
अयोध्या नगरी की यादें __
-मनु वाशिष्ठ-

गंगा बड़ी न गोदावरी
तीरथ बड़ौ न प्रयाग
सबसे बड़ी अयोध्या नगरी
जहां राम लियो अवतार।
यह एक प्रचलित कहावत है, इससे ही जन मानस में रचे बसे प्रभु श्रीराम के लिए श्रद्धा प्रेम भाव और अयोध्या की महत्ता का पता चलता है। ऐसी सुंदर और पुण्यनगरी अयोध्या के दर्शन का सौभाग्य कुछ समय पहले प्राप्त हुआ तो मानो बहुप्रतीक्षित मन की मुराद पूरी हो गई। हम अपने कुछ मित्रों के साथ ट्रेन द्वारा फैजाबाद स्टेशन पहुंचे, योगीजी की कृपा से जिसका नाम पुनः अयोध्या कर दिया गया है। वहां से पुनः बस द्वारा अयोध्या (स्थल, जहां रामजन्म हुआ था ) पहुंचे।
पौराणिक रामायण मतानुसार, सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या नगरी रघुवंशी राजाओं की राजधानी, पुण्यनगरी की स्थापना सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज ने किया था। इसीलिए यह सूर्यवंश कहलाया और आगे चलकर इसी कुल में इक्ष्वाकु के वंशज भगवान श्री राम अवतरित हुए।
सूर्य प्रभु इस जगत के, हैं प्रत्यक्ष आधार।
उगते सूर्य को अर्घ्य दे, प्रकट करें आभार।।
सभी जानते हैं कि अयोध्या नगरी सप्त पुरियों में प्रथम स्थान पर है। श्री राम हर भारतीय के तन मन, मानस, दैनिक क्रिया कलापों, सांसों में रचे बसे हों, उसके लिए तो बस विश्वास और श्रद्धा भाव ही काफी है। घर की सुबह में, शिष्टाचार भेंट में, गलती अफसोस में जिनके नाम को लिया जाता है, उनकी महिमा अपरंपार है। प्रातः नहा धोकर प्रथम तो उस स्थान को देखने की प्रबल इच्छा थी, जहां पूरी दुनिया को आश्रय देने वाले, स्वयं टेंट में विराजित हैं।
राम, लखन, भरत, शत्रु ने झेला है वनवास।
बरसों रहे तिरपाल में,अब पूरन हुई है आस।

एक और बात ऐसी धार्मिक स्थल पर किसी गाइड की जरूरत महसूस नहीं होती, यहां तो बच्चा बच्चा गाइड है। (सारा सामान पहले ही रखवा लिया जाता है, लॉकर आदि उपलब्ध हैं) दर्शन के लिए जाते हुए कई घुमावदार जालीदार रास्ता बनाया हुआ था, बंदरों से सुरक्षा के लिए, क्योंकि वहां रामभक्त हनुमान जी यानि वानर सेना बड़ी संख्या में है। वहीं दूसरी ओर आतंकी गतिविधियों पर नजर के लिए सुरक्षा बल, कमांडो, महिला कमांडो तैनात हैं। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच, अपने आराध्य का दर्शन सौभाग्य प्राप्त हुआ। मन में एक कचोट सी थी, कब प्रभु अपने मंदिर में विराजेंगे। वह भी इसी वर्ष कोर्ट के फैसले के बाद 5 अगस्त 2020 को शिलान्यास भूमि पूजन प्रारंभ होकर पूरी होती दिख रही है। राम लला के दर्शन के बाद अयोध्या में और भी दर्शनीय स्थल हैं, वहां भी जाना हुआ। अभी तक यहां ज्यादा उन्नति समृद्धि जैसा कुछ दिखाई नहीं दिया। लेकिन धीरे धीरे योगी सरकार इसको पर्यटन के मानचित्र पर अंकित करती दिखाई दे रही है। काफी विकास कार्य किए जा रहे हैं। जब हम गए निर्माण कार्य चल रहा था, सरयू नदी पर घाट, सीढ़ियां बन कर तैयार हो गए थे कुछ बन रहे थे। देश के दूसरे हिस्सों से कनेक्टिविटी बेहतरी के लिए कार्य भी हो रहा है। लोगों को सुविधा के साथ रोजगार भी उपलब्ध होगा।

