धर्म और जाति के इर्द गिर्द है बिहार की राजनीति

lalu yadav nitish
लालू यादव परिवार के साथ नीतीश कुमार। फाइल फोटो

-विष्णु देव मंडल-

विष्णु देव मंडल

बिहार की राजनीति हमेशा से जाति और धर्म पर आधारित रही है। 1990 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक प्रादुर्भाव कमंडल बनाम मंडल रही है। अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति की बदौलत ही लालू यादव ने बिहार में डेढ़ दशक तक एकक्षत्र शासन किया अंतर सिर्फ इतना है कि लालू यादव कांग्रेस के खिलाफ लड़कर मुख्यमंत्री बने थे। अब वह भाजपा के खिलाफ राजनीतिक लडाई लड़ रहे हैं। 90 के दशक में उनका स्लोगन हुआ करता था भूरा बाल साफ करो अर्थात भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला को साफ करो। इस स्लोगन को बिहार में पिछड़े जातियों के लोगों से भरपूर समर्थन मिल रहा था। उस समय लालू यादव किसी अवतार से कम नहीं थे। उनकी सभाओं में भारी भीड़ जुटती थी। लालू यादव सर्वाधिक चर्चा में उस वक्त आए जब 23 अक्टूबर 1990 को उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी का राम रथ यात्रा को बिहार के समस्तीपुर में रोक दिया। परिणामस्वरूप केंद्र में भाजपा के समर्थन से चल रही राष्ट्रीय मोर्चा जनता दल की सरकार जो वी पी सिंह के नेतृत्व में शासन में थी समर्थन वापसी के कारण गिर गई।

बहरहाल तीन दशक बीत जाने के बाद भी राष्ट्रीय जनता दल नेता लालू प्रसाद यादव 2024 के लोकसभा चुनाव धर्म और जाति के आधार पर ही लड़ना चाह रहे हैं। यहां उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों भाजपा नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि उन्होंने हिंदुस्तान के 135 करोड़ आवाम से जो वादा किया था राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने का वह वादा पूरा करने जा रहे हैं। अगले साल 2024 जनवरी में राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। उन्होंने इशारों ही इशारों में विपक्षी पार्टियों अर्थात सेकुलर दलों पर निशाना साधते हुए कहा था कि जो हमें राम मंदिर बनाने के तारीख पूछ रहे थे उन्हें इस बात का भान होना चाहिए की भाजपा जो वादा करती है उसे पूरा करती है।
गृह मंत्री के इस बयान के बाद बिहार राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष जगदानंद सिंह का यह बयान की विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण करना सही नहीं है जबकि अयोध्या में विवादित जमीन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसला के बाद मंदिर का निर्माण कार्य चल रही है। वहीं राष्ट्रीय जनता दल नेता शिक्षा मंत्री ने रामचरितमानस, रामायण सुंदरकांड जैसे हिंदू धार्मिक ग्रंथों पर सवाल उठाया है। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव के अनुसार रामचरितमानस और सुंदरकांड महिलाओं और दलित वर्ग को अपमान करने वाला धर्म ग्रंथ है। इस पर अब राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो चुका है। जहां भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय जनता दल हिंदू धर्म के खिलाफ बता रहे हैं, वहीं शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर अपने बयान पर अडिग हैं। संकेत स्पष्ट है की राष्ट्रीय जनता दल बिहार में धर्म और जाति के आधार पर ध्रुवीकरण करना चाहते हैं। वह पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलित समुदाय समेत अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं। लोगों में यह संदेश देने की प्रयास है कि भारतीय जनता पार्टी सिर्फ उच्च जाति और वैश्य बनिया की पार्टी है।
गौरतलब है कि बिहार सरकार 2024 के चुनाव से पहले जातीय जनगणना करा रही है जिसका मुख्य उद्देश जातीय ध्रुवीकरण करवाना है। इन दोनों का राजनीति हैसियत ही जात पात टिका हुआ है।
जहां यादव और मुसलमान का थोक वोट लालू यादव के साथ है वहीं पिछड़ा अति पिछड़ा वोट अब तक नीतीश कुमार के पाले में रहा है।
लेकिन कुछ महीने पहले बिहार के 3 सीटों पर हुए उपचुनाव में महागठबंधन के प्रत्याशी की हार के बाद महागठबंधन के नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को ऐसा महसूस होने लगा है उनके आधार वोट अब छिटकने लगे है। यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है की 90 के दशक से लेकर अब तक बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार 15 सालों तक रही है वहीं 17 सालों से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हुए हैं। राज्य में भूख भय और भ्रष्टाचार व्याप्त है। पलायन चरम पर है। अपराधी बेलगाम हैं। बिहार सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं करप्शन के भेंट चढ़ चुकी हैं। अपने आधार वोट खिसकता देख नीतीश कुमार समाधान यात्रा पर हैं। जनता दल यूनाइटेड के नेता और कार्यकर्ता मायूस हैं। पार्टी में फूट पड़ने की संभावना प्रबल हो चुकी है। ऐसी स्थिति में आगामी लोकसभा चुनाव में संभावित हार के डर से पिछड़ा अति पिछड़ा और दलित समुदाय के नेता कहलाने वाले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जाति और धर्म के नाम पर एक बार फिर बिहार के जनता को गोलबंद करने के प्रयास में हैं।
हालांकि नीतीश कुमार और उनकी दल के नेताओं ने राम मंदिर निर्माण और हिन्दूओं के धार्मिक ग्रंथों पर कुछ नहीं कहा है लेकिन नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा है और वह बिहार में जातीय जनगणना करवा रहे हैं।
राजनीतिक पंडितों के अनुसार बिहार राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष जगदानंद सिंह और शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव का बयान रणनीति का हिस्सा है। इन सब बयानों के पीछे लालू प्रसाद यादव की सहमति है ताकि जातीय ध्रुवीकरण के बदौलत वह बिहार में भाजपा के खिलाफ माहौल बना सकें। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के खिलाफ इन दोनों दलों को दूसरा कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि बिहार में जातीय जनगणना करवा रही है और बिहार में यहां जताने की कोशिश की जा रही है कि भाजपा जातीय जनगणना के विरोधी है। वह ओबीसी, अल्पसंख्यक और अति पिछड़ी जातियों के हितैषी बिल्कुल नहीं है।
महागठबंधन दलों का प्रयास है बिहार में भारतीय जनता पार्टी को संसदीय चुनाव में शिकस्त देकर केंद्र में सरकार बनाने से रोक दे। जानकारों का कहना है कि नीतीशकुमार और लालू प्रसाद यादव को आगामी लोकसभा चुनाव में विकास के नाम पर वोट मांगने का कोई हैसियत नहीं है, क्योंकि लालू प्रसाद 15 सालों में बिहार में भूख भ्रष्टाचार और भय का माहौल पैदा किया। वहीं नीतीश कुमार बिहार में बुनियादी सुविधा तो उपलब्ध कराई लेकिन बार.बार गठबंधन बदलने के कारण अब मतदाताओं के लोकप्रियता खो चुके हैं।

