मैं कोटा… कल था आज हूं और कल भी रहूंगा

मेरी ताकत मेरे बच्चे, जो दूर-दूर से अपने मातापिता को छोड़, ऋषि मुनियों की तरह, अपने सपने बक्सों में भरकर (सीमित सामग्री), यहां आते और सन्यासियों की भांति तपस्या (पढ़ाई ) करते हैं। हालांकि अभी भी बच्चे आते हैं, लेकिन वर्चस्व में कमी हुई है। फिर भी मेरी मिट्टी में, चंबल के पानी में इतनी ऊर्जा है कि एक कच्चे घड़े सा अबोध बालक, कुछ ही समय में एक व्यक्तित्व में (अथाह ज्ञान सागर) परिवर्तित हो जाता है। पर आज जिन बच्चों को मैंने # निडरता सिखाया, लड़ना सिखाया वह भी जीवन से हार मान रहे हैं या कुछ गलत कदम उठा लेते हैं, यह देख कर बड़ा #अफसोस होता है

kishor sagar

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

मैं कोटा! अपनी कहानी स्वयं सुना रहा हूं चंबल नदी के किनारे बसा एक पुराना शहर! शहर का इतिहास बारहवीं सदी पूर्व का है, मेरा अस्तित्व लगभग १६२४ ईस्वी में आया। जो सोलहवीं सदी १६३१ ईस्वी में आते आते स्वतन्त्र राज्य के रुप में हकीकत बन गया। मैं कल था आज हूं और कल भी रहूंगा। मेरे जनक कोई भी रहे हों, पर मेरा स्वरूप नहीं बदला। मेरी जमीन और उस पर वास करने वाले लोग, संस्कृति सब कुछ वैसी की वैसी ही है बिलकुल देसी/ सरल/ सामान्य, जैसी पहले से चली आ रही है। भारत की सबसे साफ नदी होने के बावजूद भी इसमें आस्था या पूजा अर्चना मंदिर ना के बराबर है, इसे शापित नदी माना जाता है। यह कितना सही है, कह नहीं सकते। लेकिन यहां के लोग बहुत भले हैं। सरलता, देसीपन यहां की हवा और मिट्टी में रची बसी है। मेरी मिट्टी बहुत ही ऊर्जावान है। अपने पावनता, संस्कृति को जीता हुआ, उल्लासमयी जीवन से सरोबार हूं। एक वक्त था जब मुझे अधिकतर लोग औद्योगिक नगरी के रूप में पहचानते थे। जे के फैक्ट्री बंद हो चुकी थी, बेरोजगारी के आलम में कुछ लोगों ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। जब से कोचिंग सेंटर शुरू हुई हैं तब से तो प्रसिद्धि का ग्राफ लगातार बढ़ता ही गया। और मुझे नई ऊंचाईयां दीं। बंसल सर (कोचिंग #व्यवसाय के जनक) की शुरुआत के बाद, एलन (माहेश्वरी ब्रदर्स), कैरियर प्वाइंट से शुरू हुआ कोचिंग का सिलसिला बढ़ता ही गया और न जाने कितने ही कोचिंग संस्थान खुल गए हैं। अब तो देश विदेश में पहचान बना चुका हूं। हजारों करोड़ रुपए का टर्न ओवर है, कई लोगों को इससे #जीवनयापन के संसाधन मिले हैं। पंचर जोड़ने, चाय की थड़ी, जूस सेंटर, रेस्टोरेंट, खाने से लेकर रियल स्टेट तक का कारोबार खूब फल फूल रहा है। कोटा के लडखड़ाते उद्योग जगत को नई संजीवनी मिली है। और अब तो डॉक्टर इंजीनियर्स बनाने वालों की #फैक्ट्री (गढ़) माना जाता है, इतने ढेर सलेक्शन होते हैं अकेले कोटा से कि पूछो मत। देश के प्रत्येक आई आई टी, चिकित्सा संस्थान में IIT JEE या NEET एग्जाम द्वारा सलेक्ट हुए मेरे यहां से निकले बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। जब किसी परीक्षा का परिणाम आता तो मैं गर्व से, खुशी से झूम उठता हूं। रुकना, हारना, डरना, मरना कभी सीखा ही नहीं। मेरी ताकत मेरे बच्चे, जो दूर-दूर से अपने मातापिता को छोड़, ऋषि मुनियों की तरह, अपने सपने बक्सों में भरकर (सीमित सामग्री), यहां आते और सन्यासियों की भांति तपस्या (पढ़ाई ) करते हैं। हालांकि अभी भी बच्चे आते हैं, लेकिन वर्चस्व में कमी हुई है। फिर भी मेरी मिट्टी में, चंबल के पानी में इतनी ऊर्जा है कि एक कच्चे घड़े सा अबोध बालक, कुछ ही समय में एक व्यक्तित्व में (अथाह ज्ञान सागर) परिवर्तित हो जाता है।
पर आज जिन बच्चों को मैंने # निडरता सिखाया, लड़ना सिखाया वह भी जीवन से हार मान रहे हैं या कुछ गलत कदम उठा लेते हैं, यह देख कर बड़ा #अफसोस होता है।
मैं कोटा! लगभग १२ लाख आबादी का मेरा भरापूरा परिवार है। अपने बच्चों के लिए मेरे पास हर तरह की सुविधा उपलब्ध है। मैं ऐसा शहर हूं जो चौबीस घंटे पानी बिजली की सप्लाई देता हूं। यहां एशिया का सबसे बड़ा थर्मल पॉवर प्लांट है। जिसमें अनवरत बिजली का उत्पादन होता है। शिक्षा के लिए लॉ कॉलेज, आर्ट्स, टेक्निकल यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज सब हैं। #एजुकेशन सिटी के नाम से मशहूर #कोचिंग का तो पूरा #हब हूं।

