
-विष्णुदेव मंडल-

पटना। राजनीति में नीतीश कुमार की राजनीति को समझाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। जनसंघ के आधार स्तंभ रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्म दिवस पर 25 सितंबर को नीतीश कुमार का पहुंचाना और माल्यार्पण करना इस बात का संकेत माना जा रहा है कि नीतीश कुमार कभी भी किसी के दबाव में नहीं आते बल्कि वह किसी पर दबाव बना डालते हैं।
इंडिया एलायंस अर्थात विपक्षी गठबंधन के सूत्रधार रहे नीतीश कुमार पिछले कुछ महीनो से जो भी कुछ कर रहे हैं उसे आप अचरज के नजर से देख सकते हैं। मसलन 16 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेई की समाधी पर पहुंचते हैं, माल्यार्पण करते हैं और उनके साथ किए गए कामों का बखान भी करते हैं। 9 सितंबर को राष्ट्रपति के रात्रि भोज में शिरकत करते हैं और इंडिया एलायंस द्वारा 14 वरिष्ठ पत्रकारों को बहिष्कार के खिलाफ असहमति जता देते हैं। अर्थात इंडिया अलाइंस से इतर बायकाट का समर्थन नहीं करना यह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि नीतीश कुमार इंडिया एलायंस में तो है लेकिन वह अभी भी किसी के दबाव में नहीं है वह इस एलायंस को दबाव में रखना चाहते हैं।

यहां गौरतलब है कि 25 सितम्बर 2022 को नीतीश कुमार को पंडित दीनदयाल के जयंती याद नहीं रहती। वह हरियाणा जाते हैं और पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के जन्म सदी पर विपक्षी एकता को सूत्रधार बनते हैं और संघ मुक्त भारत बनाने का दम भरते हैं। वही नीतीश कुमार 25 सितंबर 2023 को दिवंगत उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल को भूल जाते हैं और संघ के जन्मदाता रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्म सदी पर पटना में उनके प्रतिमा पर माल्यार्पन करते हैं।
बताते चले की 25 सितंबर 2023 को जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पंडित दीनदयाल उपाध्याय के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर रहे थे उस समय बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी मौजूद थे। यह वही तेजस्वी यादव है जिनका पूरा परिवार संघ मुक्त भारत चाहते हें और भारतीय जनता पार्टी एवं संघ को दिन और रात गालियां देते हैं।
बहरहाल नीतीश कुमार की राजनीति ने जहां इंडिया एलायंस को कंफ्यूज कर दिया है वहीं बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ राजनीति करने वाले लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ,पूर्व इस्पात मंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष रामचंद्र प्रसाद सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी एवं बिहार भाजपा नेताओं को असमंजस में डाल दिया है।
बिहार के राजनीतिक पंडितों को माने तो राजनीति में नीतीश कुमार का कोई सगा नहीं है। यदि कोई उन पर अत्यधिक भरोसा करते हैं तो वह मुंह की खाते हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है की जब से बिहार में लालू के साथ नीतीश कुमार ने गठबंधन किया है तब से राष्ट्रीय जनता दल के मंत्रियों और नेता नीतीश कुमार के खिलाफ बयान देते रहे हैं। बात चाहे पूर्व मंत्री सुमित सिंह की हो या फिर जगदानंद सिंह, श्री चंद्रशेखर यादव श्री सुमित सिंह की। सभी नीतीश कुमार के खिलाफ बोलते रहे हैं।
चार दशकों से राजनीति पर लिखने वाले पत्रकार रतन कुमार रवि का कहना है कि नीतीश कुमार इंडिया अलाइंस को आगे करना चाहते है कि अगर वह नीतीश कुमार को दूल्हा नहीं बनाया तो वह फिर से भाजपा के साथ मिलकर इंडिया अलाइंस को हवा निकाल सकते हैं। इतिहास बताता है कि जब भी नीतीश कुमार भाजपा के साथ होते हैं बिहार में एनडीए को बढ़त मिलती है। उनका यह भी कहना था कि नीतीश कुमार बेदाग छवी के नेता है बिहार में अति पिछड़ा पिछड़ा और दलित समुदाय से लेकर अल्पसंख्यकों में भी उनके पैठ है। इंडिया एलायंस की तीन बार बैठक हो चुकी हैं लेकिन तीनों बैठक में संयोजक के लिए नीतीश कुमार का नाम का आगे नहीं बढ़ाना ही नीतीश कुमार के लिए चिंता का सबब है। यह बात अलग है कि वह अपने आप को प्रधानमंत्री का दावेदार नहीं मानते हैं लेकिन उनके अंदर प्रधानमंत्री बनने की लालसा प्रबल है। वह बोलते नहीं है लेकिन वह अपने फायदे के लिए कुछ करने से गुरेज भी नहीं करते।
बहरहाल बिहार ही नहीं घटक दलों में नीतीश कुमार ने बैचेनी बढा दी है। वहीं ं बिहार के सभी राजनीतिक दल जो नीतीश कुमार के खिलाफ राजनीति कर रहे हैं उनकी भी धड़कने तेज हैं कि आखिर नीतीश कुमार किधर जाएंगे?
खबर यह भी है कि लालू यादव द्वारा इंडिया एलायंस बनाने के क्रम में नीतीश कुमार को संयोजक नहीं घोषित नहीं करने से नीतीश कुमार नाराज हैं। इंडिया अलाइंस की सभी बैठक में लालू प्रसाद यादव मौजूद रहे लेकिन उन्होंने कभी भी नीतीश कुमार को संयोजक या फिर प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में घोषणा नहीं की। इन बातों को लेकर नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल से खफा चल रहे हैं।
(लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

















