टैरिफ़ वॉर ठहरा है, स्थगित नहीं हुआ

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-देशबन्धु में संपादकीय 

एक अप्रत्याशित फैसले के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया भर के देशों के खिलाफ़ छेड़ा गया टैरिफ़ युद्ध 90 दिनों के लिये रोक लिया है। हालांकि उन्होंने अपनी मंशा साफ़ कर दी है कि वे ‘रेसिप्रोकल टैरिफ़’ के अपने फैसले पर अडिग हैं। 75 देश ऐसे हैं जो ट्रम्प के इस व्यवसायिक युद्ध विराम से कुछ राहत तो पायेंगे लेकिन उनकी यह आशंका अभी खत्म नहीं हुई है कि 90 दिनों के बाद जब बढ़ी हुई दरें लागू होंगी तो उनके कारोबार का क्या होगा। साथ ही, अपने मुख्य प्रतिस्पर्धी चीन को राहत देने की बजाय उसकी सामग्रियों पर 125 प्रतिशत टैरिफ़ लागू करने का ऐलान कर साफ़ कर दिया है कि वह अपने वैचारिक प्रतिद्वंद्वी के साथ कारोबार के मोर्चे पर बड़ी लड़ाई से पीछे नहीं हट रहे हैं। हालांकि चीन भी अमेरिकी सामानों पर शुल्क बढ़ाकर माकूल जवाब दे रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति के इस ऐलान के साथ ही एशियाई समेत दुनिया भर के शेयर बाजारों में बड़ा उछाल आया। अमेरिकी शेयर मार्केट ने तो सबसे बड़ी छलांग लगाई जो ट्रम्प के ऐलान के बाद नीचे चला गया था। ट्रम्प ने यह निर्णय अपने सहयोगियों की सलाह पर लिया जो भारतीय समयानुसार बहुत सुबह हुआ था। यह भी कहा जाता है कि टैरिफ़ बढ़ाने की घोषणा से अमेरिका समेत विश्व भर के शेयरों में जो गिरावट आई और निवेशकों की राशि डूबी थी, (तकरीबन 19 लाख करोड़ रुपये), उससे अमेरिका में ही चिंता की लहर दौड़ गयी थी। अमेरिका के सभी 50 राज्यों में जो ट्रम्प विरोधी प्रदर्शन हुए, उसका प्रमुख कारण बढ़ाया गया टैरिफ़ ही था। ट्रम्प व रिपब्लिकन सरकार की लोकप्रियता इसके कारण देश में तो गिरी ही, अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी उसकी आलोचना हो रही है। अमेरिकियों का मानना है कि इससे अमेरिका दुनिया भर में अपने सहयोगियों के साथ साख भी खो रहा है।

चाहे यह फैसला कुछ दिनों के लिये आगे बढ़ा हो पर ट्रम्प इसे लेकर जिस कदर उत्साहित हैं उससे लगता नहीं कि वे यह कदम वापस लेंगे। अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उन्होंने जो भाषण दिया उसमें लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित राष्ट्राध्यक्ष की बजाय किसी तानाशाह की सी ध्वनि निकलती है। पहले तो उन्होंने कहा कि ‘इस ऐलान के बाद अमेरिका में इतना पैसा आ रहा है जितना पहले कभी नहीं देखा गया।’ वास्तविकता तो यह है कि अभी इस फैसले पर ठीक से अमल शुरू भी नहीं हुआ है पर अमेरिकी नागरिकों में चिंता है कि बहुत सी वस्तुएं उन्हें महंगी मिलेंगी, खासकर जिनके लिये अमेरिका पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। इतना ही नहीं, ट्रम्प ने निर्लज्जतापूर्वक एक ऐसी गर्वोक्ति की जो कि शर्मनाक व असंसदीय है; जिसे न उद्धृत किया जा सकता है और न ही अभिव्यक्त। अमेरिकी शब्दावली में कहे गये उनके बयान का आशय यह था कि दुनिया एक तरह से उनके कदमों में आ गयी है।

