
ग़ज़ल
शकूर अनवर
ये चमन अपना फ़ज़ा अपनी ये मंज़र अपना।
अब बहार आये न आये तो मुक़द्दर अपना।।
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ये ज़मीं अपनी हवा अपनी समंदर अपना।
वो फ़लक अपना सितारों का वो लश्कर अपना।।
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मैने और तुमने यहाॅं नाम लिखा था जिस पर।
वो यहीं होगा यहीं ढूॅंढिए पत्थर अपना।।
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हम उसी बाग़ में फूलों को तरस जाते हैं।
हमने सींचा है जिसे ख़ून पिलाकर अपना।।
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ऐसा लगता है मुहब्बत के परस्तार* हैं सब।
अपने ही शहर में चर्चा हुआ घर घर अपना।।
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हम किसी ग़ैर को रिशवत नहीं देते हैं कभी।
अपनी सरकार है सरकार का नौकर अपना।।
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जज़्बा ए शौक़े शहादत* भी है अपना “अनवर”।
तुम भी अपने हो लहू अपना है ख़जर अपना।।
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परस्तार* प्रशंसक
जज़्बा ए शौक़े शहादत* बलिदान होने की भावना
शकूर अनवर
mob. 9460851271

















