
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस की चुनाव में लगातार हार और पार्टी की कमजोरी पर ज्ञान बांटने वाले नेताओं की कमी नहीं है। लेकिन कांग्रेस लगातार चुनाव हार कर कमजोर क्यों हो रही है इसका कारण और समाधान नहीं बता रहे। इसके बजाय वह यह बता रहे हैं कि कांग्रेस के बीच बैठे स्लीपर सेल के कारण कांग्रेस कमजोर है और लगातार चुनाव हार रही है। पार्टी हाई कमान और राहुल गांधी का ध्यान इस पर नहीं है कि उनके बब्बर शेर भूखे हैं। खाने के लिए घर में दाना नहीं है। बब्बर शेर खाने का जुगाड़ करें या कांग्रेस के लिए काम करें। कहावत है भूखे पेट भजन नहीं होत गोपाला! यह कहावत भी कांग्रेस पर सटीक बैठती है क्योंकि कांग्रेस का पारंपरिक वोट दलित आदिवासी और मुस्लिम समुदाय से है। सभी जानते हैं कि इनकी आर्थिक स्थिति क्या है।
कांग्रेस के नेताओं ने सत्ता में रहकर खूब मलाई खाई मगर कार्यकर्ताओं की आर्थिक स्थिति पर ध्यान नहीं दिया। कांग्रेस का कार्यकर्ता अपना जीवन यापन करने के लिए जुगाड़ करते देखा गया और कुंठित होकर अपने घरों में बैठ गया।
यदि कांग्रेस की ग्राम इकाई और ब्लॉक इकाई पर नजर डालें तो ज्यादातर पदाधिकारी ऐसे हैं जिनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है। वह नेता आर्थिक तंगी के कारण कांग्रेस के कार्यों में सक्रिय नहीं होने की जगह निष्क्रिय दिखाई देते हैं। यह उनकी मजबूरी है क्योंकि वह आर्थिक तंगी से जूझ रहा है।
कांग्रेस की सत्ता में रहकर नेताओं ने इस पर ध्यान नहीं दिया। बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपने स्वार्थ के लिए दौडाते रहे। सत्ता में रहकर ना तो इसे देखा और ना ही इसका समाधान किया। नतीजा यह निकला की राहुल गांधी के बब्बर शेर निराश होकर घरों में बैठ गए। कांग्रेस चाहे ग्राम स्तर से लेकर ब्लॉक और जिला स्तर पर अपना संगठन खड़ा कर ले उसके सामने समस्या यही आएगी कि कांग्रेस के बब्बर शेर भूखे हैं और उनके पास घर चलाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। जब तक कांग्रेस अपने बब्बर शेरों के लिए यह व्यवस्था नहीं करेगी तब तक कांग्रेस राज्य हो या देश सत्ता से बाहर ही रहेगी। जब भी चुनाव होते हैं तब कांग्रेस पदाधिकारिी बूथ पर अपने एजेंट बनाने के लिए भटकते रहते हैं। लेकिन कांग्रेस मतदाता पोलिंग स्टेशनों पर अपने मजबूत बब्बर शेर खड़े नहीं कर पाती है। इसकी वजह कांग्रेस कार्यकर्ताओं की आर्थिक तंगी है। यदि कांग्रेस को मजबूत होकर चुनाव जीतना है तो इसका तुरंत समाधान कर समस्या का निस्तारण करना होगा। वरना कांग्रेस चाहे जितना भी संगठन में फेर बदल कर ले वही ढाक के तीन-पात नजर आएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)