संवादहीनता का वायरस एक महामारी

संवाद कई तरह का हो सकता है। आंखों से संवाद, जिसमें आप बिना कुछ बोले बहुत कुछ बोल देते हैं, समझ जाते हैं। एक मां, एक प्रेयसी की मूक भाषा से कौन परिचित नहीं है। एक है स्पर्श की भाषा, स्पर्श बता देता है आपके मन में क्या चल रहा है। इसलिए इस संवादहीनता को अपने #घर में, #घर मत करने दीजिए, वरना बहुत देर हो जायेगी

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

इस समय देश, राजनीति, समाज, परिवार की सबसे बड़ी जरूरत है #संवाद, और उसी का अभाव है। आजकल सभी जगह #संवादहीनता की स्थति बनती जा रही है। सबका अपना अहम् आड़े आ जाता है, कोई झुकना नहीं चाहता, और इस तरह चारों ओर एक नकारात्मक वातावरण बनना शुरू हो जाता है। जिसका खामियाजा अंततः भुगतना ही पड़ता है। घर परिवार की दुनिया में परस्पर संवाद बनाए रखते हुए अपने जीवन साथी का, घर के अन्य सदस्यों का सम्मान करना सीखिए। विपत्तियों, परेशानियों को पीछे धकेल कर, हर परिस्थिति में खुद को #अनुकूलित करने का #मंत्र हम अपनी महिला साथियों से सीख सकते हैं। अपने घर परिवार में कार्यस्थल पर महिलाओं से सीखिए, वे कहीं भी किसी से भी संवाद बना सकती हैं। पति का बिना बताए देरी से घर आना, पत्नी के प्रति अपराध है प्रताड़ना है, ऐसी एक प्रदेश के हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है। मुकदमा जो भी हो पर न्यायधीश की टिप्पणी यही थी, बात छोटी सी दिखती है पर बड़ी महत्वपूर्ण है। आजकल लोग कुछ अधिक घंटे काम करते हैं, सुबह जल्दी घर से निकल जाते हैं, रात को देर से घर आते हैं, ऐसा स्वाभाविक रूप से किसी के साथ भी हो सकता है, यहां पति-पत्नी का मामला था इसलिए टिप्पणी पति पर की गई, इसलिए ध्यान रखें, जब घर देरी से पहुंचे तो कम से कम सूचना अवश्य दें, इससे संवाद बना रहता है। वरना एक समय ऐसा आएगा की आपस में बातचीत ही बंद हो जाएगी। अपनी व्यावसायिक सफलता के लिए आप खूब दौड़-धूप करते हैं, जमाने भर के संकल्प लेते हैं तो एक संकल्प यह भी लीजिए कि जब घर से निकलें तो बाकी सदस्यों को पूरी सूचना जरूर दें, कि कहां जा रहे हैं, कब लौटेंगे। और यदि बताए गए समय पर लौटने में विलंब हो तो, समय रहते इसकी सूचना भी देंगे। इसमें छोटा- बड़ा होने जैसी कोई बात नहीं है, वरना धीरे-धीरे संवाद समाप्त होता जाएगा और एक दिन पति पत्नी ही जब अन्य विषयों पर भी बात करेंगे तो बहस होगी, आरोप-प्रत्यारोप होगा और टकराव बढ़ेगा। हाई कोर्ट की यह टिप्पणी वाजिब है घर गृहस्थी की दुनिया में परस्पर संवाद बनाए रखते हुए अपने जीवन साथी का, घर के अन्य सदस्यों का सम्मान कीजिए।
आज हम जिन परिस्थितियों में हैं यह सब के लिए चिंतनीय है। आज परिवार के लिए समय नहीं है, तो मैनेज कीजिए हो सके तो शाम को एक वक्त सभी परिवार जनों के साथ बैठ कर खाना खाएं, साथ ही अपनों के बीच मुक्त मन से संवाद होना चाहिए, अगर कुछ आशंकाएं हैं तो उनका निराकरण करें। बहुत सारे अच्छे कामों के साथ कभी भूल चूक, गलती भी हो जाती है, तो अपनी गलती को खुले मन से स्वीकार कर कोई छोटा नहीं हो जाता उससे तो बड़प्पन में वृद्धि ही होती है इसलिए अपनी गलती हो तो स्वीकारें और दूसरे की गलती होने पर क्षमा करना भी सीखें। लेकिन बोलचाल की बंद होने की नौबत ना आने दें। #संवाद हमारे समय की सबसे बड़ी जरूरत है, उसी का अभाव है। जिसके मन में जो भी आशंकाएं हैं उन्हें संवाद द्वारा सुलझाइए। जब तक हम #असहमति का सम्मान करना नहीं सीखेंगे, ना तो कोई संवाद मुमकिन होगा और ना ही किसी समस्या का समाधान निकलेगा। इस समय सबसे बड़ी जरूरत तो इस बात की है कि मन की शंकाओं को दूर करें यह काम जितनी विनम्रता और शालीनता से होगा उतना ही प्रभावी रहेगा।
संवादहीनता का वायरस, आजकल एक महामारी का रूप ले चुकी है। एकल परिवारों में, और वैसे भी कुछ बदलते परिवेश, कमरा संस्कृति (सबकी अपनी प्रायवेसी होती है, कौन क्या कर रहा है, किसी को कुछ पता नहीं, और मतलब भी नहीं) की वजह से हम लोग #एकांतप्रिय होते जा रहे हैं। आपस में संवाद बहुत कम हो गए हैं, कई बार तो रिश्ते खत्म होने के कगार पर पहुंच जाते हैं। जो चीजें केवल बातों से सुलझाई जा सकती हैं, उनका भी आधार नहीं बच रहा है। #बच्चे जीवन से #पलायन की स्थति तक पहुंच जाते हैं,और उस समय ये कहना, हमें तो पता ही नहीं था। #गंभीर बात है, बच्चे बहक जाते हैं। संवादहीनता की वजह से कई बार, समस्या इतनी बड़ी हो जाती है, कि आप उसकी #कल्पना भी नहीं कर सकते। माता पिता का अपने बच्चों से संवाद नहीं है, पतिपत्नि का नहीं है, पड़ोसियों का पड़ोसियों से नहीं है, बहन भाइयों का नहीं है, बस एक मायावी दुनिया में खोए हुए हैं। पूरे जहां (दुनिया) की खबर है, किंतु जहां (जिस जगह) की होनी चाहिए, वहां की नहीं है।
संवाद कई तरह का हो सकता है। आंखों से संवाद, जिसमें आप बिना कुछ बोले बहुत कुछ बोल देते हैं, समझ जाते हैं। एक मां, एक प्रेयसी की मूक भाषा से कौन परिचित नहीं है। एक है स्पर्श की भाषा, स्पर्श बता देता है आपके मन में क्या चल रहा है। इसलिए इस संवादहीनता को अपने #घर में, #घर मत करने दीजिए, वरना बहुत देर हो जायेगी। संवादहीनता की संक्रामक नमी से रिश्तों को बचाइए अन्यथा ये फफूंद बन लग जायेगी, जिसमें कोई एंटी बायोटिक काम नहीं करेगी।
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__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान

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