
– बृजेश विजयवर्गीय-

(स्वतंत्र पत्रकार)
यूं तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ कांग्रेस आलाकमान ने जो किया उसकी चहुंओर कहीं खुलकर तो कहीं दबी जुबान से भर्त्सना हो रही है। प्रदेश व देश की जनता सकते में है कि क्या वाकई गहलोत इस दुर्व्यवहार के लायक थे । कांग्रेस अध्यक्ष का प्रकरण जो भी हो अशोक गहलोत हैं तो वर्तमान में राजस्थान के मुख्यमंत्री। वैसे भी गहलोत कब अध्यक्ष का चुनाव लड़ना चाहते थे जो उन्हें माफी मांग कर पीछे हटना पड़ा वह तो कहते रहे कि मैं राजस्थान की सेवा करना चाहता हूं। कांग्रेस में आज के दौर में अशोक गहलोत जैसा कद्दावर नेता कोई है ही नहीं। ग्रुप- 23 के बाद तो एकदम तस्वीर साफ हो गई थी कि भविष्य में कांग्रेस की कमान गहलोत सम्हाल सकते हैं।
कांग्रेस आला कमान (सोनिया- राहुल) ने भी कुछ सोच समझ कर ही गहलोत का नाम अध्यक्ष पद के लिए आगे किया होगा। लेकिन उनके नाम पर मंत्री पद पर बैठे प्रदेश के मंत्रियों ने अपने स्वार्थ की खतिर गहलोत की इज्ज्त की बलि ले ली।
1984 में ही जेंटलमेन पत्रिका ने भविष्यवाणी कर दी थी कि गहलोत भविष्य में कांग्रेस के सितारे होंगे। जिस सितारे को कांग्रेस के नक्षत्र पर चमकना था वो इस तरह बेइज्जत कर दिए जाऐंगे किसी ने सोचा भी न होगा। कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि गैर नेहरू गांधी परिवार के व्यक्ति की वहां हैसियत न के बराबर है। कांग्रेस नेताओं की चाटुकारिता की भी इंतहा रही है। आजादी के पहले ही एओ ह्यूम द्वारा गठित कांग्रेस में नेहरू – गांधी का ही बोलबालो रहा है। उस समय सुभाष चंद्र बोस से लेकर सीता राम केसरी तक अपमानित महसूस हुए। जब संजय गांधी का दबदबा था तब भी तीन राज्यों के मुख्यमंत्री उनकी चप्पल लेने भागते थे। आपातकाल में तो चाटुकारिता का बोलबोला इतना था कि देवकांत बरूआ ने इंदिरा इज इंडिया तक का नारा गुंजा दिया था। व्यक्ति आधारित पार्टियों में तो आंतरिक लोकतंत्र बचा ही कहां है।
हांलांकि दो गैर गांधी परिवार के परिस्थितिवश प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह को कितना सम्मान मिला देेश को पता है। मनमोहन सिंह के हाथ से तो राहुल गांधी ने पर्चा तक छीन लिया था। यू भी कांग्रेस में अभी नेतृत्व का संकट चल रहा है। ऐसे समय में गहलोत की बेकदरी आश्चर्यजनक है। कांग्रेस विचार ही नहीं आम जन तक हतप्रभ है कि ये हुआ क्या। अब मुख्यमंत्री पर पर अशोक गहलोत रहें या सचिन पायलट और कोई राजस्थान में तो गुटबाजी चरम पर पहुंच गई आरोप प्रत्यारोपों का दौर जारी है। लगता है आने वाले समय में राजस्थान कांग्रेस में असंतोष के चलते उठापटक का खेल और तेज होने वाला है। वैसे भी यह चुनाव का वर्ष है। देखते है। आगे आगे होता है क्या!

















