
-देवेंद्र यादव-

कहावत है, बंद हो मुट्ठी तो लाख की खुल गई तो फिर खाक की। बिहार में 4 सितंबर गुरुवार के दिन भाजपा महिला मोर्चा के द्वारा बंद के आयोजन में यह कहावत चरितार्थ होते दिखी। भाजपा के बिहार बंद के आव्हान पर सारे देश की नजर थी। नजर इसलिए थी क्योंकि एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की जनता को वर्चुअल संबोधित करते हुए कहा था कि कांग्रेस और राजद के मंच से दरभंगा में मेरी स्वर्गवासी माता जी को अपशब्द कहे गए। इसी के विरोध में भाजपा महिला मोर्चा ने आधे दिन का बिहार बंद का आह्वान किया। चर्चा होने लगी थी कि भाजपा ने आधे दिन का बंद क्यों रखा। बीजेपी के नेता भी समझ रहे थे की बंद सफल नहीं होगा। और हुआ भी ऐसा ही।
बिहार में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन की वोटर का अधिकार यात्रा के बाद बिहार की जनता का मिजाज और मूड क्या है। क्या वोट चोरी का मुद्दा, बिहार की जनता के बीच प्रभावी बन गया है या राहुल गांधी का यह मुद्दा हवा हवाई है। इसे परखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले बिहार की जनता के बीच वर्चुअल भावनात्मक भाषण दिया। दूसरे दिन महिला मोर्चा के द्वारा आधे दिन का बिहार बंद करने का आवाहन किया। राहुल गांधी की वोटर का अधिकार यात्रा में बिहार कांग्रेस के तमाम नेता और कार्यकर्ता और इंडिया गठबंधन एकजुट नजर आया। राहुल गांधी की यात्रा को बिहार की जनता ने जबर्दस्त समर्थन दिया। जहां तक राजनीतिक तुलना की बात करें तो राहुल गांधी की वोटर का अधिकार यात्रा से तुलना तब होगी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में राहुल गांधी की तरह यात्रा करेंगे। जहां तक बिहार बंद का सवाल है जैसा नजारा राहुल गांधी के नेतृत्व में एस आई आर के विरोध में बिहार में चक्का जाम आंदोलन में देखने को मिला वैसा नजारा भाजपा के बिहार बंद के आयोजन में नजर नहीं आया। एस आई आर के मुद्दे पर महागठबंधन बिहार में एकजुट नजर आया और चक्का जाम में बिहार की जनता ने महागठबंधन का सहयोग किया और समर्थन दिया। लेकिन भाजपा के द्वारा 4 सितंबर को किए गए बिहार बंद में एनडीए घटक दलों के नेता एकजुट नहीं दिखाई दिए। बल्कि नेता नजर ही नहीं आए और ना ही जनता का समर्थन मिला। यदि राजनीतिक और कुछ दिनों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के परिपेक्ष में देखें तो, यह बंद भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों के लिए चिंतन और मंथन करने का विषय है। भाजपा इस प्रयास में है कि वह बिहार में पहली बार अपनी दम पर सरकार बनाए। शायद अंदर ही अंदर एनडीए घटक दल के नेताओं को भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों की यह नीति रास नहीं आ रही है। एनडीए घटक दल के नेताओं के मन में भाजपा को लेकर संशय है और इसीलिए एनडीए घटक दल भाजपा के बंद में शामिल नहीं हुआ। यह भाजपा के लिए राजनीतिक नजरिए से चिंता का विषय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। जिस प्रकार से वोट के अधिकार यात्रा में कांग्रेस का कार्यकर्ता नेता और इंडिया गठबंधन के तमाम नेता एकजुट नजर आए क्या वैसी ही यात्रा बिहार में नरेंद्र मोदी करेंगे जिसमें एनडीए घटक दल इंडिया घटक दल की तरह एकजुट नजर आएगा। लेकिन 4 सितंबर के नजारे को देखने के बाद भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकार जोखिम नहीं उठाएंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में राहुल गांधी और उनकी रैली को चुनौती देने के लिए बिहार में लंबी यात्रा और रैली करें। राहुल गांधी की वोटर का अधिकार और वोट चोरी के मुद्दे ने बिहार के घर-घर में पैठ बना ली है। यदि 4 सितंबर को बिहार मैं बीजेपी महिला मोर्चा का बंद सफल हो जाता तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में यात्रा करके जनता के बीच जाकर भावनात्मक कार्ड खेलकर महागठबंधन के नारे वोट चौर गद्दी छोड़ के मुद्दे को ध्वस्त कर देते।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)