
ग़ज़ल
-डॉ. रामावतार सागर-

नहीं कल मेरी ड्यूटी नहीं है
मगर वो भी तो कल फ्री नहीं है
देखता हूं उसको ख़यालों में
जिसको मेरी कदर भी नहीं है
मैं जानता हूं तेरी सीरत भी
तेरे जैसा कोई हसीं नहीं है
बहा दो फूल ये अब दरिया में
पहले जैसी ताजगी नहीं है
चलो वादा करो कल मिलने का
फिर ये फोन करो गाड़ी नहीं है
आंखों में बसाना चाहता हूं
क्योंकि दिल में वो बसती नहीं है
ये मुमकिन हो तो कैसे सागर
ख्यालों में कोई नदी नहीं है
डॉ. रामावतार सागर
कोटा, राजस्थान
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