
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

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क्या अजब आन-बान थी उसकी।
कैसा रुतबा” था, शान थी उसकी।।
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छोटी बस्ती में था मकाॅं अपना।
शहरे-दिल में दुकान थी उसकी।।
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हर घड़ी इम्तेहान से गुज़रा।
कितनी ऊॅंची उड़ान थी उसकी।।
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उसकी तस्वीर बात करती थी।
ख़ामुशी भी ज़ुबान थी उसकी।।
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या इशारों का वार था दिल पर।
या नज़र मेहरबान थी उसकी।।
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उसकी जादूगरी का अंत न था।
एक तोते में जान थी उसकी।।
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तीर साधे हुए था वो “अनवर”।
मेरी जानिब* कमान थी उसकी।।
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शब्दार्थ:-
रुतबा*शान वैभव
जानिब*तरफ़
शकूर अनवर
9460851271
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