‘कहीं हम ठनठन गोपालों का देश तो नहीं बनने जा रहे हैं?’

-धीरेन्द्र राहुल-

सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका, प्रेरकवक्ता और राज्यसभा सदस्य श्रीमती सुधा मूर्ति ने अपने संस्मरण में बताया कि जब भी, मैं देश को लेकर शुरुआती यादों के बारे में सोचती हूं तो ब्रिटिश शासन के बाद का दौर याद आता है। मेरे पिता आर एच कुलकर्णी ने फिएट कार की बुकिंग की थी जो सत्रह बरस के अंतराल के बाद हमारे घर पहुंच सकी थी।

इसी से जुड़ी दूसरी घटना उदयपुर की हैं, जहां 1970 -71 में बजाज स्कूटर की बुकिंग के दौरान इतनी भीड़ उमड़ी की, उसे नियंत्रित करने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी जिसमें आठ लोगों की मौत हो गई थी।
उस समय यह माना जाता था कि बजाज स्कूटर बुक हो गया तो समझो लाॅटरी खुल गई। मध्यमवर्गीय परिवार पांच सात हजार प्रीमियम लेकर स्कूटर बेच देते थे।
उस समय यह राशि बहुत बड़ी होती थी।
सन् 1971 में उदयपुर की आबादी कितनी रही होगी? बमुश्किल पचास हजार। वहां इतनी भीड़ उमड़ना आश्चर्यजनक है।
लेकिन राजस्थान पत्रिका ने ‘ 25 साल पहले, आज के दिन’ काॅलम में यह जानकारी दी थी।

लेकिन स्कूटर और कारों की आज क्या स्थिति है?

डीलर्स एसोसिएशन फाडा के अनुसार देश के विभिन्न ऑटो डीलर्स के पास आठ लाख कारें बिना बिके खड़ी धूल खा रही हैं।
कारण बताया गया कि कारें खरीदने के लिए लोगों के पास पैसा नहीं है, नौकरियां नहीं है। आईआईटी पास 40 फीसद इंजीनियरों का प्लेसमेंट नहीं हो पा रहा है तो अन्य की क्या हालत होगी, समझा जा सकता है।

फाडा से संबंधित वीडियो मैंने कोटा के कुछ पत्रकार साथियों को भेजा था और उनसे रिक्वेस्ट की थी कि कोटा में कारों और स्कूटरों की बिक्री की क्या स्थिति है?

अगर फाडा का यह दावा सच है तो क्या लोगों के जेब में पैसा नहीं है या इलैक्ट्रिक वाहनों के चलते ये पैट्रोल डीजल के वाहन नहीं बिक पा रहे हैं। इन कारणों की पड़ताल होनी चाहिए।

कहीं ऐसा ना हो कि एक तरफ हम विश्व की तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था बनने जा रहे हो और दूसरी तरफ खाली जेब ठनठन गोपाल लोगों का देश बनते जा रहे हो। मीडिया को सही स्थिति देश के सामने रखना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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