हरियाणा में भाजपा की गैर जाट की राजनीति को मात देना चाहते है राहुल गांधी

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भाजपा 10 साल से प्रदेश में सरकार चला रही है। ऐसे में सत्ता के प्रति विरोधी भावना नजर आ रही है। अगर कांग्रेस और आप अलग-अलग लड़ते हैं तो वोटों का बिखराव होना तय है। पंजाब में कांग्रेस सरकार के प्रति विरोधी भावना का फायदा आप को मिला। आप ने वहां 117 में से 92 सीटें जीत ली। कांग्रेस 18 पर सिमट गई।

 

-राजेन्द्र सिंह जादौन-

चंडीगढ़। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हरियाणा में भाजपा की गैर जाट की राजनीति का तोड़ निकालने और सत्ता विरोधी वोट का बटवारा रोकने के लिए आम आदमी पार्टी से गठबंधन की पहल की है। सूत्रों के मुताबिक आम आदमी पार्टी 10 सीटें मांग रही है। वहीं कांग्रेस ने 7 सीटों का प्रस्ताव दिया है। लेकिन आप की दलील है कि लोकसभा में उन्हें एक सीट मिली थी, जिसमें 9 विधानसभा सीट थीं। ऐसे में उनका 10 सीटों का दावा मजबूत है।
पार्टी का कहना है कि कांग्रेस नेताओं के साथ कुछ दौर की बातचीत हुई है। आप ने स्पष्ट किया है कि गठबंधन पर आखिरी फैसला अरविंद केजरीवाल लेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस ने भाजपा की गैर जाट राजनीति का तोड़ निकाला है कि कांग्रेस भी अकेले जाट वोट बैंक पर निर्भर नहीं रहेगी।कांग्रेस सत्ता विरोधी वोटों का आम आदमी पार्टी के साथ बिखराव रोकने की कोशिश भी कर रही है। हालांकि पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा इस बात के पक्ष में है कि जब हरियाणा में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना हुआ है, इसलिए पार्टी को किसी से गठबंधन नहीं करना चाहिए। उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए भी गठबंधन न करने की राय दी थी।
हुड्‌डा के हाईकमान को दरकिनार कर सीधे दावे करने के बाद राहुल गांधी का गठबंधन की तरफ बढ़ना उनके लिए ब्रड़ा झटका है। यह भी संदेश दिया गया कि हुड्‌डा खुद को हरियाणा कांग्रेस न समझें बल्कि पार्टी उनसे ऊपर है। यह भी माना जा रहा है कि पिछले दिनों कुमारी सैलजा के सीएम पद पर दावा ठोकना भी हुड्‌डा को झटका देने की रणनीति का ही हिस्सा है। खास बात यह है कि सैलजा जहां उनके चुनाव लड़ने से लेकर सीएम चुनने तक का फैसला हाईकमान पर छोड़ती रही हैं, वहीं हुड्‌डा अपने स्तर पर किसी भी पार्टी से गठबंधन की बात को नकारते आ रहे हैं।
भाजपा 10 साल से प्रदेश में सरकार चला रही है। ऐसे में सत्ता के प्रति विरोधी भावना नजर आ रही है। अगर कांग्रेस और आप अलग-अलग लड़ते हैं तो वोटों का बिखराव होना तय है। पंजाब में कांग्रेस सरकार के प्रति विरोधी भावना का सीधा फायदा आप को मिला। आप ने वहां 117 में से 92 सीटें जीत ली। कांग्रेस 18 पर सिमट गई।
हरियाणा में भाजपा गैर जाट की राजनीति करती है। 10 साल में पहले पंजाबी सीएम मनोहर लाल खट्‌टर और अब लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी चेहरे नायब सैनी को सीएम बना दिया। भाजपा इस चुनाव में भी गैर जाट वोट बैंक के लिए धरातल पर रणनीति बना रही है। इसके उलट कांग्रेस की राजनीति जाट वोट बैंक पर निर्भर है। हुड्‌डा हरियाणा में सबसे बड़े जाट चेहरे हैं। हालांकि जाट वोट बैंक भी एकमुश्त कांग्रेस को मिले, यह भी संभव नहीं है।
इसमें पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी और अभय चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल की सेंधमारी होगी। दूसरा कांग्रेस को अनुसूचित जाति वोट बैंक से उम्मीद है लेकिन उसमें भी इनेलो के बसपा और जेजेपी के चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी से गठबंधन के बाद सेंध लग सकती है। ऐसी सूरत में कांग्रेस आप को साथ लेकर उनके पक्ष के वोट बैंक को साधना चाहती है।
हरियाणा में गठबंधन से राहुल गांधी की नजर भावी राजनीति पर है। वह इसके जरिए इंडिया. ब्लॉक में शामिल उन छोटे-बड़े दलों को भरोसा देना चाहते हैं जिनमें कांग्रेस के प्रति भरोसे की कमी है। राहुल इससे सहयोगी दलों में कांग्रेस के साथ के प्रति भरोसा बढ़ाना चाहते हैं। इसके जरिए राहुल दूसरे राज्यों के दलों को भी संदेश देना चाहते है कि भले ही हरियाणा में 10 साल से सरकार चला रही भाजपा के प्रति एंटी इनकंबेंसी से कांग्रेस मजबूत होने का दावा कर रही है लेकिन वह कमजोर दलों का साथ नहीं छोड़ रही। मध्यप्रदेश चुनाव में कांग्रेस पर इसको लेकर आरोप भी लगे थे कि सपा के साथ आखिरी वक्त तक बातचीत कर भी गठबंधन नहीं किया गया।
हरियाणा के जरिए राहुल गांधी अगले साल 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव को भी साधना चाहते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में कांग्रेस ने शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते 1998 से लेकर 2013 तक सरकार बनाई। इसके बाद 2013 और 2015 में हुए चुनाव में कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई। इस बार कांग्रेस हरियाणा में आप को साथ लेकर दिल्ली में उनके साथ गठबंधन को लेकर दबाव बना सकती है।

