दिया है कि आने वाली पीढिय़ां इस बात को याद रखेंगी कि जब गाजा में एक नस्लवादी जनसंहार चल रहा था, बाकी दुनिया मजे से जी रही थी, कुछ लोग जुबानी जमाखर्च कर रहे थे, और अधिकतर लोग तो होठों को सिलकर बैठे थे। इतिहास हर बयान को दर्ज करता है, खासकर चुप्पी को वह कुछ बड़े अक्षरों में दर्ज करता है।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)