-देवेंद्र यादव-

क्या राजस्थान में 2023 के विधानसभा चुनाव में, भाजपा की जीत का आधार कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं अशोक गहलोत और सचिन पायलट का मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद है ? क्योंकि राजस्थान में भाजपा के पास कांग्रेस सरकार को विधानसभा चुनाव में घेरने के लिए कोई मजबूत मुद्दा या आधार अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है।
प्रदेश के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत ने, कोरोना महामारी के चलते, विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रदेश में बेहतरीन काम किया। अशोक गहलोत की योजनाओं की गूंज देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सुनाई दी। मुद्दे पर आते हैं, मुद्दा यह है कि क्या 2023 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के जाल में फंसेगी ? क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर गहलोत और पायलट दोनों आमने सामने दिखाई दे रहे हैं।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सचिन पायलट से चल रहे विवाद को ठंडा नहीं पडने दे रहे। जैसे ही दोनों नेताओं का विवाद ठंडा पड़ने लगता है वैसे ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सार्वजनिक मंच पर आकर सचिन पायलट के उकसा देते हैं। दोनों नेताओं के बीच एक बार फिर से राजनीतिक जंग छिड़ चुकी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की तारीफ करते नजर आ रहे हैं तो वहीं सचिन पायलट पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच करवाने की मांग कर रहे हैं।
अशोक गहलोत और सचिन पायलट का मकसद एक ही है कि राज्य में 2023 में कांग्रेस की सरकार बरकरार रहे। दोनों नेताओं का मकसद एक है, तो फिर सार्वजनिक रूप से दोनों नेताओं के बीच विवाद क्यों है ? क्या अशोक गहलोत और सचिन पायलट भारतीय जनता पार्टी को अपने जाल में फसा रहे हैं, क्योंकि कुर्सी को लेकर कांग्रेस से ज्यादा घमासान भारतीय जनता पार्टी के भीतर है, और जब से अशोक गहलोत और सचिन पायलट का कुर्सी का विवाद सार्वजनिक हुआ है तब से भाजपा उम्मीद लगाकर बैठी है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की नाराजगी भारतीय जनता पार्टी को 2023 के विधानसभा चुनाव में फायदा पहुंचाएगी। शायद इसीलिए भाजपा के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी की चाहत रखने वाले नेताओं की तादाद बढ़ती जा रही है।
अब से पहले कांग्रेस प्रदेश में भाजपा के जाल में फंसती रही है। चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के भीतर कुर्सी को लेकर विवाद देखा जाता था। कोंग्रेस भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के जाल में यह सोचकर उलझ जाया करती थी कि भाजपा के नेताओं का विवाद चुनाव में कांग्रेस को फायदा पहुंचाएगा। मगर चुनाव के समय भाजपा के नेता एकजुट होकर चुनाव लड़ते हैं और जीत भी जाते हैं। इस बार कांग्रेस के नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट भाजपा को फंसा रहे हैं।
9 मई को कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी कर्नाटक में चुनाव प्रचार खत्म करके राजस्थान के माउंट आबू पहुंच गए हैं. और इसी दिन सचिन पायलट ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अजमेर से जयपुर तक की पैदल यात्रा शुरू करने का ऐलान कर दिया है।
राजस्थान में राहुल गांधी की मौजूदगी के बाद सचिन पायलट की भ्रष्टाचार के खिलाफ पदयात्रा करने की घोषणा राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है।
कांग्रेस ने जिस एकजुटता के साथ कर्नाटक विधानसभा का चुनाव लड़ा और एकता के कारण कर्नाटक में कांग्रेस सरकार बनाते दिखाई दे रही है जबकि कर्नाटक में बुजुर्ग नेता सिद्धारमैया और युवा नेता डीके शिवकुमार के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद था। मगर दोनों नेताओं का मुख्य मकसद यह था कि पहले राज्य में कांग्रेस की सरकार बनाएं, कुर्सी का फैसला सरकार बनने के बाद हो जाएगा। क्या राजस्थान में भी बुजुर्ग नेता अशोक गहलोत और युवा नेता सचिन पायलट के बीच कर्नाटक की तर्ज पर काम होगा ? क्योंकि दोनों ही नेताओं के अभी तक के बयानों पर नजर डालें तो दोनों ही नेता प्रदेश में 2023 का विधानसभा चुनाव जीतने की बात कर रहे हैं। दोनों नेताओं का दावा है कि कांग्रेस राज्य में लगातार अपनी दूसरी बार सरकार बनाएगी। ऐसे में कभी कभी अशोक गहलोत और सचिन पायलट का कुर्सी का विवाद भ्रमित सा लगता है। क्या भाजपा इस भ्रम में फंसेगी ? भाजपा में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर नेताओं की कतार इस ओर इशारा करते हुए दिखाई दे रही है।
देवेंद्र यादव, कोटा राजस्थान
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)