
मेरा सपना… 15
-शैलेश पाण्डेय-
यूरोप दौरे में एमस्टरडम का नैसर्गिक और कलात्मक शिल्प सौंदर्य निहारने के बाद जर्मनी में हमारा दिन बहुत व्यस्त था। वहां पहुंचने के बाद लगा कि यूरोप के इस सबसे प्रमुख देश में पर्यटन केे लिए केवल एक दिन पर्याप्त नहीं था।
वैसे जर्मनी से मेरी विशेष यादें जुड़ी थी। मेरा बेटा अजातशत्रु 12वीं कक्षा में पढाई के दौरान इंटरनेशनल स्कूल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत जर्मनी में एक माह रहा था। हमने बहुत डरते हुए उसे जर्मनी भेजा था। इसी प्रोग्राम के तहत जर्मनी का छात्र यूलियान जयपुर में हमारे घर में एक माह साथ रहा था। हालांकि इस वाकये को करीब 12 वर्ष बीत गए लेकिन हमारी यूलियान के साथ बिताए दिनों की यादें अब भी ताजा हैं। जब हम जर्मनी पहुंचे तो सबसे पहले यूलियान और उसके पिता थॉमस बार और मां कैटरीन बार का ख्याल दिमाग में आया। इन्होंने जर्मनी प्रवास के दौरान मेरे बेटे का बहुत ख्याल रखा था। यहां तक कि यह पता चलने पर कि अजातशत्रु शाकाहारी है तो उन्होंने पूरे एक माह घर में नॉनवेज खाना नहीं बनाया था। इसलिए उनसे मिलने की बहुत इच्छा थी। लेकिन जिस क्षेत्र में यूलियान का परिवार रहता था वह हमारे यात्रा कार्यक्रम में शामिल नहीं था इसलिए उनसे मुलाकात नहीं हो पाने का अफसोस बना रहा। राजस्थान पत्रिका कोटा में हमारे ब्रांच मैनेजर रहे भानु जोशी जी का बेटा शांतनु भी बर्लिन में है। वह कोटा में मेरे साथ बैडमिंटन खेलता था। भानु जी का संदेश आया था कि शांतनु से जरूर मिलें। वह आपकी मेजबानी का बेसब्री से इंतजार कर रहा है लेकिन उन्हें भी मजबूरी बतानी पड़ी।

फ्रेंकफर्ट में रात बिताने के बाद सुबह हम सीधे स्टटगार्ट के मर्सिडीज बेंज म्यूजियम पहुंचे। म्यूजियम की इमारत दूर से किसी भी महानगर की कॉमर्शियल मल्टी स्टोरी या आधुनिक मॉल जैसी नजर आ रही थी। हम जब वहां जा रहे थे तो लगा नहीं था कि यहाँ कुछ विशेष होगा। टूर मैनेजर राहुल जाधव ने भी ऐसा कुछ नहीं बताया था लेकिन जब म्यूजियम में प्रवेश के साथ मोटर वाहनों के अजूबे संसार में पहुंचे तब पता चला कि राहुल ने हमारे रोमांच को बनाए रखने के लिए ज्यादा जानकारी नहीं दी थी। उन्होंने केवल यह बताया था कि ढाई से तीन घंटे में म्यूजियम देखने के बाद बस पर आना है। वहां से आगे धरती के स्वर्ग स्विट्जरलैंड की और बढ़ना है।
जर्मनी का स्टटगार्ट मर्सिडीज बेंज ब्रांड का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय है। म्यूजियम को विशेषतौर पर डिजायन किया गया है जो अनूठी क्लोवरलीफ अवधारणा पर आधारित है। इसका डिजायन भी विश्वविख्यात डच वास्तुशिल्प कंपनी ने बनाया है। तीन लेयर में बने इस म्यूजियम में शुरूआत तीसरी लेयर से हुई जहां हम लिफ्ट से पहुंचे थे।
रिसेप्शन पर ही हमें ईयरफोन दिए थे जिनमें म्यूजियम देखते वक्त कमेंट्री के जरिए जानकारी दी जाती थी। म्यूजियम को देखने का तरीका बिल्कुल वैसा था जैसे किसी विशाल पार्किंग में टॉप फ्लोर पर कार पार्क करने के बाद आप गोल गलियारे से धीरे- धीरे नीचे उतरते हैं।

मर्सिडीज.बेंज ऑटोमोबाइल में दुनिया का टॉप ब्रांड है और हम जिस बस में सफर कर रहे थे वह भी इसी ब्रांड की थी। इतनी सुविधाजनक बस की सवारी मैंने कभी नहीं की थी। मैदानी से लेकर दुर्गम पहाडी इलाकों तक के बस के सफर में कहीं एक झटका या दचका तक नहीं लगा। इसी से ब्रांड की गुणवत्ता का पता चल जाता है। जब इटली में हमारे कैप्टन रॉबर्ट का 22 घंटे डाइविंग का समय पूरा होने के बाद दूसरे ब्रांड की बस में सफर करना पड़ा तब यह अंतर स्पष्ट समझ में आ गया।

म्यूजियम में कंपनी के करीब 135 साल के ऑटोमेटिव सफर की सिलसिलेवार झलक देखने को मिलती है। इसमें घोड़ा गाडी की तरह दिखने वाली कार से लेकर आधुनिक रेसिंग कारों को बखूबी दर्शाया गया है। इनके अलावा ट्रक जैसे लोडिंग वाहन तो यात्रियों के लिए प्रारंभिक अवस्था में संचालित बस से लेकर आधुनिक आरामदेह बस तक शामिल है। कई ऐसी कार भी देखने को मिली जो हम आम तौर पर मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े महानगरों में देखते हैं। लेकिन इनकी कीमत यूरो में देखकर ब्रांड की वेल्यू समझ में आ गई। इसमें कंपनी की भविष्य कारों का कांसेप्ट भी दर्शाया गया था।
जहां म्यूजियम वयस्क लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ था वहीं बच्चे रेसिंग कारों को देखकर रोमांचित थे। क्योंकि ये रेसिंग कार देखने का मौका स्पोर्ट्स चैनल या फिल्मों में ही मिलता है। बच्चे तो रेसिंग कारों के पास खड़े होकर सेल्फी लेने में जुटे थे। सीनियर्स भी कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने भी यहां की यादों को बनाए रखने के लिए पुरानी से लेकर नए मॉडल की कारों के साथ फोटो लिए।
म्यूजियम भले ही मर्सिडीज बेंज का था लेकिन पूरे तीनों फ्लोर की दीवारों पर पोस्टर तथा अखबारों की कटिंग तथा फोटोग्राफ लगाए गए थे। यह जानकारी का एक अलग ही खजाना था। दीवारों पर वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन, महान मुक्केबाज मोहम्मद अली जैसी महान हस्तियों के साथ ही मानव के अंतरिक्ष के सफर के विशेष अवसरों के फोटो लगाए गए थे। इसमें जीवन के लगभग सभी पहलुओं को छुआ गया था। कुल मिलाकर करीब ढाई से तीन घंटे का यह समय स्मृतियों में अमिट छाप छोड़ने वाला था। म्यूजियम का सफर पूरा करने के बाद जब बाहर आए तो फोटोग्राफी का दौर फिर शुरू हुआ। जब सभी लोग एकत्र हुए तो आगे के सफर पर रवाना हो गए।