
-देशबन्धु में संपादकीय
लगातार कई दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश ने जम्मू क्षेत्र में तबाही मचा दी है। मंगलवार को वैष्णो देवी मंदिर के मार्ग पर भूस्खलन में 32 लोगों की मौत हो गई है, ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है, क्योंकि कई लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका है। प्रशासन के मुताबिक लगातार और भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन में कम से कम 20 लोग घायल हुए हैं, जिनका विभिन्न अस्पतालों में इलाज हो रहा है। गौरतलब है कि मंगलवार को दोपहर करीब 3 बजे भूस्खलन हुआ और पहाड़ की ढलान से पत्थर, शिलाखंड और चट्टानें एकदम से नीचे गिरने लगीं। इससे बेखबर लोग इसकी चपेट में आ गए। घटना के बाद वैष्णो देवी मंदिर की तीर्थयात्रा स्थगित कर दी गई।
वैष्णो देवी मंदिर तक जाने के दो मार्ग हैं, जिसमें हिमकोटि पैदल मार्ग पर सुबह से यात्रा स्थगित कर दी गई थी, जबकि पुराने मार्ग पर दोपहर डेढ़ बजे तक यात्रा जारी थी। अब भारी बारिश के अंदेशे के बीच यात्रा अगले आदेश तक स्थगित करने का फ़ैसला किया गया है। हालांकि यही समझ पहले दिखाई गई होती तो शायद 32 लोग अकाल मौत न मरते। जब लगातार तेज बारिश हो रही थी तो यात्रा जारी रखने की लापरवाही क्यों बरती गई। पहाड़ी इलाकों में बारिश का कहर लगातार बरप रहा है, फिर भी सरकार इस तरफ से सचेत क्यों नहीं हो रही, यह समझ से परे है। इससे पहले 14 अगस्त को किश्तवाड़ जिले के मचैल माता मंदिर के रास्ते में पड़ने वाले आखिरी गांव चशोती में बादल फटने के कारण अचानक बाढ़ आ गई, जिसमें कम से कम 65 लोगों की मौत हो गई और भीषण तबाही का मंजर सामने आया। मरने वालों में ज्यादातर तीर्थयात्री थे। इस प्राकृतिक आपदा में 100 से अधिक लोग घायल हो गये और 32 लोग अब भी लापता हैं।
जम्मू-कश्मीर के अलावा हिमाचल प्रदेश और पंजाब भी बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में हैं। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में पिछले महीने ही बाढ़ से काफी तबाही हुई थी। अब एक बार फिर हालात गंभीर हैं। भारी बारिश के कारण प्रदेश के 8 जिलों में सभी शिक्षण संस्थानों में छुट्टी कर दी हई है। वहीं ब्यास नदी का जलस्तर अचानक इतना बढ़ गया कि नदी चंडीगढ़-मनाली नेशनल हाईवे पर बहने लगी। मनाली के बाहंग में कुछ दुकानें, घर और शेरे-ए-पंजाब होटल नदी में बह गए। फिलहाल नदियों का जलस्तर बढ़ने से मंडी, कांगड़ा, चंबा और कुल्लू में रेड अलर्ट जारी किया गया है, चंबा में मणिमहेश यात्रा रोक दी गई है। लेकिन इससे पहले मणिमहेश यात्रा के दौरान ऑक्सीजन की कमी के चलते पंजाब के चार श्रद्धालुओं की मौत भी हो गई। आंकड़े बताते हैं कि जून से अगस्त तक बारिश से जुड़ी घटनाओं में 156 लोगों की मौत हो गई है और 38 लापता हैं। जबकि राज्य को 2,394 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
वहीं मूसलाधार बारिश के बीच लाहौल-स्पीति, शिंकुला दर्रा, बारालाचा, खरदूंगला और रोहतांग जैसे ऊंचाई वाले इलाकों में सीजन की पहली बर्फबारी हुई है। शिंकुला दर्रे में अब तक करीब आठ इंच बर्फ गिर चुकी है। इस बर्फबारी को देखते हुए इलाके में शीतलहर का असर बढ़ गया है। बता दें कि हिमाचल प्रदेश में अगस्त में अब तक सामान्य से 44 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश के कारण पंजाब की नदियां उफान पर हैं। पंजाब के कई जिलों में बाढ़ की स्थिति बन गई है। भारी बारिश और बाढ़ के कारण गुरदासपुर के जवाहर नवोदय विद्यालय के 400 छात्र और 40 स्टाफ स्कूल परिसर में ही फंस गए। बाढ़ का पानी निचली मंजिल की कक्षाओं में भर गया। आरोप है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के दौरे के कारण प्रशासनिक अधिकारी आवभगत की तैयारियों में फंसे रहे और बच्चे स्कूल में परेशान होते रहे। इस पर अभिभावकों ने नाराजगी जाहिर की। अब तीन दिन तक स्कूल बंद रखने का फ़ैसला लिया गया है।
जम्मू-कश्मीर से पंजाब तक या उससे पहले महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, दिल्ली, बिहार, हरियाणा, असम इन तमाम राज्यों में बाढ़, बारिश, भूस्खलन आदि की जितनी भी घटनाएं अभी हो रही हैं, या अतीत में हुई हैं, उनमें फौरी राहत के उपाय के अलावा और कोई गंभीर कदम नहीं उठाया जा रहा है, ताकि भविष्य में सुरक्षा का इँतजाम हो। इसे अब प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि मानव निर्मित आपदा की तरह मानकर दोषियों की शिनाख़्त करने की जरूरत है, तभी ठोस समाधान निकल पाएगा या असल मायनों में बचाव कार्य हो पाएगा। हर बार बाढ़ या भू स्खलन के बाद लोगों को प्रभावित स्थानों से निकालने को अगर हमने बचाव कार्य माना तो फिर यह भी मान लेना चाहिए कि हम ऐसी आपदाओं को निमंत्रण दे रहे हैं।
याद रहे कि बाढ़ हो या बारिश इनकी चपेट में मंत्री, अधिकारी या सरकार में फ़ैसले लेने वाले लोग नहीं आते हैं, उनके तो आरामगाहों में बारिश से बचने के लिए खूब जगह है और वो ऐसे मौसम का लुत्फ़ उठाते हैं। सरकारों को इस बात का दर्द नहीं है कि बारिश में कैसे बसी-बसायी जिंदगियां बह जाती हैं। मुख्यमंत्रियों को तो बाढ़ या बारिश का मुआयना करना होता है तो वे हेलीकॉप्टर पर सवार होते हैं। असली दिक्कत तो आम जनता को होती है। जिनकी अकाल मौत होती है, उनके पीछे पूरा परिवार प्रभावित होता है। मौत से बच भी गये तो विस्थापन का दंश सहना पड़ता है। अपने घरों को छोड़कर राहत शिविरों में शरणार्थियों की तरह रहना पड़ता है। जतन से संजोई गृहस्थी उजड़ जाती है, तो कितनी तकलीफ़ होती है, इसे सरकार नहीं समझ सकती। न ही सरकार प्रकृति के इशारे को समझना चाहती है।
बार-बार की बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं बता रही हैं कि पहाड़ों को काटकर या नदी की छाती कुचलकर वहां व्यावसायिक गतिविधियां करना मौत को दावत देने के समान है। प्रकृति खुलकर संकेत दे रही है कि इंसान संभल जाये और जंगलों का, खदानों का अंधाधुंध दोहन बंद करे। इस संकेत को सरकार समझे या अनदेखा करे, लेकिन जनता को जागना होगा, क्योंकि उसकी जान का ही सवाल है।