
-शैलेश पाण्डेय-

आसमान में सूरज से आंख मिचौली खेलते उमड़ते घुमड़ते बादल, कभी हल्की धूप तो कभी बूंदाबांदी, चहुंओर पहाड़ और उन पर बिछी हरियाली चादर! करीब बीस फीट उंचे झरने से गिरते पानी की धार में नहाते और नीचे कुंड में अठखेलियां करते स्त्री, पुरुष और बच्चे। आमतौर पर आज के व्यस्त समय में इस तरह के नैसर्गिक सौंदर्य को देखने का अवसर नहीं मिलता। लेकिन हमारे साथी वरिष्ठ पत्रकार धीरेन्द्र राहुल ने रविवार 13 जुलाई का दिन हम चार मित्रों के लिए यादगार बना दिया। हालांकि रविवार को हमारा बारां के कुंजेड और शाहबाद फॉरेस्ट दौरे का कार्यक्रम बना था लेकिन अपरिहार्य कारणों से यह कार्यक्रम टालना पड़ा। ऐसे में शाहबाद जंगल बचाओ आंदोलन की ओर से आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में ही राहुल जी ने पत्रकार और साहित्यकार मित्र पुरुषोत्तम पंचोली और मुझ से अपने गांव भानपुरा में लड्डू बाटी की गोठ का प्रस्ताव रखा। वहां मौजूद जार के प्रदेश अध्यक्ष हरिवल्लभ मेघवाल भी तुरंत तैयार हो गए और एक अन्य साथी जनार्दन गुप्ता को भी इसके लिए राजी कर लिया। जनार्दन मेरा कॉलेज और पत्रकारिता के करियर की शुरुआत के दौरान राष्ट्रदूत अखबार में साथी रहा। हरिवल्लभ मेघवाल ने ही अपनी कार में ले चलने का प्रस्ताव रखा। क्योंकि हरिवल्लभ अपने संगठन के कार्य के सिलसिले में पूरे राजस्थान में कार से ही घूमते हैं और पहले भी उनके साथ बारां एक कार्यक्रम में जा चुका हूं इसलिए उनकी ड्राइविंग स्किल से परिचित थे। हमने तुरंत हामी भर दी।

रविवार को सुबह आठ बजे हरिवल्लभ हम चारों साथियों को अपनी टाटा नेक्सन कार में लेकर कोटा से भानपुरा के लिए रवाना हुए तो मौसम खुशगवार था लेकिन बारिश के आसार नहीं दिख रहे थे। लेकिन जैसे ही दरा में लालाजी स्वीट्स पर नाश्ता करने के बाद हम मुकुंदरा की घाटी में दाखिल हुए मौसम ने रंग बदलना शुरू किया। हम खुशकिस्मत थे कि दरा में वाहनो का जाम नहीं मिला और आगे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे से होते हुए हम भानपुरा पहुंच गए तब तक हल्की बूंदाबांदी शुरू हो चुकी थी। राहुल जी के साथ पंचोली जी और जनार्दन पहले भी भानपुरा आ चुके थे लेकिन मेरा और हरिबल्लभ जी का यह पहला अनुभव था।
राहुल जी के साथ पत्रकारिता कार्यकाल का काफी समय बिताया है। वह लगभग हर बातचीत में भानपुरा का जिक्र जरूर करते हैं इसलिए इस कस्बे जो कभी गांव था उसके बारे में हमें काफी जानकारी थी और जब वहां पहुंचे तो उत्सुकता ज्यादा बढ़ गई। हालांकि हम जानते हैं कि राहुल जी निष्पक्ष पत्रकार हैं इसलिए किसी मामले में गलत बयानी नहीं करते लेकिन एक अच्छे स्टोरी टेलर की तरह शब्दों की चाशनी तो चढ़ा ही सकते हैं। मेरे लिए भानपुरा का महत्व वहां शंकराचार्य की पीठ और सत्यमित्रानंद जी गिरी महाराज की वजह से भी था। कोटा में रामपुरा के महात्मा गांधी स्कूल में पढाई के दौरान एक बार सत्यमित्रानंद जी को सुनने का मौका मिला था। उनका एक घंटे का भाषण सभी छात्रों ने मंत्रमुग्ध होकर सुना था। तभी से दिल में उनके लिए बहुत सम्मान था। फिर उन्होंने हरिद्वार में भारत माता मंदिर की स्थापना भी की। वैसे भी मैं जिस परिवार से ताल्लुक रखता हूं उसमें शंकराचार्य का दर्जा बहुत ऊँचा माना जाता है।
