
-ए एच जैदी-
कोटा। चंबल नदी कोटा की जीवनदायनी ही नहीं कई ऐसे जलीय जीवों की भी शरण स्थली है जो लुप्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं। घडियाल सेंचुरी इसी चंबल नदी में स्थित है तो बहुत ही फुर्तीला जलीय जीव ऊद बिलाव यानी ऑर्टर भी यहां अपना अस्तित्व बनाए हुए है। राणा प्रताप सागर से लेकर कोटा बैराज की अपस्टीम में इस जलीय जीव को अपने परिवार के साथ अठखेलियां करते देखा जा सकता है। राजस्थान में केवल चम्बल नदी ही इसका बसेरा है । इसका अस्तित्व कोटा के पर्यटन उद्योग के लिए लाभदायक है।

मछली का शिकार करते देखना रोमांचक अनुभव
ऊद बिलाव बहादुर इतना है कि चंबल नदी के सबसे खतरनाक मगरमच्छ को भी चुनौती देने से नहीं चूकता। यह उसके इलाके से भी फुर्ती से मछली का शिकार कर निकल जाता है। ऊद बिलाव को मछली का शिकार करते देखना अपने आप में रोमांचक अनुभव है। वह मछली को पकड़ने के बाद हवा में उछाल-उछाल कर खाता है। वह नदी से मछली को पकड़कर बाहर आ जाता है और चट्टानों पर उसे उछालते हुए खाता है।
पारिवारिक और सामाजिक प्राणी
ऑर्टर पारिवारिक और सामाजिक प्राणी है। यह आठ से दस के झुण्ड में रहना पसंद करता है और इनका मुखिया अपने परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाता है। मीठे पानी में रहने वाला यह जलीय जीव पानी में अठखेलियां करता है लेकिन अपना आवास पेड़ की जड़ों अथवा चट्टानों के बीच बनाता है। रावतभाटा से कोटा बैराज के बीच इसे चंबल नदी के किनारे चट्टानों के बीच देखा जा सकता है। इसके प्रजनन का समय अक्टूबर से जनवरी है और एक बार में चार से छह बच्चे देता है। चिकनी खाल और बालों वाला यह जलीय जीव जितना सहज पानी में रहता है उतनी ही फुर्ती चट्टानों पर भी दिखाता है।
बाढ़ इसके विनाश का कारण
लेकिन जो चंबल नदी इसका बसेरा है उसकी बाढ़ ही इसके विनाश का कारण भी बनती है। प्रति वर्ष चंबल में बाढ़ आने से इसकी संख्या में कमी आती जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार वैसे तो चंबल में पानी का तेज बहाव आने पर ग्रुप लीडर अपने परिवार को ऊंचाई वाली जगह ले जाता है। लेकिन भोजन की तलाश में इसे नदी का रुख करना पड़ता है। वैसे तो इसका प्रिय भोजन मछली है लेकिन चूहे, केकडे और सांप तक को खाने से परहेज नहीं करता। चंबल में बाढ़ के समय जब मछली की तलाश में नदी में उतरता है तो पानी के तेज बहाव में आगे निकल जाते है। कई बार ये गरडिया से कोटा बैराज तक शिकार की तलाश में या मौज मस्ती करते हुए पहुँच जाते हैं । मैंने 70 से 80 के दशक में कोटा के कुन्हाड़ी तक चम्बल में इनको देखा है। कोटा बैराज बन जाने के बाद पहली जबर्दस्त बाढ़ 1970 के पूर्व आई तब हजारों की संख्या में सभी जलीय जीवों को इस बाढ में बहते हुए देखा है। मगरमच्छ, घड़याल, कछुआ, ऊद बिलाव अनेको प्रकार के साँपो और हज़ारों की संख्या में सूखे पेडो को बाढ़ बहा कर ले गई।
संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में
ऊद बिलाव को बाढ के अलावा अवैध मछली का शिकार करने वालों से भी खतरा बना रहता है। क्योंकि इसका मुख्य भोजन मछली है इसलिए यह अवैध मछली का शिकार करने वालों की आंखों में खटकता है। कई बार जाने अनजाने यह उनके जाल में फंसकर अपनी जान गंवा देता है। औसत डेढ़ फुट तक की लम्बाई वाला यह जीव संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में है। दुनिया में ऊद बिलाव की एक दर्जन प्रजातियां हैं लेकिन भारत में केवल तीन प्रजातियां पाई जाती हैं।
(लेखक नेचर प्रमोटर तथा ख्यातनाम फोटोग्राफर हैं)