
-आर.के. सिन्हा-
मधु लिमये उन नेताओं में से थे जिनसे कुछ बिन्दुओं पर मतभेद होने पर भी आप उनका सम्मान करना नहीं छोड़ पाते। उनके ज्ञान और सादगी से आप बिन प्रभावित हुए नहीं रह सकते थे । वे एक उद्भट् विद्वान, चिंतक, देश विदेश के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, ज्
मधु लिमये मूल रूप से पुणे के थे। एक मराठी व्यक्ति का बिहार से चार बार चुनाव जीतना अपने आप में अनोखा है। राज्यसभा में ऐसे कई दूसरे नेता हुए हैं, लेकिन लोकसभा में ऐसे उदाहरण कम ही देखे गए हैं। लिमये का बचपन महाराष्ट्र में बीता, उनकी पूरी पढ़ाई भी वहीं से हुई, वो महाराष्ट्र की राजनीति में भी सक्रिय थे। लिमये समाजवादी विचारधारा से आते थे और गोवा लिबरेशन जैसे अनेक आंदोलनों का भी हिस्सा बने थे। लेकिन जब राष्ट्रीय राजनीति में उन्होंने क़दम रखा तो चुनाव लड़ने के लिए बिहार ही चुना। पहली बार वो 1964 में मुंगेर से उप चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। 1964 में, सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ और यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी बनी थी। मधु लिमये पहली बार यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर लोकसभा गए थे। इस जीत के बाद, वह यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी बने। मधु लिमये के दिल में बसता था बिहार जहाँ से लोकसभा में पहुंचे थे। उन्हें बिहार के समाज और संस्कृति की गहरी समझ थी। मधु लिमये ने एक बार बताया था कि गर्मियों में बिहारियों को लगातार मीठे आम मिल जाएं तो वह तृप्त हो जाते है। इसी क्रम में वे जर्दालु आम के स्वाद पर बोले। उन्होंने बताया था कि जर्दालु आम का स्वाद और खुशबू अद्वितीय होती है।
स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा, तीन विदेशी साम्राज्यों ब्रिटिश, पुर्तगाली, नेपाली हुकूमत की बर्बरता के खिलाफ लड़कपन से ही जूझने वाले मधु लिमये सच्चे गांधीवादी थे। उन्हें 1940 में विश्व युद्ध के समय 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ भाषण देने के कारण एक साल के सश्रम कारावास की सजा मिली। भारत छोड़ो आंदोलन मे 1943 में गिरफ्तार होने पर 1945 में जेल से छूटे। 1955 में गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लेने के कारण 12 वर्ष की सजा सुनाई गई। 1958 में सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष बने। उन्होंने नागरिक आजादी के हक में, गैर बराबरी, जुल्म, अन्याय, जातिवाद
भारतीय संसद के इतिहास में मधु जी ने एक और ऐतिहासिक कार्य 1975 में आपातकाल लागू होने के बाद संसद की अवधि 5 साल के स्थान पर 6 साल करने को असंवैधानिक घोषित करते हुए, संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
वे सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी, त्याग, सादगी मितव्ययिता के उच्च मानदंड, के प्रतीक भी हैं। उन्होंने समाजवादी दर्शन, सिद्धांत, विचारों, नीति
मधु जी के सरकारी निवास में भारत के तीन-तीन प्रधानमंत्री बने नेता चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह और चंद्रशेखर अक्सर सलाह मशवरा करने के लिए आते थे। मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सं
मधु जी के घर में सरकारी बैंत का फर्नीचर बिछा रहता था। उनके पास एक पुराने किस्म का एक टेप रिकॉर्डर था। आनंद के हिलोरे लेने के लिए वे अपने मनपसंद कैसेट को लगाकर शास्त्रीय संगीत सुनते थे।
कई बार उनके मित्र, अनुयायी उनसे शिकायत करते कि मधु जी बड़ी गर्मी है, हम आपके लिए एयर कंडीशन ला देते हैं, फ्रिज भिजवा देते हैं। परंतु मधु लिमये की प्यास और चाहत कुछ अलग ही थी। उन्होंने लिखा है “शेक्सपियर की सभी रचनाओं, महाभारत और ग्रीक दुखांत रचनाओं के साथ मुझे एकांत आजीवन कारावास भुगतने में खुशी होगी। और अगर जीवन के अंत तक मुझे यह अवसर नहीं मिला तो संत ज्ञानेश्वर की रचनाओं को पढ़ने की मेरी प्यास अतृप्त रहेगी। बहरहाल, मधु जी के संघ की सोच से कुछ बिन्दुओं पर मतभेद थे। संघ की भी उनसे कुछ विषयों पर असहमति थी। लोकतंत्र में यह सब सामान्य है और इसका स्वागत होना चाहिए। पर मधु लिमये भारत की राजनीति को अपनी ईमानदारी, ज्ञान और सादगी से प्रभावित करते रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)