राहुल ने बताई वस्तुस्थिति

rahul

-देशबन्धु में संपादकीय 

अमेरिका में राहुल गांधी द्वारा प्रेस काॅन्फ्रेंस में जो कुछ कहा गया उसे लेकर कई मुद्दों पर फिर से बवाल हुआ है। टेक्सास के डलास में भारतीयों के बीच उन्होंने जो कहा था, उसे लेकर गिरिराज सिंह, पूर्व मंत्री रविशंकर प्रसाद समेत तकरीबन दो दर्जन भाजपाइयों ने अपनी समझ और पार्टी लाइन के अनुसार राहुल की आलोचना कर दी है। अब वाशिंगटन डीसी में नेशनल प्रेस क्लब के सामने राहुल गांधी ने जो कुछ कहा है, उसकी आलोचना एवं तोड़-मरोड़ करने योग्य अंश निकालकर भाजपा हमलावर तो है पर राहुल द्वारा व्यक्त विचारों को सही परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की ज़रूरत सभी को है।

अमेरिका किसी भी देश में लोकतंत्र के बनने-बिगड़ने को वैश्विक दृष्टिकोण से देखने का आदी है। राहुल ने इसी देश की अपनी पिछली यात्रा एक सांसद के रूप में की थी, तो इस बार वे वहां पर विपक्ष के नेता के तौर पर हैं। इस पद की अहमियत को भी लोकतांत्रिक रूप से सजग और परिपक्व वह देश जानता है। पहले के मुकाबले भाजपा का अधिक तिलमिलाना स्वाभाविक तो है लेकिन राहुल देश की वास्तविकताओं से वहां की प्रेस को अवगत करा चुके हैं। हालांकि जिस मंच को उन्होंने सम्बोधित किया वह कोई स्थानीय प्रेस नहीं, बल्कि जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, वह अंतरराष्ट्रीय प्रेस बिरादरी है। जून, 2023 में भी वे इस मंच को सम्बोधित कर चुके थे।

पहले तो यह बात कर ली जाये कि उनके किन बयानों को भाजपा अपने पक्ष में मोड़ रही है। आरक्षण को लेकर उन्होंने जो कहा है, उसका आशय यह था कि ‘जब आरक्षण ख़त्म करने की स्थिति आयेगी, तब उस पर सोचा जायेगा।’ इसे ऐसे पेश किया जा रहा है कि कांग्रेस आरक्षण ख़त्म करने के पक्ष में है। हालांकि उन्होंने साफ़ किया कि कांग्रेस आरक्षण को 50 प्रतिशत तक करना चाहती है। पाकिस्तान को लेकर पूछे गये सवाल पर उनकी लाइन वही थी जो कांग्रेस की सरकार के रहते थी।

उन्होंने कहा कि उस देश से आतंकवादी गतिविधियां संचालित होती हैं। यह सर्वविदित है और पहले से अमेरिका तक इसे कहता आया है। सरकार समर्थक मीडिया इसे नरेन्द्र मोदी के साथ राहुल का होना बतला रहा है। ऐसे ही, बांग्लादेश में हो रही हिंसा को भी उन्होंने गलत बताया है। बहुत सम्भव है कि भाजपा का आईटी सेल इसे ऐसा प्रस्तुत करे कि ‘वहां के अल्पसंख्यकों (हिन्दू) के साथ हो रही हिंसा को लेकर राहुल को भी बयान देना पड़ा।’ इन दोनों-तीनों बातों में दम नहीं है और बहुत भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि राहुल के कई बयानों को जिस प्रकार से पहले तोड़ा-मरोड़ा गया था लेकिन वे प्रयास कोई कारगर नहीं हो पाये थे, उसी प्रकार यह दुष्प्रचार भी बहुत लम्बा टिकने वाला नहीं है। ऐसे एक-दो मुद्दों को छोड़ दिया जाये तो भाजपा के पास राहुल की आलोचना हेतु गिने-चुने हथियार ही रह जाते हैं। जैसे, उन्हें इस बात के लिये कोसा जाये कि उन्होंने भारत की बदनामी विदेशी धरती पर की है, आदि।

राहुल के भाषण पर आयें तो कहा जा सकता है कि उन्होंने भारत में लोकतंत्र की वर्तमान हालत, उसके इस स्थिति तक पहुंचने और भविष्य की तस्वीर का खाका खींचा है। विपक्ष के नेता के तौर पर जो उनका दायित्व है, उन्होंने वह पूरा किया है। उन्होंने बतलाया कि 2014 में, यानी जब भाजपा ने केन्द्र की सरकार बनाई थी, तभी से सत्ता ने देश के लोकतांत्रिक ढांचे की नींव पर ऐसा हमला करना शुरू किया जो पहले कभी नहीं देखा गया था। उन्होंने इस बात की जानकारी दी कि किस कठिनाई से कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था। इसके साथ ही, नरेन्द्र मोदी ने संवाद के सारे रास्ते बन्द कर दिये हैं। आम तौर पर लोकतंत्र के लिये काम करने वाले सारे संस्थान बन्द कर दिये हैं। इतना ही नहीं, विपक्ष पर हमले किये गये तथा विरोधी दलों की निर्वाचित राज्य सरकारों को मोदी ने उखाड़ फेंका है। इसलिये उन्हें ‘भारत जोड़ो यात्रा’ तथा ‘न्याय यात्रा’ निकालनी पड़ी थी। उनके पास देशवासियों से जुड़ने का एकमात्र यही रास्ता बचा रह गया था। उन्होंने माना कि यह एक कठिन लड़ाई थी जिसने उन्हें भी व्यक्तिगत रूप से बदला है।

राहुल ने ऐसी कोई नयी बात नहीं कही है। इनमें से अधिकतर बातें वे सभी जगहों पर कहते आये हैं। यह तो मोदी सरकार एवं भाजपा को सोचना होगा कि जो मुद्दे राहुल ने उठाये हैं, उन्हें तोड़-मरोड़कर जनता के सामने पेश किया जाये या देश में लोकतंत्र की स्थिति को सुधारने के लिये वह कुछ करे। हालांकि दूसरी बात की सम्भावना काफी कम है क्योंकि मोदीजी में न तो वह साहस है और न ही ऐसा करना उन्हें मुफ़ीद पड़ेगा। यह सवाल इसलिये उठता है क्योंकि 22 सितम्बर को मोदीजी खुद अमेरिका की यात्रा पर पहुंचेंगे। राहुल और मोदीजी – दोनों की यात्राएं ऐसे वक्त पर हो रही हैं जब वहां राष्ट्रपति चुनाव काफ़ी नज़दीक है। जिन डोनाल्ड ट्रम्प (रिपब्लिकन पार्टी) के लिये 2020 में मोदी ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ का नारा देकर अपनी फ़जीहत करा चुके थे, वे फिर से प्रत्याशी तो हैं लेकिन उनकी विरोधी कमला हैरिस (डेमोक्रेट) लोकप्रियता व समर्थन के मामले में काफी आगे निकल चुकी हैं। उन्हें तो व्हाईट हाउस की दहलीज पर खड़ा बताया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में भाग लेने जा रहे मोदी का वे सवाल पीछा करेंगे जो राहुल उनके लिये छोड़कर स्वदेश लौट रहे हैं। मोदीजी को राहुल के उठाये मुद्दों के जवाब देने होंगे।

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