
-देशबन्धु में संपादकीय
नक्सलवाद को खत्म करने के तमाम दावों के बीच छत्तीसगढ़ की धरती एक बार फिर लहूलुहान हुई है। सोमवार को बस्तर में बीजापुर जिले में नक्सलियों ने फिर एक बड़ी घटना को अंजाम दिया है। एक ऑपरेशन से लौट रहे जिला रिज़र्व गार्ड के एक वाहन को आईईडी का इस्तेमाल कर नक्सलियों ने उड़ा दिया। जिला रिज़र्व गार्ड या डीआरजी, राज्य पुलिस की एक इकाई है और इसमें ज्यादातर स्थानीय आदिवासियों और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को भर्ती किया जाता है। यानी कहा जा सकता है कि नक्सलियों ने इस बार अपने ही पूर्व साथियों और उन निर्दोष स्थानीय आदिवासियों को निशाने पर लिया है, जो दो पाटों में फंसे हुए हैं। सुरक्षा और जांच एजेंसियों की निगाहें उन पर रहती हैं और वहीं नक्सली उन पर संदेह की निगाह रखते हैं।
सोमवार को हुए नक्सली हमले में 8 जवान और एक ड्राइवर की शहादत हुई है। हमला बीजापुर जिले के बेदरे-कुटरू रोड पर हुआ। बताया जा रहा है कि विस्फोट इतना ज़बरदस्त था कि जवानों का वाहन कई मीटर ऊपर उछल गया और ज़मीन में 8-10 फीट गहरा गड्ढा बन गया। धमाके के बाद शव और गाड़ी के टुकड़े 20 फीट के दायरे में बिखर गए। अधिकारियों का कहना है कि आईईडी काफ़ी पुराना था और उस पर घास उग आई थी। विस्फोट में उड़े बारुद की गंध अभी हवा में बिखरी हुई है और इधर घटना पर घिसी-पिटी प्रतिक्रियाओं और आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु हो चुका है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने शहीदों के परिवारों के प्रति संवेदना जताते हुए माओवादियों के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का संकल्प लिया। साय ने कहा, ‘नक्सली हताशा में कायरतापूर्ण कृत्य कर रहे हैं। वे बस्तर में नक्सल विरोधी अभियानों से निराश हैं। जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, नक्सलवाद को खत्म करने के लिए हमारी लड़ाई मजबूती से जारी रहेगी। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘बीजापुर (छत्तीसगढ़) में आईईडी ब्लास्ट में डीआरजी के जवानों को खोने की सूचना से अत्यंत दुखी हूं। वीर जवानों के परिजनों के प्रति गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं। इस दुख को शब्दों में व्यक्त कर पाना असंभव है, लेकिन मैं विश्वास दिलाता हूं कि हमारे जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। हम मार्च 2026 तक भारत की भूमि से नक्सलवाद को समाप्त करके ही रहेंगे।’
इससे पहले जब 3 अप्रैल 2021 को बीजापुर-सुकमा जिले की सीमा पर नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में 21 जवानों की शहादत हुई थी, तब भी श्री शाह ने कहा था कि नक्सलियों को सही वक्त आने पर मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। पिछले साल अमित शाह ने मार्च 2026 तक नक्सलियों के सफाए का दावा किया था। अच्छी बात है कि वे अब भी अपने इस दावे पर कायम हैं। हालांकि इससे पहले 2018 में तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अगले तीन सालों यानी 2021 तक नक्सलवाद को खत्म करने के दावे किए थे और उनसे पहले यूपीए सरकार में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने 2010 में दावा किया था कि 2013 तक नक्सलवाद को खत्म कर देंगे। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने छत्तीसगढ़ में ही चुनाव प्रचार के दौरान अप्रैल 2024 में कहा था कि वे नक्सलवाद को जड़ से खत्म कर देंगे।
हर नक्सल घटना को कायरतापूर्ण हरकत करार देते हुए मुंहतोड़ जवाब देने और नक्सलियों को ख़त्म करने के दावों की सूची तैयार की जाए तो वह काफ़ी लंबी बन जाएगी। इस सूची में कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों के दावे एक जैसे ही हैं। दोनों दलों की सरकारें चाहे केंद्र में रही हों या राज्य में, नक्सलवाद की चिंता से छत्तीसगढ़ मुक्त नहीं हो पाया है, ये एक कड़वी सच्चाई है। अलबत्ता इसके लिए जो योजनाएं बनाई जा रही हैं, उन्हें लुभावने नाम देकर अनाप-शनाप खर्च किया जाता है। 2015 में ही मोदी सरकार ने देश के नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए नेशनल पॉलिसी और एक्शन प्लान तैयार किया था, जिसके तहत करीब दर्जन भर योजनाएं लाई गईं। इनका मकसद नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना था।
इससे पहले 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को देश की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताते हुए कहा था कि विकास ही उग्रवाद को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है। हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री साय ने एक साक्षात्कार में बताया था कि नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सरकार ने नियाद नेल्लनार योजना लागू की है, जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ होता है ‘आपका अच्छा गांव’। उन्होंने कहा था कि इस योजना के तहत हम लगातार सुरक्षा शिविर खोल रहे हैं। अब तक 34 सुरक्षा शिविर खोले गए हैं, जिनमें लगभग 96 गांव शामिल किए गए हैं। इन गांवों में सड़क, बिजली, पानी, मोबाइल टावर, राशन कार्ड, आधार कार्ड और अन्य सरकारी योजनाएं प्राथमिकता के आधार पर पहुंचाई जा रही हैं। मुख्यमंत्री का दावा है कि बड़ी संख्या में नागरिक इन योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं।
अच्छी बात है कि मुख्यधारा से कटे इलाकों तक भी सरकारी योजनाएं पहुंच रही हैं, लेकिन इसके बावजूद नक्सलवाद क्यों बरकरार है, अब इस सवाल पर गंभीरता से और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विचार करने की जरूरत है। नक्सली अपनी समानांतर सत्ता स्थापित करने और सरकार से विरोध जताने के लिए निर्दोष नागरिकों के साथ-साथ सुरक्षा बलों को निशाने पर लेते रहते हैं। उनका यह हिंसक रवैया किसी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि न स्थानीय नागरिक न जवान सरकारी नीतियां बनाते हैं या सरकार चलाते हैं। वे केवल अपना कर्तव्य निभाते हैं। वहीं सरकारें भी नक्सलियों को खत्म करने के नाम पर जो ऑपरेशन चलाती हैं, उनमें निर्दोष लोगों की बलि कई बार चढ़ती है। मुठभेड़ों के नाम पर मासूम ग्रामीण चपेट में आ जाते हैं। यह सिलसिला कई बरसों से चल रहा है और जब मानवाधिकार संगठनों से जुड़े लोग इन पर सवाल करें तो उन्हें देशद्रोही करार देने में गुरेज नहीं किया जाता।
हजारों जानें नक्सलवाद की भेंट चढ़ चुकी हैं, लेकिन न ग्रामीण आदिवासियों का शोषण रुका, न जल, जंगल, ज़मीन ही पूंजीवाद के निशाने से बच रहे हैं और सैकड़ों जवानों की शहादत, अरबों रुपए खर्च होने के बावजूद नक्सलवाद ख़त्म नहीं हो रहा है। हालात तभी सुधरेंगे, जब दोनों पक्षों में निरंतर संवाद हो और विश्वास का वातावरण बने। इसके लिए सभी राजनैतिक दलों को मिलकर एक साथ कोशिश करनी होगी।