
-कृतिका शर्मा-

(अध्यापिका और एंकर)
भागदौड़ भरी जिंदगी में शायद हम यह भूल गए हैं कि “मानव ने तकनीकों का निर्माण किया है ना कि तकनिको ने मानव का” । और इन सब का गहरा असर हमें बच्चों पर देखने को मिलता है हाल कुछ ऐसा है कि हमारे बच्चों पर हमसे ज्यादा अधिकार इन मोबाइल का होता जा रहा है…| हम बच्चों को स्मार्ट वर्क सिखाने के चक्कर में शायद उनकी मासूमियत, उनका बचपन जाने अनजाने में उनसे छीनते जा रहे हैं।
एसोचैम के चेयरमैन डॉक्टर बी. के. राव के अनुसार स्कूली बच्चों के लिए 8 से 9 घंटे की नींद पूरी होना जरूरी है लेकिन गैजेट्स की आदि हो चुके बच्चे बड़ी मुश्किल से 5 से 6 घंटे की ही नहीं निकाल पाते हैं इसकी वजह से उनकी सेहत पर भी इसका प्रभाव होता है और वह पढ़ाई पर अपना पूरा ध्यान नहीं दे पाते।
साथ ही उनकी शोध के अनुसार यह पता चला है कि जो बच्चे ज्यादातर अपने स्मार्टफोन या गैजेट्स का उपयोग करते हैं वह अपने आसपास होने वाली एक्टिविटी से दूर होते चले जाते हैं, वक्त से पहले बड़े मिच्योर और समझदार हो जाते हैं।
जैसे हमने अपने बचपन को जिया है इंजॉय किया है उसका 40% भी वह नहीं कर पाते समय की बचत, दुनिया के कंपटीशन के चक्कर में हमने खुद ने ही कहीं ना कहीं अपने बच्चों का बचपन छीन लिया है।
भारत की चाइल्ड स्पेशलिस्ट का कहना है कि उनके शोध के अनुसार उनके पास कई बच्चों के ऐसे केसेस आते हैं जिसमें अधिकतर बच्चे मोबाइल एडिक्ट होते हैं। उनका कहना है कि इसी वजह से शायद उन्हें किसी की जरूरत नहीं है मोबाइल से ही उनके हर प्रश्न का उत्तर उन्हें मिल जाता है और कहीं ना कहीं वह वीडियो गेम गेम्स के एडिक्ट हो जाते हैं और ना चाहते हुए भी उन्हें ऐसी चीजों की नॉलेज मिल जाती है जो उनके लिए उचित नहीं है।