
गजल।

शकूर अनवर
दर्द की रह गुज़र फिर वही।
ज़िंदगी का सफ़र फिर वही।।
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फिर वही गर्दिशे आसमाॅं।
अपने शामो सहर फिर वही।।
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खेत खलियान सहमे हुए।
बिजलियों का है डर फिर वही।।
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हम सलीबों पे लटके हुए।
ज़िंदगी दार पर फिर वही।।
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ज़लज़ला ज़लज़ला हर तरफ़।
सब इधर सब उभर फिर वही।।
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ग़म के साए हैं लंबे बहुत।
हर ख़ुशी मुख़्त़सर फिर वही।।
फिर वही “अनवर” ए मुब्तला।
हो गई ऑंख तर फिर वही।।
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शकूर अनवर
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