राहुल जी और पंचोली ऐसे पत्रकार हैं जो बहुत ज्यादा पढते लिखते हैं इसलिए इनकी हर विषय पर जानकारी भी हमारे जैसे सामान्य पत्रकारों से बहुत ज्यादा होती है। पंचोली जी ने ही बताया कि भानपुरा होल्कर साम्राज्य का हिस्सा रहा है और यहां के मंदिर उसी दौर में निर्मित हुए हैं। राहुल जी का तो कहना था कि यह एक समय तीन हजार की आबादी का छोटा गांव था लेकिन इसकी बसावट और इसके चहुंओर पहाड़ से घिरे होने तथा प्राकृतिक सौंदर्य की वजह से यह कस्बे में तब्दील हो चुका है। सड़कें भी चौड़ी बन गई हैं। यह कस्बा चार दरवाजों से घिरा है। मालवा का हिस्सा होने से यहां की संस्कृति में इंदौर की झलक भी नजर आती है।
हम भानपुरा में प्रवेश करते ही राहुल जी के बचपन के मित्र जो वकील और पत्रकार हैं से मिले और वहां से पहाड़ियों के बीच स्थित बड़ा महादेव स्थल पहुंचे। कार पार्क करने के बाद जैसे जैसे हम मंदिर के नजदीक जा रहे थे श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही थी। रविवार का दिन होने से मेले जैसा माहौल था। खिलौने, चाय पकोड़े, भुट्टे और धार्मिक पूजा पाठ वस्तुओं की दुकानें लगी थी। मंदिर परिसर में दो कुण्ड बने थे जिसमें लोग नहा रहे थे। इन कुण्ड में पहाड़ से गिर रहे झरने का पानी आ रहा था। यह जगह बूंदी के रामेश्वरम की याद दिला रही थी।
हालांकि यहां भगवान का शिवलिंग बहुत छोटे से मंदिर में विराजमान है लेकिन श्रद्धालु सहजता से जलाभिषेक और बेल पत्र इत्यादी अर्पित कर पा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि किसी को कोई जल्दी नहीं है। मंदिर के पुजारी का व्यवहार भी बहुत सहज था और सभी को जलाभिषेक के लिए एक एक कर जलाभिषेक का मौका दे रहे थे।
हम सभी ने सावन के माह में जलाभिषेक किया और वहां के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने लगे। बहुत देर तक वहां कुण्ड में नहा रहे लोगों को मजे लेते देखा। हालांकि हम लोग भी नहाने के लिए कपड़े साथ लेकर गए थे लेकिन भीड़ की वजह से हमारी हिम्मत कुण्ड में उतरने की नहीं हुई। राहुल जी ने एक पक्के मातृभूमि भक्त की तरह अपने भानपुरा के इतिहास और यहां के नैसर्गिक सौंदर्य की खूबियों से परिचित कराना शुरू कर दिया।
यहां करीब एक घंटा बिताने के बाद एक अन्य प्राकृतिक और धार्मिक स्थल छोटा महादेव के लिए रवाना हुए जहां राहुल जी ने दाल बाटी और लड्डू के भोजन का प्रबंध किया था। भोजन तैयार कराने वाले उनके मित्र का फोन लगातार आ रहा था तो हम वहां पहुंच गए। पहाड़ी की गोद में स्थित यह स्थल अपनी हरियाली की वजह से काफी आकर्षक लग रहा था। कई सीढियां चढने के बाद हम मंदिर स्थल पर पहुंचे। यहां बड़ा महादेव जैसी श्रद्धालुओं की भीड़ तो नहीं थी लेकिन वातावरण बहुत भक्तिमय था। मंदिर के पास पांच जने लगातार ढोल वादन कर रहे थे। जिससे माहौल में शोर शराबा भी था।
शिवजी के मंदिर में दर्शन करने के बाद हमने राहुल जी के मित्रों द्वारा प्यार से पकाए दाल बाटी और अत्यधिक स्वादिष्ट चूरमे के लड्डुओं का आनंद उठाया। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि कुछ ज्यादा ही खा लिया। जिस तिबारी में हम भोजन कर रहे थे वहां श्रद्धालुओं की एक अन्य टोली भी थी जो हल्की बूंदाबांदी के दौरान गर्मा गर्म पकोडों का आनंद ले रहे थे। हम पांचों ने काफी देर तक वहां के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारा और इसके बाद गांधी सागर के लिए रवाना हो गए।
जारी…