बिहार में खिसकते जनाधार के बीच नीतीश कुमार विपक्ष को कैसे करेंगे एकजुट

सच्चाई तो यह है की बिहार अभी भी अन्य राज्यों की अपेक्षा बेहद पिछड़ा हुआ है। बिहार में आपराधिक घटनाएं अन्य राज्यों के तुलना मेंअधिक हैं। नीतीश सरकार की शराबबंदी बिल्कुल फेल है। जहरीली शराब हर शहर गांव और टोले में बनाई जा रही है। शराबियों को पकड़ रहे हैं लेकिन शराब माफियाओं पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं

-विष्णु देव मंडल-

विष्णु देव मंडल

(बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार)
सांप्रदायिकता अपराध और भ्रष्टाचार से कभी समझौता नहीं करेंगे, मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन भाजपा के साथ नहीं जाएंगे। उपरोक्त बातें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मीडिया के साथ-साथ सदन में भी कई बार बोल चुके हैं!
नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी से नाता इसलिए तोड़ लिया था क्योंकि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था। उन्होंने गठबंधन तोड़ने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले नेता बता कर लंबे समय से चल रहे भाजपा जदयू के गठबंधन की सरकार को गिरा दिया था। वह हर जगह यह कहते रहे कि हम सांप्रदायिक तत्व के साथ नहीं रह सकते। नीतीश कुमार वर्ष 2015 में लालू प्रसाद यादव और अन्य सहयोगी दलों के साथ विधानसभा चुनाव लड़े और जीत कर महागठबंधन की सरकार बनाई लेकिन 2 साल के बाद नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल अर्थात लालू के सरकार से बाहर इसलिए आ गए कि लालू परिवार और तत्कालीन उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भ्रष्टाचार के आरोपी है।
यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लालू परिवार के कुशासन और जंगलराज और भ्रष्टाचार के डर दिखाकर ही सत्ता में आए हैं। वह लोगों को यह कहते रहे कि लालू यादव और उनके परिवार आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त है और उनकी सरकार अपराधियों और बाहुबलियों की सरकार है। यही डर दिखाकर नीतीश कुमार 2020 में सरकार में आए लेकिन महज 2 साल बाद नीतीश कुमार का एक बार फिर हृदय परिवर्तन हुआ और अचानक भाजपा से नाता तोड़ते हुए राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेश,सीपीआई,सीपीएम सहित अन्य दलों से मिलकर सरकार चला रहे हैं। पिछले अगस्त में नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मारते हुए राष्ट्रीय जनता दल और उनके सहयोगियों के साथ महागठबंधन बनाकर सरकार चला रहे हैं।
नीतीश कुमार ने मंगलवार को मीडिया से कहा कि बिहार का भविष्य अब तेजस्वी यादव के हाथ में है। आगामी 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन चुनाव में जाएगी। उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बताने से इनकार करते हुए कहा कि मैं 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री का उम्मीदवार नहीं हूं लेकिन देश के अधिकांश राजनीतिक दलों की यह इच्छा है कि भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बेदखल किया जाए इसलिए मेरा प्रयास है कि सभी विपक्षी पार्टियां साथ आएं और नरेंद्र मोदी सरकार को केंद्र के सत्ता से मिलकर हटाएं। मेरी व्यक्तिगत कोई आकांक्षा प्रधानमंत्री बनने का नहीं है।

यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है पिछले कुछ महीने में बिहार में उपचुनाव हुआ था जहां कुढनी, गोपालगंज में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी वही मोकामा में राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार विजयी हुए थे, लेकिन कुढनी में जदयू उम्मीदवार की हार के बाद मतदाताओं में यह संदेश पहुंच गया है कि नीतीश कुमार अब बिहार के लिए प्रासंगिक नहीं हैं। अपने ऊपर चौतरफा हो रहे हमले के कारण नीतीश कुमार को सामने आकर यह बयान देना पडा़ क्योंकि सवाल उठाने वाले विपक्षी भाजपा ही नहीं जदयू के अंदर से ही यह आवाज उठने लगी कि 7 दलों के मिलने के बाद भी आखिर भाजपा कुढनी उपचुनाव में कैसे जीती।
सच्चाई तो यह है की बिहार अभी भी अन्य राज्यों की अपेक्षा बेहद पिछड़ा हुआ है। बिहार में आपराधिक घटनाएं अन्य राज्यों के तुलना मेंअधिक हैं। नीतीश सरकार की शराबबंदी बिल्कुल फेल है। जहरीली शराब हर शहर गांव और टोले में बनाई जा रही है। शराबियों को पकड़ रहे हैं लेकिन शराब माफियाओं पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। ताड़ी पर प्रतिबंध लगाया हुआ है जिनसे पासी समाज के हजारों परिवार भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। पासी समाज ताड़ के पेड़ से ताडी निकाल कर और उसे बेचकर अपना भरणपोषण किया करते थे। उनके जीविका पर संकट उत्पन्न हो गया है। बिहार में रोजगार के अभाव में सर्वाधिक पलायन है। हर परिवार से पुरुष अन्य राज्यों में मजदूरी के लिए पलायन कर रहे हैं। जबकि पिछले 32 सालों से लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार सरकार चला रहे हैं, बावजूद इसके बिहार में भूख भय और भ्रष्टाचार सर्वाधिक है।
राजनीतिक पंडितों के अनुसार नीतीश कुमार का समय अब समाप्त हो चुका है। वह बिहार में अप्रसांगिक हो चुके हैं। उनके पास कोई वोट बैंक नहीं है। बिहार के बाहर अन्य राज्यों में जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल की उपस्थिति शून्य है। राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण करना आसान नहीं है। वह चार महीने पहले विपक्षी एकता के नाम पर दिल्ली में कई दलों के नेताओं से मिले लेकिन उन्हें कहीं से माकूल रिस्पांस नहीं मिला। ममता बनर्जी ने महागठबंधन के मुख्यमंत्री बनने के बाद शुभकामनाएं भी नहीं दी। अरविंद केजरीवाल खुद को नरेंद्र मोदी के सामने खड़े होने की बात बार-बार कर रहे हैं। तेलंगाना के .चंद्र शेखर राव ने हाल ही में अपनी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी गठित की है। प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को हटाने के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक का यात्रा कर रहे हैं। ऐसे में नीतीश कुमार का सपना महज एक ख्वाब हो सकता है सच्चाई कदापि नहीं।
गौरतलब है कि पिछले दिनों लोकसभा में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने पासी समाज के लाखों गरीब लोग जो ताडी बेचने के जुर्म में सलाखों के पीछे कर दिए गए थे और उनके परिवार भुखमरी के शिकार हैं पर सदन को ध्यान आकृष्ट करवाया था। उनहोंने नीतीश कुमार के शराबबंदी, और बिगड़ते कानून व्यवस्था पर सदन में सवाल उठाया था।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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