हर हाथ साइबर औजार, और जुर्म की सुनामी का हमला…

-सुनील कुमार Sunil Kumar

बच्चों से लेकर अधेड़ लोगों तक की जिंदगी मेें मोबाइल फोन की दखल जितनी बढ़ गई है, उसके खतरे अभी कम से कम भारत जैसे देश में न सरकार समझ रही है, और न ही समाज। और जब समाज में कोई चलन बढ़ निकलता है, तो एक के देखादेखी दूसरे के हाथ में भी मोबाइल फोन आ जाता है, और कई तरह की गतिविधियां भी एक दूसरे को देखते हुए बढऩे लगती हैं। इनमें मोबाइल गेम खेलना सबसे अधिक खतरनाक है, लेकिन बहुत छोटे बच्चे जो कि कोई गेम खेल नहीं पाते, वे भी कार्टून फिल्म या कोई और फिल्म देखे बिना खाना नहीं खाते। बच्चे किशोरावस्था में पहुंचने तक परिवार के किसी मोबाइल फोन पर पोर्नो फिल्म देखना शुरू कर देते हैं, या उनके पास अपने फोन आ जाते हैं और अब तो हाल यह है कि पोर्नो फिल्मों के कुछ खास एक्टर एक्ट्रेस किशोर-किशोरियों के पसंदीदा कलाकार बनने लगे हैं, और इस बारे में कहीं-कहीं पर चर्चा भी इंटरनेट पर दर्ज हो रही है। इससे परे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर लोगों के जो भावनात्मक रिश्ते बन रहे हैं, वे असल जिंदगी के रिश्तों को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। और इन सबसे ऊपर एक और खतरा इन दिनों मंडरा रहा है, कई तरह के साइबर-मुजरिम स्मार्टफोन के रास्ते लोगों की जिंदगी में घुस रहे हैं, उन्हें ठग या लूट रहे हैं, उन्हें साइबर-सेक्स के जाल में फंसा रहे हैं, और ब्लैकमेल कर रहे हैं। भारत के बाहर के नंबरों से काम करने वाले, और कर्ज देने वाले सैकड़ों एप्लीकेशन भारत सरकार अब तक बंद कर चुकी है, और हजारों नए एप्लीकेशन रात दिन लोगों को ऐसी शर्तों पर कर्ज देते हैं कि उनके पूरे फोन हैक कर लेते हैं, और कर्ज से दस गुना वसूली के बाद भी उन्हें ब्लैकमेल करना जारी रहता है। आज म्यांमार और कम्बोडिया जैसे देशों में बंधुआ कर्मचारियों को कैद करके हजार-हजार लोगों के कॉल सेंटर चलाए जा रहे हैं, जिनका काम भारत के लोगों को लूटने के अलावा और कुछ नहीं है।

स्मार्टफोन के हिमायती लोग उसके हजार किस्म के फायदे भी गिना सकते हैं, जो कि हम खुद भी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन जैसा कि किसी भी दुधारी तलवार के साथ होता है, उससे आप दूसरे सामान भी काट सकते हैं, और साथ साथ आपका हाथ कटने का खतरा भी रहता है। इसी तरह स्मार्टफोन की लत और उसके बाद उसके मार्फत मुजरिमों के तरह-तरह के जाल में फंसने का सिलसिला लोगों को बुरी तरह डुबा दे रहा है। दूसरे किसी भी आधुनिक तकनीक के औजार की तरह स्मार्टफोन भी एक औजार ही है, और इंटरनेट भी, लेकिन जब तक इनके इस्तेमाल के साथ जिम्मेदारी लोग समझेंगे, तब तक वे अपने दिल-दिमाग और परिवार के रूपए पैसे सबको बहुत तबाह कर चुके रहेंगे। इसलिए हम हर कुछ दिनों में इस मुद्दे के अलग-अलग पहलुओं पर लिखते भी हैं, और अपने यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल पर बोलते भी हैं।

