हरियाणा में भाजपा के चक्रव्यूह से कैसे निपटेगी कांग्रेस !

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विगत 10 वर्षों में देश के जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए वहां ऐसी ही तस्वीर देखने को मिली। जहां चुनाव से पहले कांग्रेस की स्थिति भाजपा से बेहतर नजर आई लेकिन जब परिणाम आए तो अधिकांश राज्यों में भाजपा की जीत हुई। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ इसके बड़े उदाहरण है जहां विधानसभा चुनाव होने से पहले कांग्रेस की स्थिति बेहतर दिखाई दे रही थी। कांग्रेस जीतने वाली है इसी भ्रम में इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर कांग्रेस के स्वयंभू नेताओं के बीच आपस में कुर्सी की लड़ाई शुरू हुई और कांग्रेस जीती हुई बाजी हार गई।

-देवेंद्र यादव-

devendra yadav
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस यदि हरियाणा में भाजपा के द्वारा बुने गए चक्रव्यूह से निकलकर, राज्य की सत्ता में वापसी करती है तो यह कांग्रेस की सबसे बड़ी ऐतिहासिक सफलता होगी।
हरियाणा में कांग्रेस के नेता, राजनीतिक पंडित और चुनाव विश्लेषक मान रहे हैं कि वहां सत्ताधारी भाजपा की स्थिति नाजुक है और कांग्रेस की स्थिति बेहतर है। मगर कांग्रेस और राजनीतिक पंडित अभी तक शायद भाजपा के रणनीतिकारों की चुनावी रणनीति को समझ ही नहीं पाए हैं। जहां तक मैंने भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों को समझा है, वे चुनाव से पहले कांग्रेस को अपने राजनीतिक जाल में फसाते हैं और जब चुनाव की और प्रत्याशियों की घोषणा होती है उसके बाद वह कांग्रेस को ऐसे राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसाते हैं कि कांग्रेस उस चक्रव्यूह से निकल ही नहीं पाती है और जीती बाजी हार जाती है।
चुनाव से पहले भाजपा चुनाव वाले राज्य में ऐसा माहौल बनाती है कि कांग्रेस को लगता है कि जनता में भाजपा का विरोध है और जनता कांग्रेस की तरफ देख रही है। इसी भ्रम को लेकर कांग्रेसी नेता आपस में कुर्सी की लड़ाई में उलझ जाते हैं, और टिकटो मैं बंदर बांट कर बैठते हैं। इससे कांग्रेस के भीतर ही आपस में विरोध शुरू हो जाते हैं। यही बीजेपी का कांग्रेस के खिलाफ एक सबसे बड़ा राजनीतिक जाल है जिसे कांग्रेस के नेता और कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार आज तक नहीं समझे और मुगालते में रहे। भाजपा द्वारा कांग्रेस के खिलाफ बुने जाल का समापन चुनाव की घोषणा होने के बाद चक्रव्यूह के रूप में देखने को मिलता है जब एक तरफ कांग्रेस होती है तो वहीं दूसरी तरफ विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियों होती हैं जो कांग्रेस के वोट को काटकर, कांग्रेस का नुकसान करती है।
विगत 10 वर्षों में देश के जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए वहां ऐसी ही तस्वीर देखने को मिली। जहां चुनाव से पहले कांग्रेस की स्थिति भाजपा से बेहतर नजर आई लेकिन जब परिणाम आए तो अधिकांश राज्यों में भाजपा की जीत हुई।
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ इसके बड़े उदाहरण है जहां विधानसभा चुनाव होने से पहले कांग्रेस की स्थिति बेहतर दिखाई दे रही थी। कांग्रेस जीतने वाली है इसी भ्रम में इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर कांग्रेस के स्वयंभू नेताओं के बीच आपस में कुर्सी की लड़ाई शुरू हुई और कांग्रेस जीती हुई बाजी हार गई।
कांग्रेस हाई कमान भी समझ नहीं पाता है। वह भी कांग्रेस के राज्यों के नेताओं के दबाव में आ जाता है और भ्रमित हो जाता है, और राज्यों के स्वयंभू नेता जो कहते हैं वैसा ही करने पर हाई कमान भी मजबूर हो जाता है।
हरियाणा में भी चुनाव से पहले भाजपा ने जाल बिछाया कि हरियाणा में भाजपा की स्थिति खराब है और कांग्रेस की स्थिति बेहतर है यह भ्रम हरियाणा के नेताओं ने पाल लिया और मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद शुरू हो गया। यह विवाद प्रत्याशियों का चयन और प्रत्याशियों की घोषणा होने तक दिखाई दिया। मुख्यमंत्री की कुर्सी के विवाद का अंत कब और कैसा होगा यह अभी देखना बाकी है। भाजपा के जाल और चक्रव्यूह को हरियाणा के नेताओं ने 2019 के विधानसभा चुनाव में देखा है। उस समय भी कांग्रेस की स्थिति सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से बेहतर दिखाई दे रही थी मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी के विवाद ने कांग्रेस के हाथ से जीती बाजी छिनली, और भाजपा लगातार अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही।
हरियाणा चुनाव में कांग्रेस एक तरफ है तो वही उसके खिलाफ सत्ताधारी भाजपा आम आदमी पार्टी बहुजन समाज पार्टी और हरियाणा की क्षेत्रीय पार्टिया मैदान में है, इसीलिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि हरियाणा में कांग्रेस चुनाव जीतती है तो यह जीत कांग्रेस के इतिहास की की सबसे बड़ी जीत होगी।
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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