राजनीतिक अवसान के डर से जातीय जनगणना
महागठबंधन के अगुवाई कर रहे नीतीश कुमार को पता चल गया है उनके बार बार गठबंधन बदलने के कारण जनता के बीच विश्वसनीयता गवा चुके हैं। इसलिए जातीय सर्वेक्षण के जरिए वह बिहार में अगड़ा बनाम पिछड़े की राजनीति करने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए बिहार में जातीय सर्वेक्षण का समर्थन राष्ट्रीय जनता दल और उनके सहयोगी दल कर रहे हैं। जिनका मुख्य उद्देश्य जातीय ध्रुवीकरण के सिवाय और कुछ नहीं है। क्योंकि 32 सालों के शासन में 15 साल लालू प्रसाद यादव सत्ता में रहे लेकिन बिहार के लोगों के लिए बुनियादी सुविधा भी बहाल नहीं करा पाएए।लालू यादव के शासन के कालखंड को ही नीतीश कुमार जंगलराज कहा करते थे। उसी के शासनकाल में अपराध चरम पर थे जिनका जिक्र नीतीश कुमार हर सभा में करते थे। वह 2020 का विधानसभा के चुनाव भी राजद के कुशासन के डर दिखाकर ही जीते हैं। लेकिन अब पुनः लालू यादव से हाथ मिला कर महागठबंधन का हिस्सा बन गए हैं।
काबिले गौर बात यह है की पिछले तीन दशक से लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार सत्ता में रहे हैं अपने शासन के दौरान दोनों बिहार के विकास में कोई खास योगदान नहीं दे पाए। राज्य में अशिक्षा, गरीबी, भ्रष्टाचार, पलायन चरम पर है। बाढ़ और सूखा से हर साल बिहार को जूझना पड़ता है। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव और नीतीश के लिए कडी चुनौती है।

(लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

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