
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, भले ही सात बार बिहार का दौरा कर राज्य में कांग्रेस को मजबूत करने की कवायद में जुटे हुए हैं, मगर अभी भी उनके और कांग्रेस के सामने बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव जीतने की चुनौती जस की तस बनी हुई है। राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती बिहार में ना तो भाजपा है और ना ही एनडीए गठबंधन। उनके लिए प्रमुख चुनौती तेजस्वी यादव और राजद हैं। इसके अलावा राजद और तेजस्वी की वकालत करने वाले बिहार कांग्रेस के वह मठाधीश हैं, जिनके राजनीतिक स्वार्थ के कारण कांग्रेस बिहार में अभी तक नहीं उबर सकी। बिहार में भाजपा 2025 का विधानसभा चुनाव हर हाल में जीतना और पहली बार अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। राहुल गांधी भाजपा के इस इरादे को विफल करने के लिए, प्रयास कर रहे हैं। यही वजह है कि राहुल गांधी ने बिहार के लगातार सात बार दौरे किए और बिहार कांग्रेस के भीतर तीन बड़े बदलाव किए। मगर राहुल गांधी की बिहार में बढ़ती सक्रियता, कांग्रेस के उन नेताओं को रास नहीं आ रही है जो लालू प्रसाद यादव से मिलकर बिहार में अभी तक कांग्रेस को कमजोर करते आए हैं। यही वजह है कि राहुल गांधी बिहार कांग्रेस में तीन बड़े बदलाव करने के बाद भी अपने और कांग्रेस के लिए मजबूत टीम नहीं खड़ा कर पाए। बिहार में तेजस्वी यादव अपने राजनीतिक तेवर कांग्रेस को दिखा रहे हैं। असल वजह भी बिहार के स्वयंभू कांग्रेसी नेता ही हैं, इसे राहुल गांधी अभी तक या तो समझ नहीं पाए या समझ नहीं पा रहे हैं या उन्हें कांग्रेस के रणनीतिकार समझने नहीं दे रहे हैं।
चुनाव आयोग द्वारा बिहार में नए सिरे से मतदाता सूचिया तैयार किए जाने के फरमान के विरोध में 9 जुलाई को राहुल गांधी ने बिहार में चक्का जाम आंदोलन का नेतृत्व किया। मगर दूसरी तरफ इंडिया घटक दल के प्रमुख घटक दल आरजेडी अभी भी सीट शेयरिंग को लेकर रणनीति बनाती नजर आ रही है। कांग्रेस को बिहार में कमजोर बताने की कोशिश कर रही है। तेजस्वी यादव कांग्रेस को बिहार में कमजोर इसलिए आंक रहे हैं क्योंकि बिहार कांग्रेस के स्वयंभू नेता इस अभियान में तेजस्वी का साथ दे रहे हैं।
14 जुलाई को राहुल गांधी ने बिहार के तमाम कांग्रेस के नेताओं को दिल्ली बुलाया है। राहुल गांधी को यह समझना होगा कि कांग्रेस बिहार में विधानसभा चुनाव में कमजोर क्यों रहती है और लोकसभा चुनाव में मजबूत क्यों रहती है।
यदि 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बिहार में 2019 में राजद को लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली जबकि कांग्रेस ने एक लोकसभा सीट जीती वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में राजद और कांग्रेस लगभग बराबर बराबर लोकसभा सीट जीतने में कामयाब हुए। 2024 के लोकसभा चुनाव में यदि तेजस्वी यादव जिद नहीं करते और कांग्रेस को अधिक सीट देते तो बिहार में कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राजद से आगे निकल जाती। राहुल गांधी को इस ऐसे समझना होगा। तेजस्वी यादव और राजद नेता कांग्रेस पर आरोप लगाते हैं कि यदि 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद कांग्रेस को 70 सीट नहीं देती और राजद अधिक सीटों पर चुनाव लड़ती तो बिहार में राजद की सरकार बन जाती और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री होते। यही बात 2024 के लोकसभा चुनाव में भी लागू होती है। यदि राजद बिहार में कांग्रेस को अधिक लोकसभा सीट देती तो आज केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं होती। इसका उदाहरण पूर्णिया लोकसभा सीट है जिसे कांग्रेस मांग रही थी मगर तेजस्वी यादव ने निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने दिया और राजद का उम्मीदवार उतार दिया।
पप्पू यादव यही बात कह रहे हैं। यदि परफॉर्मेंस देखनी है तो 2024 के लोकसभा चुनाव की कामयाबी से देखो और सीट शेयरिंग करो। पप्पू यादव का कहना है कि बिहार में कांग्रेस कमजोर नहीं है, बिहार में कांग्रेस को कमजोर दिखाया जा रहा है।
बिहार में राहुल गांधी की लगातार सक्रियता और बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए किए गए फैसलों के बाद भी तेजस्वी यादव कांग्रेस को बिहार में कमजोर बता कर सीट शेयरिंग के लिए मौल भाव करते दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी को इसे समझना होगा। उन्हें यह भी समझना होगा कि यदि तेजस्वी यादव की शर्तों पर ही बिहार में चुनाव लड़ना है तो फिर राहुल गांधी ने तीन बड़े बदलाव क्यों किए। जबकि इन बदलाव के बाद राहुल गांधी की सक्रियता ने बिहार में राहुल गांधी की छवि को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऊपर बताया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)