अभी पिछले ही हफ्ते हमने छत्तीसगढ़ में राखी पर घर आई बहन के देर रात तक मोबाइल देखने वाले भाई को रोकने पर इसी जगह लिखा था और उस छोटे भाई ने मायके लौटी बड़ी बहन का कत्ल ही कर दिया था। मानो वह घटना काफी नहीं थी तो उसके बाद छत्तीसगढ़ के ही बलौदाबाजार में एक नाबालिग स्कूली छात्रा ने मोबाइल पर अधिक समय बर्बाद करने से रोकने वाले अपने गरीब दादा को कुल्हाड़ी से काटकर मार डाला। तीसरी खबर इसी प्रदेश के बिलासपुर जिले के एक गांव की है जहां एक पखवाड़े से लापता 13 बरस के एक लडक़े की लाश एक बंद पड़े, खंडहर स्कूल में सड़ी हुई मिली है। उसका गायब मोबाइल फोन जब अचानक शुरू हुआ, तो पुलिस को निगरानी में पता लगा और जांच में यह पता लगा कि उसी समाज का उसका एक बालिग दोस्त ही कातिल है। उसने उम्र में काफी छोटे इस दोस्त से गेम खेलने के लिए मोबाइल मांगा था, और न मिलने पर उसका गला घोंटकर उसे मार डाला। एक पखवाड़े के भीतर ये तीन कत्ल मोबाइल को लेकर ही हमारे एकदम आसपास हुए हैं।

अब सवाल यह उठता है कि आज जो बिल्कुल ही छोटे बच्चे, दो-चार साल की उम्र से मोबाइल की लत में पड़ गए हैं, वे जब बड़े होंगे, तो उनका क्या होगा? वे तो अभी से इस नशे के शिकार हो गए हैं, उनके पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की समझ भी मोबाइल फोन और सोशल मीडिया से प्रभावित होगी, वे पोर्नो भी आगे-पीछे पा ही जाएंगे, वे आंखों और दिल दिमाग पर बुरा असर झेलने लगेंगे, बाहर की दुनिया से उनका खेलकूद का रिश्ता घटने लगेगा, और धीरे-धीरे वे हर किस्म के साइबर-जुर्म का शिकार बनने का खतरा भी उठाने लगेंगे। एक तरफ हजारों साइबर मुजरिम उनके फोन पर ऑनलाईन सट्टेबाजी, या क्रिप्टोकरेंसी में पूंजीनिवेश जैसे झांसे और सपने दिखाने लगेंगे, दूसरी तरफ ऑनलाईन कर्ज देने वाले लोग ऐसे ही मौकों पर कर्ज देने को तैयार रहेंगे जिन्हें लेकर लोग रातों-रात करोड़पति बनने के अपने सपनों के लिए दांव लगा सकें। इसके साथ-साथ जैसा कि साइबर मुजरिम धड़ल्ले से कर रहे हैं, वे लोगों को सेक्सटॉर्शन में फंसाकर उनके बैंक-खाते खाली कर लेंगे, और उन्हें खुदकुशी तक के लिए मजबूर कर देंगे। यह पूरा सिलसिला एक मोबाइल फोन के नशे, और गैरजिम्मेदार इस्तेमाल के इर्द-गिर्द घूमता है। लोगों को यह समझना होगा कि टेक्नॉलॉजी की सहूलियतों से परे उसके खतरे क्या-क्या हैं। और लोग जब कर्ज देने वाली कंपनियों को अपने पूरे फोन की पहुंच दे देते हैं, तो वे अपने परिवार, और अपने दोस्तों की निजता को भी खत्म कर देते हैं।

यह सिलसिला लगातार बढ़ते चल रहा है, लोगों के हाथ में टेक्नॉलॉजी रॉकेट सरीखी तेज रफ्तार से आती जा रही है, लेकिन लोगों में समझ और जिम्मेदारी पैदल रफ्तार से आ रही है। पुलिस और जांच एजेंसियों की अपनी एक क्षमता है, और ठगे हुए, लुटे हुए लोगों को इस क्षमता पर बहुत अधिक भरोसा नहीं करना चाहिए कि दुनिया भर में बिखरे हुए मुजरिमों को हिन्दुस्तान की पुलिस कॉलर पकडक़र घसीटकर ले आएगी। दुनिया के अधिकांश देश इस तरह के साइबर-जुर्म के मामले में भारत की जांच एजेंसियों की पहुंच से अमूमन परे हैं। इसलिए भारत सरकार अगर चाहे तो हर मोबाइल फोन, हर लैपटॉप या डेस्कटॉप, और हर डेटापैक पर एक अतिरिक्त टैक्स लगाकर साइबर जागरूकता को तेजी से बढ़ाए, वरना आर्थिक अपराधों में नुकसान झेलने के अलावा समाज में लोगों के बीच निजी किस्म के जुर्म भी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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