-विष्णुदेव मंडल-

(स्वतंत्र पत्रकार)
चेन्नई। सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं, लोग आते हैं लोग जाते हैं हम वहीं पर खड़े रह जाते हैं… कहने को तो यह गीत कुली फिल्म की है जो 1983 मैं रिलीज हुई थी और अमिताभ बच्चन कुली के भूमिका थे। चार दशक पुरानी कुली फिल्म के उपरोक्त गाने की तरह सब कुछ बदल रहा है लेकिन जो नहीं बदला है तो वह है मजदूरों के हालात। मजदूर दशकों से शोषण के शिकार हैं। भारत के प्रधानमंत्री अपने मन की बात में लोकल फार वोकल, मेड इन इंडिया, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, डिजिटल इंडिया आदि बातें तो करते हैं लेकिन उनका क्या जो आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहा रहे हैं। जिस तरह किसानों को फसलों का कोई न्यूनतम गारंटी मूल्य अब तक नहीं मिला है कमोबेश मजदूरों की हालत उन से भी बदतर है। यही वजह है कि देश और राज्यों में मजदूरों का स्थित कमोबेश एक जैसा है।
मजदूर चेन्नई समेत तमिलनाडु के अन्य जिलों में किसी न किसी फैक्ट्रियों में बारह से चौदह घंटे काम करने के बावजूद महीने भर 15 हजार रुपये बमुश्किल कमा पाते हैं। मजदूरों का आरोप है कि सरकार बनाने में उनका भी अहम रोल है बावजूद इसके अब तक उनकी दैनिक मजदूरी के लिए कोई खास काम नहीं हुआ। फैक्ट्री में 12 से चौदह घंटे तक काम करने के बावजूद भी उनके हिस्से में बमुश्किल 12 से 15 हजार रुपये हाथ में आते हैं। बढती महगाई में अपनी खाने पीने के साथ परिवार को भरणपोषण करना बेहद कठिन होता है।
बताते चलें कि विगत फरवरी और मार्च महीने में तमिलनाडु में प्रवासी हिंदी भाषी और बिहारी मजदूरों को मारे जाने की कई फेक वीडियो प्रसारित किए गए थे। जिसके कारण बडी संख्या में तमिलनाडु से प्रवासी मजदूर घर वापस चले गए थे। जो रह गए थे उन्हें भी इस बात की डर सताता रहा था कि कहीं उनके साथं अनहोनी न घट जाए।मजदूर दिवस पर चेन्नई के आसपास रह रहे मजदूरों से उनके मौजूदा हालात जानने के कोशिश की जो निम्नलिखित हैं।

पिछले सात सालों से रेडहिल्स के एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे बिट्टूराम (25) जो मूलतः जम्मू के निवासी हैं,कहते हैं उसे यहाँ हर दिन काम मिल जाता है। यहाँ के लोगों से शिकायत नहीं है लेकिन पिछले महिने सोशल मीडिया पर जिस तरह बाहरी मजदूरों का वीडियो प्रसारित किए गए थे उससे वह काफी भयभीत हो गए थे। ऐसा लग रहा था अब वे यहाँ रह नहीं पाएंगे लेकिन सरकार और पुलिस ने हमें भरोसा दिलाया कि यहाँ ऐसा कुछ नहीं है। तमिलनाडु पुलिस उनकी सुरक्षा के तैयार है और हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया गया उसके बाद हम लोग सहजता से काम कर रहे हैं।

कांचीपुरम के लॉजिस्टिक कंपनी में काम कर रहे हैं सुरेंद्र कुमार (36) का कहना था फरवरी और मार्च का महीना हम लोगों के लिए चिंताजनक बन गया था। गांव से भी पिताजी फोन कर रहे थे कि बेटा घर वापस आ जाओ लेकिन हमने वापस जाने से मना कर दिया। हम 10 सालों से तमिलनाडु के अलग-अलग इलाकों में मजदूरी का काम कर रहे हैं। हमें यहां कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि यहां के लोग हमारे साथ दुर्व्यवहार करेंग।े यहां काम भी आसानी से मिल जाता है। हां भाषाई समस्या ह,ै लेकिन फिर भी हर रोज काम मिलना समय से तनख्वाह मिल जाना हमारे लिए बहुत मायने रखता है। परिवार तो साथ नहीं रखते हैं लेकिन मन में यह लालसा जरूर बनी हुई है कि हमारी आमदनी ठीक-ठाक हो जाए तो परिवार को भी ले आएंगे और बच्चे को यहां के स्कूल में दाखिला करवाएंगे जिसमें अब तक हम कामयाब नहीं हो पाए।

सुनील कुमार (24) की माने तो अन्य राज्यों के तुलना में वह यहाँ सहजता से काम कर रहे है। वह एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में पिछले 9 सालों से कार्यरत हैं। उन्हें तनख्वाह भी समय से मिल जाती है। काम भी भारी नहीं है। ऑटोमोबाइल के पार्ट्स का लोडिंग अनलोडिंग करते हैं। यहां कभी उन्हें स्थानीय लोगों से किसी तरह की शिकायत नहीं है। हाँ जब बीमार पडते है ं तो डाक्टर के पास जाने में डर लगता है। नौ साल के बाद भी मुझे तमिल भाषा नहीं आती। जरूरत की चीजों को खरीदने में परेशानी होती है। पिछले फरवरी-मार्च में हिंदी भाषी प्रवासी मजदूरों के बारे में जो भ्रम फैलाया गया था उससे हम भी डर गए थे लेकिन अब सब कुछ ठीक-ठाक हो गया है।
बहरहाल देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात कार्यक्रम का 100 एपिसोड पूरा कर चुके हैं। वह हर क्षेत्र एवं हर समस्याओं का निदान के बारे में मन की बात कार्यक्रम कहते हैं लेकिन मजदूरों के लिए अब तक कुछ खास नहीं कर पाए हैं। उनकी जादू की झप्पी मजदूरों को भी मिलनी चाहिए क्योंकि मजदूर सब का बोझ उठा रहे हैं लेकिन अब तक मजदूरों का बोझ उठाने वाले कोई गॉडफादर नहीं आया।