राहुल गांधी और चुनाव आयोग

-देशबन्धु में संपादकीय 

रविवार को देश में दो बड़ी घटनाएं हुईं। बिहार से राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा की शुरुआत हुई और दिल्ली में निर्वाचन आयोग ने प्रेस कांफ्रेंस कर वोट चोरी के गंभीर आरोपों पर जवाब देने की कोशिश की। चूंकि दोनों घटनाओं का संबंध मतदाता और मतदान के अधिकार से जुड़ा है, लिहाजा कहा जा सकता है कि इस कठिन समय में भी लोकतंत्र की धड़कनें चल रही हैं, और इसका पूरा श्रेय अगर विपक्ष को, इंडिया गठबंधन के दलों और खासकर राहुल गांधी को दिया जाए तो ग़लत नहीं होगा। यूं तो मतदान के दौरान गड़बड़ी के आरोप एक अर्से से विपक्ष लगा रहा था। लेकिन महाराष्ट्र चुनाव के बाद उसका शक यकीन में बदल गया, क्योंकि लोकसभा चुनावों में महाविकास अगाड़ी ने एनडीए को धूल चटा दी थी, लेकिन चार-पांच महीनों बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और उसके साथियों को आशातीत जीत मिल गई। शुरुआती पड़ताल में पता चला कि जिन क्षेत्रों में नए मतदाता बढ़े हैं, उन्हीं पर भाजपा को जीत मिली है। इसके बाद उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में ऐसी ही गड़बड़ी के आरोप समाजवादी पार्टी ने लगाए। बिहार में तेजस्वी यादव का आरोप है कि पिछले चुनावों में कई सीटों पर आखिरी वक्त में राजद के जीते प्रत्याशियों को हराया गया। चंडीगढ़ में तो मेयर चुनाव में निर्वाचन अधिकारी अनिल मसीह को सीसीटीवी पर ही बैलेट पेपर पर हेरफेर करते पकड़ा गया और अब हरियाणा के सोनीपत ज़िले के गांव बुआना लाखू के मोहित कुमार का मामला सामने आया है, तीन साल पहले ग्राम पंचायत चुनाव में मोहित कुमार को हारा हुआ बताया गया था, लेकिन उन्हें जीत का यकीन था, वे अपनी लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले कर गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुई दोबारा गिनती के मुताबिक¸, इस गांव में कुल 3,767 वोट डाले गए थे. इनमें से 1,051 वोट मोहित कुमार को और 1,000 वोट कुलदीप सिंह को मिले, इस तरह क़रीब पौने तीन साल की कानूनी लड़ाई के बाद मोहित कुमार को 51 वोटों से ग्राम पंचायत चुनाव का विजेता घोषित किया गया।

तो राहुल गांधी से लेकर मोहित कुमार तक ने जिस धांधली की तरफ देश का ध्यान दिलाया है, उससे चुनाव आयोग ने एक बार फिर साफ़ इंकार कर दिया है। रविवार को चुनाव आयोग ने उसी समय प्रेस काॅन्फ्रेंस रखी, जब राहुल गांधी की यात्रा बिहार में शुरु होने वाली थी। हालांकि सासाराम में दिन के 12 बजे के आसपास ही मल्लिकार्जुन खड़गे, लालू प्रसाद, राहुल गांधी, तेजस्वी यादव समेत महागठबंधन के तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी में वोटर अधिकार रैली का शंखनाद हुआ, जिसके लिए पूरे बिहार से आम जनता उमड़ी हुई दिखाई दी। ख़ासकर महिलाओं की तादाद काफी अधिक थी, जो नीतीश सरकार के लिए बड़ी चेतावनी है। इस रैली में बहुत से लोग ऐसे भी मौजूद थे, जिनके नाम मतदाता सूची से काट दिए गए हैं, जबकि पिछले चुनाव में उन्होंने वोट डाले थे। बिहार में मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण को लेकर जो सवाल विपक्ष ने उठाए हैं, उन सवालों की गूंज सासाराम की रैली में साफ़ सुनाई दी।