मैं कोटा! और मेरे पांच कक्के यानि “क” से शुरू होने वाली चीजें जो मुझे देश विदेश में प्रसिद्धि दिलाती हैं १_ कोचिंग २_ कोटा कचौड़ी ३_ कोटा के कड़के ४_ कोटा साड़ी ५_ कोटा स्टोन।
मैं कोटा! मेरे यहां कई पर्यटन स्थल यथा_ अभेड़ा महल, मथुराधीश जी मंदिर, भीतरिया कुंड, कंसुआ (यह मंदिर आठवीं शताब्दी में निर्मित है, यहां सहस्त्र शिवलिंग हैं। ऐसा माना जाता है कि यह कण्व ऋषि का आश्रम था ), गैपर नाथ, पांच सौ शिवलिंग स्थापित थेगड़ा, दाढ़ देवी, कर्णेश्वर महादेव, अलनिया डैम, भारत में एकमात्र विभीषण मंदिर (कैथून में), छत्र विलास उद्यान, जगमंदिर तालाब, गढ़ पैलेस संग्रहालय, गोदावरी धाम, मुकुंदरा टाइगर रिजर्व, कोटा बैराज, खड़े गणेश जी, सेवन वंडर पार्क और अभी निर्माणाधीन रिवर फ्रंट आदि हैं। यहां कोटा तथा आसपास में कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई हैं। इसके अलावा भी मैं पुराने किले, दशहरा मेला, सीमेंट उद्योग, कोटा बैराज आदि के लिए प्रसिद्ध हूं।
यहां कई सामाजिक संस्थाएं निम्न वर्ग के उत्थान के लिए कार्यरत हैं।
मैं कोटा! यहां साहित्यिक गतिविधियां भी होती रहती हैं, जब कभी चलते चलते थक जाता हूं, तब मुझे आगे बढ़ने के लिए विजय शंकर जी मेहता, ज्ञानानंद जी, हेमा सरस्वती जैसे कई बड़े संत मेरी धरा पर पधार कर मेरे भटके हुए मन को #आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं। कथा, भागवत के आयोजन होते रहते हैं जिससे कि मैं उन्हें पुनः चार्ज हो जाता हूं।
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान

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