– यदि अभी नहीं संभले तो आने वाली पीढियां घोर कष्ट का सामना करेंगी
-बारां जिले में हाइड्रो पावर एवं थर्मल प्लांट के विस्तार को लेकर गंभीर पर्यावरणीय आपत्तियां
-शैलेश पाण्डेय-
कोटा। शाहबाद का जंगल सैंकडों जीव जंतुओं, वनस्पतियों, औषधीय पौधों और भूमिगत जल को रिचार्ज करने का प्रमुख स्त्रोत है। लेकिन राजनीतिज्ञों तथा उद्योगपतियों के कथित गठजोड की वजह से इसके वजूद पर संकट आ खडा हुआ है। शाहबाद कंजर्वेशन रिजर्व एवं घाटी बचाओ संघर्ष समिति तथा चंबल संसद के पदाधिकारियों ने बारां जिले में प्रस्तावित शाहबाद हाइड्रो पावर प्लांट एवं कंवाई में थर्मल पावर प्लांट के विस्तार में पर्यावरणीय मानकों के घोर उल्लंघन पर आपत्ति जताते हुए चेतावनी दी कि यदि अभी नहीं संभले तो आने वाली पीढियां घोर कष्ट का सामना करेंगी। उन्होंने महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए सरकार से इन परियोजनाओं पर पुनर्विचार की मांग की है। उन्होंने प्रबुद्धजनों से पर्यावरण बचाने के लिए जन-जागरूकता का आव्हान किया।
कोटा में शनिवार को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में शाहबाद घाटी कंजर्वेशन रिजर्व संघर्ष समिति के संरक्षक प्रशांत पाटनी, चम्बल संसद अध्यक्ष कुंज बिहारी नंदवाना, संरक्षक जीडी पटेल, भारतीय राष्ट्रीय सांस्कृतिक निधि इंटेक , बारां के कंवीनर जितेंद्र शर्मा,यज्ञदत्त हाडा, राष्ट्रीय किसान समन्वय समूह के संयोजक दशरथ कुमार, युवा किसान नेता जगदीश शर्मा,चम्बल संसद संयोजक बृजेश विजयवर्गीय, कोटा एनवायरनमेंटल सेनीटेशन सोसायटी के राजेंद्र जैन, रामकृष्ण शिक्षण संस्थान के महासचिव पूर्व पार्षद युधिष्ठिर चांनसी, शाहबाद निवासी गब्बर सिंह यादव, समाज सेवी अरुण भार्गव, मनोज यादव एवं पंचकर्म पर्यावरण गतिविधियों के सदस्य उपस्थित थे।
पर्यावरणविद प्रशांत पाटनी ने बताया कि शाहबाद में 408 हेक्टेयर के जंगल को बर्बाद कर हाइड्रो पावर प्लांट पम्पड स्टोरेज एवं कंवाई में थर्मल पावर प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण मानकों की घोर उपेक्षा हो रही है। उन्होंने बताया कि शाहबाद में 300 से अधिक वन औषधियां हैं जो देश भर में दुर्लभ है तथा पैंथर भालू,सेही, हिरण,जंगली सूअर समेत दो दर्जन से अधिक दुर्लभ वन्य जीव विचरण कर रहे हैं। माधव नेशनल पार्क शिवपुरी से बाघ भी आते रहे हैं।
शाहबाद की ओर कूनो नेशनल पार्क से चीता परियोजना में विचरण कर रहे चीते तीन बार शाहबाद की ओर आ चुके हैं एवं आने का प्रयास करते रहते हैं। चीता परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंदीदा योजना है। कूनो नदी शाहबाद एवं कूनो के जंगल को जोड़ने के लिए प्राकृतिक गलियारा है। इन लोगों ने कहा कि पर्यावरण को बचाना विकास की खिलाफत नहीं है, पर्यावरण को बचाते हुए भी विकास कार्य हो सकते हैं इसके लिए उन्होंने महत्वपूर्ण सुझाव भी सरकार को दिए हैं। पाटनी ने कहा कि खनन से कोटा स्टोन के मलबे से बन चुके पहाड़ों को पम्पड स्टोरेज प्लांट के लिए चुन सकते हैं। इन पर्यावरणविदों ने कहा कि सरकारी स्तर पर जब सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से बिजली बनाने की परियोजनाएं संचालित है तो पर्यावरण को न्यूनतम नुकसान पहुंचाने वाली योजनाओं पर ही काम होना चाहिए। कोल आधारित कंवाई में थर्मल पावर प्लांट से स्थानीय कृषि उत्पादन पर दुष्प्रभाव पड़ेगा वहीं इसकी वजह से तापमान बढ़ने से कई तरह की बीमारियां पैदा होगी। हमारी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा।
प्रशांत पाटनी ने कहा कि हम विकास के विरोधी नहीं हैं लेकिन यह विकास पर्यावरण के विनाश की कीमत पर नहीं होना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि उद्योगपतियों और सरकार के गठजोड की नजर अब वन क्षेत्र पर है। उन्होंने कहा कि वन भूमि को कब्जे में लेने के लिए किसी तरह का मुआवजा नहीं देना पडता और न ही कोई विरोध में खडा होता है इसलिए इस पर नजर पडी है। उन्होंने यह भी कहा कि उद्योगपति प्रोजेक्ट के लिए जितनी जरूरत होती है उससे कहीं बहुत ज्यादा भूमि को आवंटित करा लेते हैं। फिर इस भूमि का अपने हितों में उपयोग करते हैं। इस बारे में उन्होंने कई उदाहरण दिए।
नंदवाना ने कहा कि चम्बल शुद्धिकरण पर सरकार कतई गंभीर नहीं है। नदियों के शोषण को ही विकास मानना बड़ी भूल है। जीडी पटेल ने जन आंदोलन पर जोर दिया। विजयवर्गीय ने कहा कि जल जंगल जमीन का संरक्षण ही असली विकास है सरकार को इसे समझना चाहिए।