
-द ओपिनियन-
इस माह की शुरुआत में एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के उपवर्गीकरण की राज्यों को अनुमति दी थी। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इन वर्गों में क्रीमीलेयर का सुझाव भी दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आते ही देश में विरोध शुरू हो गया। बुधवार को तो इसके विरोध में भारत बंद रहा। आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति बन गई। लेकिन, इस आंदोलन पर एक सवाल भी उठ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी का आरक्षण छीनकर किसी अन्य वर्ग को देने की बात तो कही नहीं है जो इतना विरोध हो रहा है। ना आरक्षण समाप्त करने की बात कही है। उसने तो जो इन वर्गों में कुछ लोग पीछे रह गए हैं। उन तक लाभ पहुंचाने की बात कही है। इस बंद का विरोध राजस्थान भाजपा के एक दिग्गज नेता और कैबिनेट मंत्री किरोडीलाल मीणा ने किया। लेकिन विरोध का सुर इतना प्रबल है कि उनकी आवाज उस शोर में दबकर रह गई। वह कहते हैं भारत बंद बेतुका है, इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। बंद कराने वाले राजनीतिक रोटियां सेकना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आब्जर्वेशन दिया है। क्रीमीलेयर को लेकर जो फैसला दिया है, उसका सम्मान होना चाहिए। मैं उसका समर्थन करता हूं। मीणा आदिवासी समाज से आते हैं और वे साफ कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान होना चाहिए। वे यह भी कह रहे हैं कि इसका विरोध करने वाले अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं। लेकिन वोट गंवाने का डर इतना है कि सरकार भी इस विरोध के आगे पहले से ही झुकी हुई है।
गत दिनों जब एससी व एसटी के सांसद नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे तो उन्होंने स्पष्ट आश्वासन दिया कि आरक्षण संविधान के प्रावधान के अनुसार जारी रहेगा। साफ है उससे कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। अब यदि किसी राज्य में कोई सरकार उसका उप विभाजन करती है तो वह संबंधित वर्ग की वहां की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का आकलन करने के बाद ही कोई फैसला करेगी। लेकिन लगता है आरक्षण के मुद्दे को अब ऐसे गरमाया जा रहा है कि जैसे सरकार आरक्षण छीनने वाली है। लोकसभा चुनाव में यह नैरेटिव खूब चला। इसका फायदा भी विपक्षी दलों को मिला। भाजपा को उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र ,राजस्थान, हरियाणा समेत कई राज्यों में तगड़ा झटका लगा था। अब चार राज्यों हरियाणा, केंद्र शासित जम्मू कश्मीर , महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। उनमें से दो राज्यों हरियाणा और जम्मू कश्मीर में चुनाव तिथियों की घोषणा हो चुकी है, जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में तिथियों की घोषणा होनी शेष है। ऐसे में भाजपा कोई राजनीतिक जोखिम नहीं उठाना चाहेगी। लेटरल एंट्री के फैसले को वापस लेना भी इस बात का संकेत है कि केंद्र की भाजपा नीत सरकार फिलहाल कोई राजनीतिक जोखिम नहीं उठाना चाहती। वह नहीं चाहती कि आरक्षण जैसे मुद्दे को लेकर राजग में दरार पड़े। लेटरल एंट्री का विरोध भी आरक्षण को लेकर हुआ था। सरकार ने लचीला रुख अपनाते हुए तत्काल विज्ञापन को रद्द करने का निर्देश संघ लोक सेवा आयोग को दे दिया। आरक्षण और जातीय जनगणना इस समय कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के प्रिय सियासी हथियार बने हुए हैं और वे इनको लेकर सरकार पर हमले जारी रखेंगे। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की सार्थकता तभी है जब इन वर्गों के वंचित तबकों को यह बात बताई जाये कि उन्हें इसका किस तरह लाभ मिल सकता है। वे किस तरह इसका फायदा उठाकर आगे बढ़ सकते हैं। बिहार के एक नेता व केंद्र में मंत्री जीतनराम मांझी ने गत दिनों कहा था कि आरक्षण के आधार पर आईएएस, आईपीएस, इंजीनियर या अन्य अधिकारी चार -पांच जातियों से ही बन रहे हैं। उन्होंने कुछ जातियों का जिक्र करते हुए कहा कि आरक्षण का लाभ इन वर्गों तक पहुंचना चाहिए। लेकिन इसका राजग के भीतर विरोध भी बिहार के एक नेता चिराग पासवान ने किया। उन्होंने बुधवार को भी कहा, जब तक मैं हूं आरक्षण कहीं नहीं जाएगा। चिराग ने कल बंद के प्रति नैतिक समर्थन व्यक्त करते हुए कहा कि समाज के शोषितों व वंचितों की आवाज बनना हमारा कर्तव्य है। वहीं बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कहते हैं कि जब क्रीमीलेययर के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की राय मानने से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही इनकार कर दिया और इस पर कैबिनेट की मुहर लग गई तो इस मुद्दे पर कोई आंदोलन प्रदर्शन करने का औचित्य नहीं। ऐसे में किरोड़ी लाल मीणा की टिप्पणी प्रासंगिक लगती है। बिहार में आरक्षण के उप विभाजन के मुद्दे पर नेताओं में दो राय बनकर सामने आ रही है। कुछ नेता इसका विरोध कर रहे हैं, लेकिन कुछ नेता मुसाहिरों का जिक्र करते हैं जिनकी अधिकततर आबादी आज भी महागरीबी में रह रही है और उन तक इसका लाभ नहीं पहुंचा क्योंकि वे शिक्षित नहीं बन पाए हैं। आगे बढ़ने की पहली सीढी शिक्षा ही है। आरक्षण तो फिर मददगार बन सकता है।