राजस्थान कांग्रेस: लगातार कांग्रेस क्यों नहीं जीत पाती है, और 100 सीटों के पार क्यों नहीं होती है ?

क्या कॉन्ग्रेस गोविंद सिंह डोटासरा के फार्मूले पर मंथन कर रणनीति बनाएगी और जीतने वाले प्रत्याशियों को ही मैदान में उतारेगी या फिर स्वयंभू कद्दावर नेताओं को प्रत्याशी बनाएगी या फिर उनके उम्र दराज होने के बाद उनके परिवार के सदस्यों को प्रत्याशी बनाएगी ?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद, राजस्थान में भी चुनावी सरगर्मियां तेज हो जाएंगी, हालांकि कांग्रेस के भीतर उभरते हुए नेताओं और लंबे समय से अपना नंबर आने की आस लगाकर बैठे नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में स्वयंभू कद्दावर नेताओं का विरोध करना शुरू कर दिया है। लंबे समय से अपनी बारी आने का इंतजार करने वाले अनेक ऐसे नेता है जो राजनीति के अंतिम पड़ाव पर हैं जो इस चुनाव के बाद वह भी उम्र दराज नेताओं की गिनती में शुमार हो जाएंगे इसलिए 2023 का विधानसभा चुनाव राजनीतिक दृष्टि से उन नेताओं के लिए अंतिम चुनाव है क्योंकि इसके बाद नए युवा चेहरे सामने आ जाएंगे।

 

-देवेंद्र यादव-

devendra yadav
देवेंद्र यादव

जब से भारतीय राजनीति में, भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ है, तब से कांग्रेस ने राजस्थान में एक बार डेढ़ सौ सीटों से अधिक सीटें जीतकर सरकार बनाई थी, उसके बाद कांग्रेस कभी भी 100 से अधिक विधानसभा की सीटें नहीं जीत पाई ? यही नहीं कांग्रेस लगातार अपनी सरकार बनाने में भी असफल रही ?
क्या कारण है कि राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की अपेक्षा कांग्रेस के पास अधिक मजबूत नेताओं की भरमार होने के बावजूद भी कांग्रेस प्रदेश में 100 सीटों से ऊपर नहीं उठ पाती है और ना ही लगातार चुनाव जीतकर अपनी सरकार बना पाती है ? कांग्रेस के पास प्रदेश भर में कद्दावर नेताओं की कोई कमी नहीं है बल्कि यूं कहें कि भारतीय जनता पार्टी से कहीं अधिक कांग्रेस के पास कद्दावर नेता हैं मगर देखा गया है कि प्रदेश में कांग्रेस के भीतर स्वयंभू कद्दावर नेता भी मौजूद हैं जो स्वयं कभी भी लगातार विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाए ? कहने को तो यह नेता अपने-अपने जिलों और संभागों के कद्दावर नेता हैं मगर यह स्वयं भी लगातार विधानसभा के चुनाव नहीं जीत पाते हैं, यह नेता भी एक बार जीत और एक बार हार की थ्योरी पर टिके हुए हैं ?
एक बार जीत और एक बार हार वाले नेताओं का कद, पारिवारिक राजनीति पर टिका हुआ है यह नेता अपने परिवार की कांग्रेसी विरासत के कारण राजनीति में टिके हुए हैं और उम्र दराज होने के बाद, अपने परिवार के सदस्यों के लिए भविष्य की राजनीतिक जमीन तैयार करने में जुटे हुए हैं ? अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस इसी कारण राज्य में 100 सीटों के आंकड़े से ऊपर नहीं उठ पा रही है और ना ही वह लगातार विधानसभा का चुनाव जीत पा रही है ? भारतीय जनता पार्टी के भीतर अधिकांश ऐसे नेता मौजूद हैं जो अपने-अपने क्षेत्रों से लगातार चुनाव जीत रहे हैं भले ही राज्य में उनकी पार्टी की सरकार हो या नहीं हो फिर भी वह विधानसभा का चुनाव जीत रहे हैं ! इसकी वजह कांग्रेस से उलट यह है की भारतीय जनता पार्टी के पास विरासत वाले नेता नहीं है इन नेताओं ने स्वयं की दम पर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की और एक जीत के बाद निरंतर चुनाव जीतते आ रहे हैं ?
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 200 में से 100 सीटें जीती थी 100 सीटों पर कांग्रेस हारी थी क्या कांग्रेस ने हारने वाली सीटों पर कभी मंथन किया और क्या 2023 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों को कैसे जीते इसके लिए रणनीति बनाई है या फिर जो नेता इन सीटों पर कांग्रेस का टिकट पाकर चुनाव लड़े थे और हारे थे उन्हीं नेताओं पर कांग्रेस फिर से हमेशा की तरह दाव खेलेगी ? राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने, गत दिनों लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन के एक कार्यक्रम में कहा था कि, 2023 में कांग्रेस की लगातार सरकार बने इसके लिए जरूरी है कि कांग्रेस जीतने वाले प्रत्याशियों को टिकट दे यदि मैं भी अपने विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हार रहा हूं तो मेरे स्थान पर किसी जीतने वाले नेता को प्रत्याशी बनाएं ? यदि कांग्रेस को लगातार दूसरी बार सरकार बनानी है तो अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा और कठोर फैसले लेने होंगे ? गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं और चुनाव तक शायद डोटासरा ही अध्यक्ष रहेंगे ऐसे में क्या कॉन्ग्रेस गोविंद सिंह डोटासरा के फार्मूले पर मंथन कर रणनीति बनाएगी और जीतने वाले प्रत्याशियों को ही मैदान में उतारेगी या फिर स्वयंभू कद्दावर नेताओं को प्रत्याशी बनाएगी या फिर उनके उम्र दराज होने के बाद उनके परिवार के सदस्यों को प्रत्याशी बनाएगी ?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद, राजस्थान में भी चुनावी सरगर्मियां तेज हो जाएंगी, हालांकि कांग्रेस के भीतर उभरते हुए नेताओं और लंबे समय से अपना नंबर आने की आस लगाकर बैठे नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में स्वयंभू कद्दावर नेताओं का विरोध करना शुरू कर दिया है। लंबे समय से अपनी बारी आने का इंतजार करने वाले अनेक ऐसे नेता है जो राजनीति के अंतिम पड़ाव पर हैं जो इस चुनाव के बाद वह भी उम्र दराज नेताओं की गिनती में शुमार हो जाएंगे इसलिए 2023 का विधानसभा चुनाव राजनीतिक दृष्टि से उन नेताओं के लिए अंतिम चुनाव है क्योंकि इसके बाद नए युवा चेहरे सामने आ जाएंगे।
2023 के विधानसभा चुनाव में यह सबसे बड़ी चुनौती देखने को मिलेगी ?

देवेंद्र यादव, कोटा राजस्थान
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)

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