
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, पार्टी के भीतर राष्ट्रीय स्तर पर नई लीडरशिप डेवलप करने का प्रयास कर रहे हैं। उनका यह प्रयास, कितना सफल होगा, और कांग्रेस कितनी मजबूत होगी यह तो, समय बताएगा, मगर उन्होंने जिन नेताओं को पारंपरिक मतदाताओं को कांग्रेस में वापसी करने की जिम्मेदारी दी है और भरोसा किया है क्या वह नेता सफल हो पाएंगे, और क्या वह राष्ट्रीय स्तर के मजबूत नेता बन पाएंगे यह एक बड़ा सवाल है। सवाल इसलिए है क्योंकि राहुल गांधी ने कांग्रेस के दो महत्वपूर्ण संगठन ओबीसी और दलित प्रकोष्ठ का जिन्हें दायित्व सौंपा है उन नेताओं को कांग्रेस में शामिल कर राहुल गांधी ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। दोनों नेताओं डॉ अनिल जय हिंद और राजेंद्र पाल गौतम को ओबीसी और दलित प्रकोष्ठों का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। ये पारंपरिक मतदाताओं की कांग्रेस में वापसी करवा पाएंगे, यह देखना होगा। यह महत्वपूर्ण सवाल इसलिए है क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी दलित वर्ग से आते हैं। खरगे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद, कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं का विश्वास कांग्रेस के प्रति वापस लौटा है। इसका उदाहरण 2024 का लोकसभा चुनाव है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 60 का आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी मगर खरगे के कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीट जीती और एक दशक बाद लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनने का राहुल गांधी को अवसर प्राप्त हुआ।
सवाल यह है कि दलित, आदिवासी और ओबीसी के बड़े-बड़े नेता मौजूद होने के बाद भी पारंपरिक मतदाता कांग्रेस से क्यों खिसकता गया। क्या वह वोट बैंक आयातित नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी देने से वापस आ जाएगा। इसकी पहली झलक 25 जुलाई को नजर आएगी, क्योंकि डॉ अनिल जय हिंद के ओबीसी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के बाद दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर का पहला आयोजन है। इस आयोजन की तैयारी की बात करें तो, कांग्रेस की विचारधारा से सहमत नेताओं को भी इस आयोजन में शामिल किया जाएगा या नहीं, क्योंकि राहुल गांधी और खरगे ने कहा था कि जो लोग कांग्रेस में नहीं है मगर उनकी विचारधारा कांग्रेसी है उन नेताओं को भी कांग्रेस से जोड़ा जाएगा और उन्हें कांग्रेस के भीतर जिम्मेदारी दी जाएगी।
25 जुलाई को ओबीसी का दिल्ली में बड़े आयोजन का होना कांग्रेस के नजरिए से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ समय बाद बिहार में विधानसभा का चुनाव है। मगर सवाल यह है कि बिहार में ओबीसी वर्ग के बड़े चेहरे पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को भी ओबीसी कांग्रेस के 25 जुलाई को होने वाले आयोजन में बुलाया या नहीं। क्योंकि बिहार में कांग्रेस के लिए पप्पू यादव संजीवनी बूटी का काम कर रहे हैं और प्रयास कर रहे हैं कि बिहार में कांग्रेस मजबूत हो और 2025 के विधानसभा चुनाव में सफल हो। यदि ओबीसी कांग्रेस का आयोजन बिहार चुनाव को लेकर है तो, पप्पू यादव को भी बुलाना चाहिए। पप्पू यादव ना केवल बिहार बल्कि देश में ओबीसी वर्ग के बड़े राजनीतिक चेहरा है। जिनका प्रभाव ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदाय में खासकर युवा और महिलाओं के बीच है। राहुल गांधी जब यह कहते हैं कि कांग्रेस की विचारधारा को मानने वाले लोगों को कांग्रेस में सम्मान और जिम्मेदारी देंगे क्या ऐसे में पप्पू यादव को ओबीसी कांग्रेस के आयोजन में बुलाकर सम्मान नहीं देना चाहिए। जो नेता बिहार में कांग्रेस को मजबूत कर बिहार में कांग्रेस की वापसी कराने के लिए दृढ़ संकल्पित है उस पप्पू यादव को ओबीसी कांग्रेस के आयोजन में बुलाना चाहिए और सम्मान देना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं। मोबाइल नंबर, 9829678916)