
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी जिन वर्गों, दलित, आदिवासी, पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक के हक और अधिकार की लड़ाई संसद से लेकर सड़क पर लड़ रहे हैं, उन वर्गों के कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता और पदाधिकारी कहां हैं। ये नेता राहुल गांधी की तरह और उनके साथ क्यों नजर नहीं आ रहे हैं। क्या यह कांग्रेस के भीतर प्रतीक के रूप में कांग्रेस की शोभा बढ़ा रहे हैं या फिर इन विभागों के अध्यक्षों में राजनीतिक दम नहीं है। उनकी अपनों के बीच जाने की हिम्मत नहीं है। कांग्रेस के भीतर अनुसूचित जाति और पिछड़ा जाति विभाग के मौजूदा अध्यक्ष, पारंपरिक कांग्रेसी नहीं हैं। कुछ समय पहले ही दोनों नेता कांग्रेस में शामिल हुए थे और उन्हें कांग्रेस हाई कमान ने बड़ी जिम्मेदारी दे दी। ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस के भीतर दलित और पिछड़ा वर्ग के नेताओं और कार्यकर्ताओं की कमी थी। दलित और पिछड़ा वर्ग में जमीनी नेता और कार्यकर्ता मौजूद हैं जिनका अपने-अपने समुदाय में गहरा और मजबूत प्रभाव है। लेकिन क्या मजबूरी थी कांग्रेस हाई कमान की जो उन्होंने अन्य दलों के नेताओं को कांग्रेस में शामिल करके महत्वपूर्ण विभागों का अध्यक्ष बनाया। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी वोट के अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं। यह यात्रा राहुल गांधी इसलिए निकाल रहे हैं क्योंकि बिहार में चुनाव आयोग ने एस आई आर कराया है। जिसमें बड़ी संख्या में दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से सुनियोजित तरीके से चुनाव आयोग द्वारा काटे जा रहे हैं। यह आरोप कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के नेता चुनाव आयोग और भारतीय जनता पार्टी पर लगा रहे हैं। इसी के विरोध में राहुल गांधी बिहार में वोटर का अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं। राहुल गांधी बिहार में दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को जागरूक भी कर रहे हैं। उनको अपना संवैधानिक अधिकार और हक क्या है यह भी बता रहे हैं। मगर क्या राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर बड़े-बड़े पद लेकर बैठे दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं को भी जागरुक कर रहे हैं। उन्हें वह उनकी जिम्मेदारी का अहसास रहे हैं कि उन्हें पद इसलिए मिले हैं क्योंकि वह अपने-अपने वर्ग के लोगों को उनका हक और अधिकार दिलाएं। क्या कांग्रेस के अंदर बड़े पदों पर बैठे नेता यह काम कर रहे हैं। यदि यह जागरूक और जिम्मेदार होते तो राहुल गांधी को आज अकेले बिहार में दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के हक और अधिकार के लिए यात्रा नहीं करनी पड़ती। कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अधिकांश बड़े पदों पर दलित आदिवासी पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के नेता मौजूद हैं। मगर जब राहुल गांधी को अकेले संघर्ष करते हुए देखते हैं तब लगता है कि ये नेता केवल कांग्रेस के भीतर प्रतीक के तौर पर हैं। यदि कांग्रेस के दलित आदिवासी पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक वर्ग के नेता अपने-अपने वर्ग के लोगों के बीच सक्रिय होते तो राहुल गांधी को कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूचियों से गायब होने का पता पहले ही लग जाता। राहुल गांधी को यात्रा करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। मैं लगातार लंबे समय से बता रहा था कि कांग्रेस हाई कमान को ईवीएम मशीनों पर नहीं बल्कि मतदाता सूचियों पर ध्यान देना चाहिए। कांग्रेस के पदाधिकारी केवल पद लेकर अपना रुतबा दिखाते हैं। जमीन पर वह नजर नहीं आते हैं। राहुल गांधी कुंडली मारकर बैठे नेताओं की बैठक लेकर पूछे की उन्होंने अपने वार्ड में कितने मतदाताओं के नाम जुड़वाए। कांग्रेस के नेताओं को केवल टिकट कैसे प्राप्त किया जाए यह आता है। उन्हें चुनाव कैसे जीता जाए यह नहीं आता है। यदि आता तो वह चुनाव से पहले मतदाता सूचियो पर गंभीरता से ध्यान देते। जैसे भारतीय जनता पार्टी के नेता और उसके जमीनी कार्यकर्ता ध्यान देते हैं।अपने पारंपरिक मतदाताओं के यदि वोटर लिस्ट में नाम नहीं है तो उनके नाम जुड़वाते हैं। सवाल यह है कि वह दर्जन भर से भी अधिक नेता कहां है जो कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मौजूद हैं और दलित आदिवासी पिछड़ों और अल्पसंख्यवर्ग के कांग्रेस के भीतर बड़े नेता कहलाते हैं। क्या उन्हें राहुल गांधी के मिशन को अपने-अपने समुदाय में आगे नहीं बढ़ना चाहिए। इस पर राहुल गांधी को ही मंथन करना चाहिए क्योंकि कहा जाता है कि यह नेता राहुल गांधी या प्रियंका गांधी की पसंद के हैं।
देवेंद्र यादव,कोटा राजस्थान,मोबाइल नंबर-9829678916