
-शैलेश पाण्डेय-

यदि आप घूमने फिरने और इतिहास तथा पुरातत्व में रूचि रखते हैं और हाडोती का भ्रमण करना चाहते हैं तथा आपके साथ राजस्थान पत्रिका कोटा के चीफ रिपोर्टर और रीजनल एडीटर रहे धीरेन्द्र राहुल हैं तो क्या कहने। यह मैं इसलिए नहीं कह रहा कि वह पत्रकारिता में मेरे वरिष्ठ साथी थे। वरन राजस्थान पत्रिका के ‘आओ गांव चलो’ कॉलम के लिए उन्होंने जितना लिखा और इसके लिए हाडोती का भ्रमण किया उससे प्राप्त अनुभव उनकी थाती है। इसके अलावा चुनाव और अन्य मुद्दों की रिपोर्टिंग के सिलसिले में उन्होंने इस क्षेत्र को देखा है। जो गांव और क्षेत्र उन्होंने लगभग ढाई से तीन दशक पहले कवर किए थे उनके नाम और वहां जिन पंच, सरपंच तथा लोगों से मिले उनके नाम उन्हें आज भी याद हैं। मैं तो उनसे मजाक में यही कहता हूं कि राहुल जी आपकी याददाश्त हाथी की तरह है। राहुल जी के साथ हाडोती भ्रमण का हमारा नया पड़ाव बारां जिला था। मौका था बारां में 31 अगस्त और एक सितंबर को आयोजित दो दिवसीय नेशनल एनवायरमेंट सिंपोजियम। राहुल जी को इसमें वरिष्ठ पत्रकार और विषय विशेषज्ञता के कारण एक सत्र की अध्यक्षता करनी थी। आयोजक इंटैक बारां के जितेन्द्र कुमार शर्मा का मुझ से आग्रह था कि आपको जरूर आना है। शाहबाद जंगल बचाओ आंदोलन की वजह से पर्यावरणविद् बृजेश विजयवर्गीय के मार्फत जितेन्द्र जी और प्रशांत पाटनी जी से मेरा सम्पर्क हुआ और उनसे ऐसा प्रेम और सम्मान मिला कि यह जानते हुए भी कि बारिश की वजह से परेशानी होगी राहुल जी के साथ इस सिंपोजियम में शामिल होने का फैसला कर लिया। इसमें एक लालच यह भी था कि उनके साथ शाहबाद जंगल, प्रशांत पाटनी जी और मेरे अनुज पत्रकार हेमराज गुर्जर के कुंजेड़ गांव के अलावा किशनगंज क्षेत्र में स्थित रामगढ क्रेटर, भंडदेवरा मंदिर क्षेत्र भ्रमण का मौका मिल जाएगा।

राहुल जी ने लगभग एक सप्ताह पहले ही बारां चलने का निर्देश दिया था। इसी दौरान स्टेशन स्थित मद्रास होटल में उन्होंने इडली और डोसा की दावत के लिए आमंत्रित किया तब भी बारां चलने की चर्चा की लेकिन जब बारां जाना था तब कोई बात नहीं की। मैंने शनिवार को शाम को कई बार फोन किए लेकिन राहुल जी ने अपनी आदत के मुताबिक फोन नहीं उठाया तो मैंने यही समझा कि शायद कार्यक्रम टल गया। मैंने जितने कॉल किए उसके स्क्रीन शॉट भी राहुल जी को वाटृसएप पर भेज दिए। आखिर रात साढ़े दस बजे राहुल जी का फोन आया कि सुबह सात बजे कोटा से बारां के लिए निकलना है। जब मैंने बताया कि आपका फोन नहीं आया और मेरे कॉल का भी जवाब नहीं दिया तो उनका भोलेपन से जवाब था कि मुझे कोई कॉल नहीं मिला। अब सुबह मुझे ठीक सात बजे घर से लेना ताकि नौ बजे के उद्घाटन सत्र में पहुंच सकें। उनकी आज्ञा का पालन करते हुए रविवार 31 अगस्त को सुबह कार लेकर उन्हें घर से पिक किया और बारां रवाना हो गए। जहां एक होटल में सामान रखने के बाद आयोजन स्थल पर आ गए। जहां इंटैक के वाइस चेयरमैन प्रोफेसर सुखदेव सिंह और द पायनियर के संपादक ज्ञानेश्वर दयाल की मौजूदगी में गहन विचार विमर्श हुआ। वहां कई विषय विशेषज्ञों से मिलने का मौका मिला। इनमें चंबल की पैदल यात्रा करने वाले रोबिन सिंह, डॉ राधेश्याम गर्ग जैसे लोग थे। प्रोफेसर सुखदेव का तो हमने यूट्यूब चैनल के लिए इंटरव्यू भी किया।

