तेजस्वी का नाम आगे बढाने से बिहार की राजनीति में खलबली

जहां एक तरफ राष्ट्रीय जनता दल के नेता और कार्यकर्ता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं वही जनता दल यूनाइटेड के कार्यकर्ता और नेता चाहते हैं की बिहार कीे सेवा में जदयू फ्रंट फुट पर रहे लेकिन पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार जिस तरह का बयान दे रहे हैं उससे जदयू के अंदर भी खलबली मची हुई है

-विष्णु देव मंडल-

विष्णु देव मंडल

(बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार)
बिहार की राजनीति की विडंबना देखिए कि बाराती तो बदल जाते हैं लेकिन दूल्हा नहीं बदलता। विगत 17 सालों से बिहार की सत्ता नितीश कुमार के हाथ है। उनका इस अवधि में कभी एनडीए के साथ तो कभी महागठबंधन में आने-जाने का सिलसिला जारी रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि हम नरेंद्र मोदी सरकार को 2024 में सत्ता से हटाने के लिए फ्रंट फुट बनाएंगे और तेजस्वी यादव 2025 में महागठबंधन का चेहरा होंगे।
नीतीश कुमार का इतिहास बताता है कि उन्होंने कभी अपने आसपास के लोगों ने भला नहीं किया। सिर्फ उन्हें सब्जबाग दिखाया। मसलन पूर्व केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह, प्रशांत किशोर या फिर जनता दल यूनाइटेड के वह नेता जो मन में यह आस लगा बैठे थे कि नीतीश जी उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाऐंगे।
बहरहाल आरसीपी सिंह जद यू से निष्कासित नेता हैं और नीतीश कुमार के प्रबल विरोधी हैं। प्रशांत किशोर जन सुराज यात्रा लेकर बिहार भ्रमण पर हैं। वह नीतीश कुमार की क्रिएटिविटी पर सवाल उठा रहे हैं। शराबबंदी वापस लेने के लिए अनशन पर जाने की धमकी दे रहे हैं। इन दोनों में से आरसीपी सिंह पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं वही प्रशांत किशोर जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष पद पर काम कर चुके हैं और 2015 के चुनाव के महागठबंधन के रणनीतिकार भी रहे हैं।
यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड की सदस्यता अभियान के तहत 70 लाख से भी अधिक कार्यकर्ता बनाए हैं। जनता दल यूनाइटेड में बहुतेरे काबिल नेता हैं। ललन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, अशोक चौधरी, विजेंद्र यादव सरीखे दर्जनों नेता मुख्यमंत्री के पद पर काम करने के लायक हैं तो फिर नीतीश कुमार आगामी 2025 का चुनाव राष्ट्रीय जनता दल के नेता मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नाम पर क्यों लडना चाहते हैं? क्या राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड का एक दूसरे में विलय हो जाएगा? उन नेताओं कार्यकर्ताओं का क्या जो पिछले दो दशक से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं।
गौरतलब यह भी है की आगामी 2024 के चुनाव में नीतीश कुमार फ्रंट फुट का सरकार बनाने के लिए देश में विपक्षी एकता चाहते हैं तो फिर तुरंत तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का पद देना क्यों नहीं चाहते?
कहीं ऐसा तो नहीं मुख्यमंत्री नीतीश आगामी 3 सालों तक कुर्सी से चिपक कर रहना चाहते हैं। कहीं नीतीश कुमार तेजस्वी यादव को गोली तो नहीं दे रहे।
जहां एक तरफ राष्ट्रीय जनता दल के नेता और कार्यकर्ता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं वही जनता दल यूनाइटेड के कार्यकर्ता और नेता चाहते हैं की बिहार कीे सेवा में जदयू फ्रंट फुट पर रहे लेकिन पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार जिस तरह का बयान दे रहे हैं उससे जदयू के अंदर भी खलबली मची हुई है। यह अलग बात है कि जदयू के शीर्ष नेता नीतीश कुमार के खिलाफ खुलकर नहीं बोल रहे हैं? वैसे पूर्व रालोसपा अध्यक्ष जदयू संसदीय समिति के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के घोषणा के बाद चिंतित हैं। उनका कहना है कि जदयू का राष्ट्रीय जनता दल में विलय आत्मघाती हो सकता है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार बिहार में अपना अस्तित्व खो चुके हैं। आने वाले समय में नीतीश कुमार के चेहरे पर बिहार के जनता वोट नहीं देगी। इसलिए नीतीश कुमार तेजस्वी यादव को आगे करना चाहते हैं ताकि वोट बैंक बरकरार रहे। जिसकी मुख्य वजह बिहार भारतीय जनता पार्टी मे अब तक कोई ऐसा चेहरा नहीं हैं। जो तेजस्वी यादव को सीधा टक्कर दे पाए। राजनीतिक पंडितों का यह भी अनुमान है कि नीतीश कुमार बहुत चतुर राजनीतिक व्यक्ति हैं। वह अपने फायदे के लिए किसी के राजनीतिक बलि देने से भी गुरेज नहीं कर सकते। इसलिए राष्ट्रीय जनता दल को भी नीतीश कुमार पर पूर्ण भरोसा नहीं करनी चाहिए।
बहरहाल छपरा जहरीली शराब कांड में 39 लोगों की मौत के मामले ने बिहार की राजनीति को गर्म कर रखा है। जिनमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान जो शराब पिएगा वह मरेगा ने राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है। भारतीय जनता पार्टी के नेता छपरा जाकर मृतक परिवारों को सांत्वना दे रहे हैं वही सत्ता में बैठे लोग शराबबंदी पर पीकर मरने वाले को ही कटघरे में खड़े कर रहे हैं और सरकार में बैठे उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के समर्थन में उतर आए हैं जो 5 महीना पहले शराबबंदी को फेल बता रहे थे।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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