
-द ओपिनियन डेस्क-
अमेरिकी शाॅर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट पर देश में सियासी घमासान मच गया है। विपक्ष कांग्रेस केंद्र की भाजपा नीत सरकार खासकर पीएम नरेंद्र मोदी पर हमलावर है तो भाजपा भी पलटवार में लगी है। हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट में अडाणी समूह को निशाना बनया गया था और इस बार भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी की प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुज को निशाना बनाया गया है। उनका रिश्ता अडाणी समूह से जोड़ा गया है और इसी को लेकर अब सियासी घमासान और तेज हो गया है। हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट के समय से ही अडाणी समूह कांग्रेस खासकर राहुल गांधी के निशाने पर रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अडाणी समूह के गौतम अडाणी के साथ रिश्तों को लेकर भी सियासी हमले होते रहे हैं। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है। पूर्व में लगे आरोपों की
जांच भी हुई और ऐसा निष्कर्ष सामने नहीं आया कि अडाणी समूह पर अंगुली उठाई जाए। लेकिन जांच निष्कर्षों पर विश्वास भी राजनेता अपनी सहूलियत के अनुसार ही करते हैं। फिर एक बात और भी है-क्या अमेरिकी थिंक टैंक निष्पक्ष हैं और उनकी रिपोर्ट स्वतंत्र और तथ्यों पर आधारित हैं? यह फैसला करने का पैमाना किसी के पास खासकर विकासशील देशों का कम विकसित देशों के पास तो कतई नहीं है। क्योंकि ऐसी रिपोर्टें संबंधित देशों के रणनीतिक या राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए भी होती हैं। ऐसा अनेक बार हुआ है। सबसे बड़ा उदाहरण इराक है। उसके परमाणु हथियारों को लेकर कितने दावे किए गए। लेकिन क्या आज तक इराक से कोई परमाणु हथियार बरामद हुआ।
हिंडनबर्ग ने शनिवार को अपनी नई रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया कि उसकी रिपोर्ट में गौतम अडाणी की कंपनियों में गड़बड़ी के खुलासे के बाद भी सेबी की कार्रवाई नहीं किए जाने के पीछे माधबी का निहित स्वार्थ है। माधबी ने अपने पति धवल बुच के साथ संयुक्त बयान जारी कर हिंडनबर्ग के इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। लेकिन, पूरा विपक्ष हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर सरकार को घेरने में जुट गया है। अगले दो ढाई माह में चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में इन आरोपों की धार विपक्षी दल और तेज करने वाले हैं। वहीं, भाजपा भी कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियों के नेताओं के घेरने की तैयारी में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडाणी के बीच करीबी रिश्तों को लेकर बयानबाजी भी तेज होने के आसार हैं। और इन सब के पीछे रिपोर्ट कितनी खरी है, यह बात भी दब जाती है।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने इन्हीं गड़बड़ियों के उजागर होने के डर से अडानी मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच नहीं करवाई है। वह कहते है सेबी चीफ ने अभी तक इस्तीफा क्यों नहीं दिया। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे रिपोर्ट की संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी से जांच कराने पर जोर देते हैं। यही बात कांग्रेस के अन्य नेता कहते हैं। दरअसल, हिंडनबर्ग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में माधबी बुच और उनके पति धवल बुच पर आरोप लगाया है कि दोनों ने अडाणी ग्रुप में गुप्त निवेश करके मनी लॉन्ड्रिंग में उसकी मदद की है। हालांकि सेबी प्रमुख ने इन आरोपों का खंडन किया है। बुच दंपती ने कहा है कि हिंडनबर्ग ने उनके जिस निवेश की बात की है वो तो 2015 का है जब दोनों भारत में रह भी नहीं रहे थे। एक बात और दुनिया को अपने अनुसार चलाने वाले देश इस तरह की रिपोर्टों का एक रणनीतिक हथियार के रूप में उपयोग करते हैं। हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट आई और लाखों करोड़ रुपयों के शेयर डूब गए। निवेशकों को तगड़ा फटका लगा। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि ये रिपोर्ट देश में आर्थिक अराजकता फैलाने की कोशिश है। उन्होंने इसे हार के बाद विपक्ष की साजिश बताया। उन्होंने कहा कि यह देश को आर्थिक रूप से बर्बाद करने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में जो आरोप लगाए गए सेबी प्रमुख ने उसका जवाब दे दिया है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस हिंडनबर्ग के साथ मिलकर काम कर रही है। फिलहाल तो हालत यह है कि न सूत न कपास और जुलाहों में लठ्ठम लठ्ठा।