चंडीगढ़ में मेयर और लोकसभा चुनाव में सफल रहा गठबंधन

चंडीगढ़ नगर निगम के 35 वार्डों के लिए इसी साल मार्च महीने में चुनाव हुआ था। इसका चुनाव तो आप और कांग्रेस ने अलग-अलग लड़ा। जिसमें जिसमें आप के 13 पार्षद और कांग्रेस के 7 पार्षद जीत गए। भाजपा के 14 और एक पार्षद अकाली दल का बना। मेयर के लिए सबसे बड़ी पार्टी भाजपा बनी। हालांकि इंडिया ब्लॉक के तहत आप-कांग्रेस ने मेयर चुनाव में गठबंधन कर लिया। जिसके बाद यहां कुलदीप कुमार आम आदमी पार्टी के मेयर चुने गए। देश भर में इंडिया ब्लॉक के आपस में मिलकर लड़ने और भाजपा को हराने का यह पहला चुनाव था।
फिर लोकसभा चुनाव में आप के समर्थन से कांग्रेस जीती। चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर 2014 और 2019 में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। दोनों बार दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों की हार हुई और भाजपा जीत गई। 2014 में कांग्रेस उम्मीदवार 1,21,720 यानी 26.84फीसदी वोट मिले थे। वहीं आप की गुल पनाग को 1,08,679 यानी 23.97फीसदी वोट मिले थे। मगर, इस सीट पर 191,362 यानी 42.20फीसदी वोट पाने वाली भाजपा की किरण खेर जीती। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पवन बंसल को 1,84,218 यानी 40.35फीसदी वोट मिले। वहीं आप उम्मीदवार हरमोहन धवन को 13,781 यानी सिर्फ 3.82फीसदी वोट मिले। कांग्रेस यह चुनाव भी हार गई। इसमें भाजपा की किरण खेर को 231,188 यानी 50.64फीसदी वोट मिले। इसके बाद 2024 में आप ने कांग्रेस को समर्थन किया। जिसमें कांग्रेस के मनीष तिवारी 216,657 यानी 48.22फीसदी वोट पाकर जीत गए। उनसे हारे भाजपा उम्मीदवार संजय टंडन को 214,153 यानी 47.67फीसदी वोट मिले। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 2014 के मुकाबले 21.38फीसदी और 2019 के मुकाबले 7.87फीसदी बढ़ गया था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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