हालांकि कोटा से बारां के सफर और वहां दिन भर के कार्यक्रम के बाद शाम को तीसरे सत्र के लिए कुंजेड़ जाना था। लेकिन जैसा कि पहले कह चुका हूं कि कुंजेड़ प्रशांत पाटनी और हेमराज का गांव है तो जाना ही था भले ही कितनी भी थकान हो। हल्की रिमझिम के बीच जब हमारा दल बस और कार में सवार होकर कुंजेड़ गांव पहुंचा तो वहां के चर्चित पंचफल जैव विविधता उद्यान में प्रशांत जी ने स्वागत कार्यक्रम रखा था। जहां मौजूद लोगों ने बहुत सेवा भाव से चायपान कराया और उद्यान भ्रमण का आग्रह किया। क्योंकि रिमझिम हो रही थी इसलिए भीगने और ऐसे मौसम में जीव जंतुओं के भय की वजह से हम वहां आसपास के इलाके को ही देख सके। लेकिन जितना भी देखा आला दर्जे का था। पेड़ पौधे इस तरह व्यवस्थित थे कि आप दर्जनों मालियों के रखरखाव की मौजूदगी के बावजूद किसी बड़े उद्यान में भी नहीं देख सकते। वहीं से मैंने हेमराज को कोटा फोन किया तथा उद्यान के कुछ फोटो भेजे। उसने बहुत अफसोस व्यक्त किया और कहा कि यदि पहले बता देते तो वह भी गांव में स्वागत को उपस्थित रहते। उन्होंने अपने गांव में हमारी मौजूदगी को लेकर बहुत खुशी व्यक्त की।

यहीं से पास ही कुंजेड़ गांव था जहां के एक भवन में सिंपोजियम का तीसरा सत्र आयोजित किया गया। इसमें पत्रवाचन प्रशांत पाटनी ने किया तथा धीरेन्द्र राहुल ने अध्यक्षीय भाषण दिया। अन्य वक्ताओं ने भी पर्यावरण समेत अनेक पहलुओं पर तर्क तथा साक्ष्यपूर्ण जानकारी दी। यह गांव तो एक मिसाल था ही लेकिन यहां के निवासी कितने सभ्य सुसंस्कृत हैं इसकी मिसाल कार्यक्रम समाप्ति के बाद देखने को मिली। जैसे ही हम बाहर निकले बाहर गणेश पांडाल पर्दों से ढंका मिला। जब वहां मौजूद लोगों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि भवन में आपका कार्यक्रम हो रहा था। यदि पांडाल खुला होता तो लोग आते जिससे शोर होने से कार्यक्रम में व्यवधान होता इसलिए पांडाल को ढंक रखा था। हमारे आग्रह पर उन्होंने तुरंत पर्दे हटाए ताकि हम गणपति बप्पा के दर्शन कर सकें। इसके उलट जब अगले दिन कोटा लौटे तो अव्यवस्थित गणेश पंडालों की वजह से घर तक पहुंचने में कई रास्ते बदलने पड़े।

यहां से हमारी वापसी पंचफल उद्यान की ओर हुई जहां प्रशांत पाटनी ने हाडोती के प्रिय भोजन दाल, गट्टे की सब्जी, बाफले और लड्डू की व्यवस्था की थी। इसके साथ ही स्थानीय गुर्जर समुदाय की विशेष गायन शैली का कार्यक्रम भी रखा था। यह कला अब लुप्त होती जा रही है। प्रशांत जी ने मुझ से कहा था कि आप यह कार्यक्रम जरूर देखना और अपनी वेबसाइट तथा यूट्यूब के लिए रिकार्ड करना क्योंकि यह ऐसी यादगार होगी जो शायद भविष्य में देखने को नहीं मिले।
भोजन के बाद हमारी बस को अपने गंतव्य लौटने की जल्दी थी इसलिए मैं और राहुल जी समेत कुछ लोगों को बारां आना पड़ा जिससे यह कार्यक्रम देखने से वंचित रह गए जिसका आजीवन अफसोस रहेगा।

रिमझिम बारिश के बीच अंधेरे में कीचड़ और मवेशियों से भरे रास्ते को पार करते हुए बारां में वापस आयोजन स्थल पहुंचे जहां हमारी कार पार्क की थी। यहीं से जब कार से होटल लौटने लगे तो राहुल जी उस रास्ते के बारे में कोई ज्ञान नहीं दे सके जिससे सुबह हाइवे पर होते हुए आए थे।। उन्हें गूगल मैप की मदद लेने को कहा जिसमें भी वह कोई कमाल नहीं दिखा सके। हम इधर से उधर हाइवे और फिर गलियों में मवेशियों तथा खतरनाक गड्ढों के बीच जूझते रहे। रात के समय रास्ता पूछने के लिए भी लोग नहीं मिल रहे थे। किसी तरह पूछते हुए आगे बढ़ रहे थे तो एक जगह आमने-सामने कार आने से संकरे रास्ते को पार करना संभव नहीं हो रहा था। मैने सामने वाली कार को जगह देने के लिए बांयी ओर कार सरकाई तो सीसी रोड से नीचे उतर कर कीचड़ में आ गई। वह तो सामने बाधक बनी कार के चालक ने मेरे झुंझलाने के बावजूद दयालुता दिखाते हुए सचेत किया कि कार आगे में मत बढाओ नहीं तो कीचड़ में फंस जाएगी जिसे निकालना हमारे लिए संभव नहीं होता। हम किसी तरह होटल पहुंचे तो वहां हमारे अनुज और राजस्थान पत्रिका के सहयोगी पत्रकार घनश्याम दाधीच मौजूद थे। देर रात तक घनश्याम के साथ पुरानी यादों को ताजा करते रहे। क्योंकि सुबह फिर विरासत टीम के साथ जुड़ना था इसलिए घनश्याम को विदा कर सोने का जतन किया। इस दौरान जो भी वीडियो शूट की थीं उन्हें यूटृयूब पर अपलोड किया। क्योंकि तेज वाई फाई नहीं था इसलिए मोबाइल डेटा से बहुत समय लगा। देर रात दो बजे सोने का मौका मिला! हालांकि थकान से चूर राहुल जी तो गहरी नींद में समा चुके थे।
जारी…
सभी फोटो प्रशांत पाटनी के सहयोग से।

















