टीमों में बंटने के बजाय पहले एकजुट हो कांग्रेस!

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-देवेंद्र यादव-

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-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस विपक्षी एकता की बात करती है लेकिन पहले अपने घर में झांक कर देखे पार्टी कितने धडों में बंटी है। कांग्रेस पहले टीम सोनिया गांधी, टीम राहुल गांधी, टीम प्रियंका गांधी को तोड़कर टीम कांग्रेस बनाए तब पार्टी मजबूत भी होगी और ताकत के साथ भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला कर पाएगी। कांग्रेस के भीतर जब-जब भी किसी टीम का निर्माण हुआ तब तब कांग्रेस को फायदा होने की जगह नुकसान ही हुआ।
इंदिरा गांधी युग में टीम इंदिरा गांधी और टीम संजय गांधी बनी। परिणाम यह हुआ कि 1977 में कांग्रेस ने पहली बार अपनी सत्ता को खोया। श्रीमती इंदिरा गांधी ने पूरी कमान अपने हाथों में ली और 1980 में कांग्रेस वापस सत्ता में आ गई। इसी तरह 2004 से पहले श्रीमती सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ली और कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस के भीतर टीम सोनिया गांधी और टीम राहुल गांधी बनती हुई दिखाई देने लगी। परिणाम यह हुआ कि 2014 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में अपनी सरकार बना ली। इस एक दशक में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में एक और टीम का उदय हुआ। यह टीम प्रियंका गांधी नजर आने लगी। टीमों के निर्माण के कारण कांग्रेस को बड़ा नुकसान होता दिखाई दे रहा है क्योंकि कांग्रेस के आम कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है। राजनीति में अक्सर गुटबाजी की चर्चा होती है और कहा जाता है कि नेताओं के बीच चल रही गुटबाजी के कारण पार्टी को नुकसान हो रहा है। मगर गुट बाजी उच्च स्तर की हो तो नुकसान कितना बड़ा होगा, यह कांग्रेस के भीतर नजर आ रहा है।
कांग्रेस के भीतर टीमों का निर्माण गांधी परिवार ने नहीं किया है बल्कि उन नेताओं ने किया है जिनकी राजनीतिक जमीन खिसक रही थी। ये वे नेता थे जिनसे सोनिया गांधी और हाई कमान नाराज था। ऐसे नेताओं ने कांग्रेस के भीतर अपनी राजनीतिक हैसियत को बचाने के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का सहारा लिया। इन नेताओं ने ही टीम राहुल गांधी और टीम प्रियंका गांधी का निर्माण किया।
संजय गांधी की मृत्यु के बाद, राजीव गांधी राजनीति में आए तब राजीव गांधी के दून स्कूल के सहपाठियों ने इंदिरा गांधी युग में टीम राजीव गांधी का निर्माण किया। श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1985 में कांग्रेस ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर देश में अपनी सरकार बनाई मगर कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत 5 साल बाद ताश के पत्तों की तरह बिखर गई, और कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हो गई। कांग्रेस की हार के पीछे दून स्कूल के सलाहकारों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
मौजूदा वक्त में टीम राहुल गांधी और टीम प्रियंका गांधी में जेएनयू के छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है जो पार्टी के भीतर बड़े पदों पर बैठकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को सलाह दे रहे हैं। राहुल और प्रियंका को यह समझना होगा कि अचानक से कांग्रेस के भीतर नवजात सलाहकारों की बाढ़ कैसे आ गई। कांग्रेस को इन सलाहकारों की सलाह से चुनाव में फायदा हो रहा है या फिर नुकसान हो रहा है। कांग्रेस हाई कमान को यह भी देखना होगा कि इन सलाहकारों को गांधी परिवार तक किन नेताओं ने अपना राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने के लिए पहुंचाया। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को इंदिरा गांधी और श्रीमती सोनिया गांधी की तरह अपने आम कार्यकर्ताओं से मिलकर संवाद करना होगा। सही और अच्छी सलाह कांग्रेस का आम कार्यकर्ता ही राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को देंगा और इसके लिए दोनों नेताओं को कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं से सीधे मिलना होगा। यह नजारा राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समय अपनी आंखों से देखा भी है। इन यात्राओं के दौरान कांग्रेस का आम कार्यकर्ता राहुल गांधी के संघर्ष के समय उनके साथ खड़ा दिखाई दिया, जबकि मलाईदार पदों पर बैठे नेता राहुल गांधी के साथ चार कदम चलने में भी डगमगा रहे थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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