अब वोटर अधिकार यात्रा अगले 13 दिनों तक चलेगी और 1 सितंबर को पटना में फिर से एक बड़ी सभा होगी। इस एक पखवाड़े में बिहार की राजनैतिक सूरत में बड़े बदलाव के संकेत मिल चुके हैं। सबसे बड़ा संकेत तो दिल्ली में ही नज़र आया, जब मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने पद संभालने के बाद पहली बार प्रेस काॅन्फ्रेंस की। हालांकि वे सीधे सवालों के सीधे जवाब देने की जगह प्रवचन देने या फिर राजनेता की तरह बात को घुमाने-फिराने में लगे रहे। उनके पूर्ववर्ती राजीव कुमार की भी यही आदत थी कि वे भाजपा के सहयोगी की तरह जवाब देते थे, विपक्ष के सवालों पर बेतुकी शायरी सुनाते थे। ज्ञानेश कुमार ने भी ‘सच, सच होता है और सूरज पूर्व से निकलता है’ जैसे जुमलों के साथ गंभीर सवालों को टाल दिया। पत्रकारों ने उनसे पूछा कि बिहार में इसी समय एसआईआर क्यों हो रहा है। क्यों कई मतदाताओं के पते पर हाउस नंबर ज़ीरो लिखा है। विपक्ष की मांग के अनुसार आयोग मशीन रीडेबल फार्मेट में मतदाता सूची क्यों उपलब्ध नहीं कराता। बिहार में विदेशी नागरिकों के मतदाता होने की बात कही गई थी, तो ऐसे कितने मतदाता मिले जो भारतीय नहीं हैं। राहुल गांधी को हलफ़नामा देने कहा जाता है, लेकिन धांधली के वैसे ही आरोप लगाने वाले भाजपा के अनुराग ठाकुर को हलफ़नामा देने चुनाव आयोग ने क्यों नहीं कहा। एकदम से 22 लाख मृतकों के नाम आयोग को मिले, इससे पहले के संशोधनों में यह गड़बड़ी क्यों नहीं पकड़ में आई।

ऐसे कई सवाल करीब दो घंटों की प्रेस काॅन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त से पूछे गए, लेकिन उन्होंने केवल वही बयान दोहराए, जो पिछले कई दिनों से सूत्रों के हवाले से मीडिया में आ रहे थे। जैसे यह मतदाता सूची के शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। कोई भी मतदाता दो बार वोट नहीं डाल सकता, यह कानूनन अपराध है। एसआईआर की प्रक्रिया पहले भी कई बार हो चुकी है। विकास के कारण व्यक्ति गांव से शहर और फिर दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में आता है इसलिए एक ही व्यक्ति के कई वोटर आईडी बन जाते हैं, लेकिन वोट वो एक ही बार डाल सकता है। वोट चोरी शब्द पर चुनाव आयुक्त ने घोर आपत्ति जताई और कहा कि जो आरोप लगा रहा है, उसे या तो हलफ़नामा देना पड़ेगा अथवा सात दिन के भीतर देश से माफी मांगे, अन्यथा वे आरोप बेबुनियाद कहे जाएंगे। जबकि राहुल गांधी साफ़ कह चुके हैं कि उन्होंने चुनाव आयोग के आंकड़ों के आधार पर ही गड़बड़ी दिखाई है तो वे किसलिए हलफ़नामे पर हस्ताक्षर करें।

कुल मिलाकर निर्वाचन आयोग ने संवैधानिक संस्था होने के बावजूद भाजपा के पक्ष में कार्य किया है, इसका प्रदर्शन रविवार को खुद निर्वाचन आयुक्त ने कर दिया। शुरुआत में ही उन्होंने अस्वीकरण यानी डिस्क्लेमर की तर्ज पर बताया कि उनके समक्ष सब एक जैसे हैं, कोई पक्ष या विपक्ष नहीं है। लेकिन मतदाता सूची में इतने बड़े पैमाने पर हुई गड़बड़ी के आरोप, खासकर कर्नाटक की महादेवपुरा सीट का ही जो उदाहरण राहुल गांधी ने दिया, उस पर कोई संतोषजनक जवाब आयोग ने नहीं दिया। जबकि उसके पास संवैधानिक शक्ति भी है और संसाधन भी। लेकिन अपनी शक्तियों और क्षमताओं का उपयोग करने की जगह आयोग विपक्ष और राहुल गांधी पर इल्ज़ाम थोपने में ज़्यादा व्यस्त रहा। इसके बाद अब कोई उम्मीद है तो वह बिहार में शुरु हुई वोटर अधिकार रैली से ही है।

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