90 दिन टलने के कारण जो उछाल आया वही बताने के लिये काफी है कि ट्रम्प का टैरिफ़ वॉर किस कदर से शेयर बाजारों पर कहर बनकर टूटा है, तभी तो वह कदम, चाहे कुछ ही दिनों के लिये टालते ही शेयर बाजारों की सांसें लौट आईं। खुद अमेरिकी बाजारों का झूम उठना बताता है कि राष्ट्रपति का यह फ़ैसला अमेरिकी निवेशक भी नहीं झेल पायेंगे। इसके साथ यह भी ज़ाहिर हो गया है कि 1991 में अमेरिका प्रवर्तित वैश्विक अर्थव्यवस्था की ट्रम्प रत्ती भर परवाह नहीं करते। वैसे भी ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ के नारे पर जीतकर दूसरी बार जीतने वाले ट्रम्प के इस कदम से 3 माह दुनिया का व्यवसाय ऊहापोह में रहेगा। अलबत्ता, ट्रम्प के खासमखास मस्क को इस उछाल से बड़ा लाभ मिलने की सूचना है। एक वीडियो सामने आया है जिसमें ट्रम्प बता रहे हैं कि उनके इस कदम से उनके कुछ मित्रों को कितना लाभ मिला है।

वैसे जिस चीन को सबक सिखाने के नाम पर ट्रम्प ने इतना बड़ा प्रपंच रचा और सारी दुनिया को लपेटे में लिया है, वह चीन बिलकुल निश्चिंत है। अपने कुल उत्पादन का लगभग 70 फ़ीसदी वह निर्यात करता है- वह भी अपनी जनता की ज़रूरतें पूरी करने के बाद। चीन अमेरिकी वस्तुओं पर उतना निर्भर नहीं जितना कि अमेरिका चीन पर। उसे यदि अमेरिकी बाज़ार महंगे लगेंगे तो वह अपना उत्पादन दूसरे देशों में उतार सकता है। चीन अपने सस्ते उत्पादनों, शानदार लॉजिस्टिक्स और तेज़ डिलीवरी के चलते किसी भी देश का मुकाबला करता है। बहुत से एशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देश महंगी अमेरिकी वस्तुओं की बजाय सस्ती चीनी सामग्रियों को पसंद कर सकते हैं। ट्रम्प का टैरिफ़ वॉर बहुत से देशों के लिये विनाशकारी हो सकता है लेकिन चीन का इससे बेपरवाह होना लाजिमी है। बहुत से विशेषज्ञों का तो यह भी मानना है कि यह अमेरिकी दांव चीन के लिये वरदान साबित हो सकता है। विशेषकर, मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, छोटे-कल पुर्जों से बड़ी मशीनों आदि के लिये उसे नये बाज़ार मिल सकते हैं।

सम्भवतः इससे यह बात साबित हो सकती है कि कोई भी अदूरदर्शितापूर्ण फैसला लेने के जो नुकसान होते हैं वे वापस लेने या कुछ दिन टाल देने से और भी विनाशकारी साबित होते हैं। देखना होगा कि तीन माह बाद जब ट्रम्प-टैरिफ़ लागू होते हैं तो उसका असर कितना और किन देशों पर पड़ता है। सम्भवतः ज्यादातर देश इससे निपटने की तैयारियां कर लें। भारत को भी यही करना होगा। यदि सरकार सोचती है कि ट्रम्प से दोस्ती का वास्ता देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोई रियायत हासिल कर लेंगे तो वे खुशफ़हमी में हैं क्योंकि विदेश मंत्री एस. जयशंकर कह रहे हैं कि ‘इससे भारत को होने वाले नुकसान का अभी अंदाज़ा लगाना मुश्किल है लेकिन उम्मीद है कि नहीं होगा।’ गुरुवार को महावीर जयंती के कारण शेयर बाज़ार बन्द था इसलिये तेजी का लाभ उसे नहीं मिला। देखना होगा कि शुक्रवार को भारतीय शेयर बाज़ार का मूड क्या रहेगा।

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