
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

ज़मीं को क़ुफ़्र अता हो रहा है पीरों से।
ख़ुदा बचाये हमें ऐसे दस्तगीरों से।।
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किनारे बैठ के दरिया में उॅंगलियाॅं मत डाल।
न बन सकेगा कोई नक़्श इन लकीरों से।।
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ये सिर्फ़ करते हैं अपने मफ़ाद की बातें।
मिले न प्यार के दो लफ़्ज़ भी अमीरों से।।
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ज़मीं पे सब्र ओ क़नाअत को ढूॅंढने वाले।
सवाल करना पड़ेगा तुझे फ़क़ीरों से।।
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बड़ा तज़ाद है कहने में और करने में।
तवक़्क़ो उठ गई अपनी तो इन वज़ीरों से।।
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है दिल में अज़्म कि हालात से लडूॅं “अनवर”।
कहाॅं बचूॅंगा मगर इन नज़र के तीरों से।।
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क़ुफ़्र* अधर्म ईश्वर को नहीं मानना
पीरो* तथाकथित मार्गदर्शक
दस्तगीर*मदद करने वाला
नक़्श* छवि तस्वीर
मफ़ाद* फ़ायदा
सब्र ओ कनाअत* धैर्य और संतोष
तज़ाद* विरोधाभास
तवक़्क़ो* उम्मीद आशा
वज़ीरों*मंत्रियों
अज़्म*हौसला
शकूर अनवर
9460851271