कनक भवन _ अयोध्या के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक जिसे माता कैकेयी ने सीता मैया को उपहार स्वरूप मुंह दिखाई में दिया था। यह कलात्मक दृष्टि में सबसे सुंदर है। कहते हैं यहां श्री राम और माता सीता रहते थे। यह अयोध्या के प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी मंदिर के पास ही स्थित है यह भवन अयोध्या का लोकप्रिय स्थान है, जहां पर मंदिर की वास्तुकला तथा भगवान श्री राम और माता सीता की सोने के मुकुट वाली प्रतिमाएं बहुत ही मनमोहक हैं। कहते हैं द्वापर में भगवान कृष्ण भी रुक्मणि जी के साथ यहां आए थे। इस मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार हो चुका है, जिसकी जानकारी यहां के प्रांगण में स्थित शिलालेख पर वर्णित है।
रामराम सब कोई कहे, दशरथ कहे न कोय।
एक बार दशरथ कहे, कोटि यज्ञ फल होय।।

दशरथ महल_ हनुमानगढ़ी से कुछ दूरी पर ही स्थित, सभी हिन्दुओं के लिए यह प्रसिद्ध सिद्ध तीर्थ स्थल है। मान्यता के अनुसार अयोध्या के चक्रवर्ती राजा दशरथ जी भगवान श्री राम के पिता ने, त्रेतायुग में इस महल की स्थापना की थी, जहां राजा दशरथ अपने परिवार के साथ रहते थे। चारों भाइयों का बचपन यहीं बीता, सोच कर ही मन आनंद से भर जाता है। बाद में कई बार इसका जीर्णोद्धार हुआ। इस महल के अंदर मंदिर भी मौजूद है, जिसमें भगवान श्री राम के साथ माता सीता तथा तीनों भाइयों की प्रतिमाएं हैं। इस महल की वास्तुकला भी देखने योग्य है।
हनुमानगढ़ी_ यह मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है तथा अयोध्या के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसमें मां अंजनी के साथ बाल रूप में इनकी पूजा होती है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यह भगवान हनुमान जी का मंदिर है। कहते हैं प्रभु श्रीराम ने अयोध्या की रक्षा के लिए भगवान हनुमान जी को इस जगह विराजमान रहने की आज्ञा दी।
राम की पौड़ी _ यह सरयू नदी के तट पर स्थित यह धार्मिक आस्था का प्रसिद्ध केंद्र है। पौराणिक कथाओं के अनुसार लक्ष्मण जी ने सभी तीर्थ स्थानों के भ्रमण की इच्छा जताई, तब भगवान श्रीराम ने सरयू नदी के तट पर इस पौड़ी की स्थापना की थी, कि संध्या के वक्त सभी तीर्थ यहां स्नान के लिए उपस्थित होंगे और जो भी उस समय यहां स्नान करेगा उसे सभी तीर्थ स्नान का पुण्य तथा पापों से मुक्ति मिलेगी।

अयोध्या नगरी को वास भलो, जहां पास बहें सरयू महारानी।
जो जन नहाय के ध्यान धरैं, बैकुंठ मिले तिनकूं रजधानी।।
वेद पुराण बखान करें, संत मुनि अरू ज्ञानी ध्यानी।
सरयू, यम दूतन टारत हैं, भव तारत हैं श्री रघुवर सीता महारानी।।
अयोध्या के प्रमुख घाटों में से एक गुप्तार घाट _ कहते हैं भगवान राम अपने पुत्रों लव कुश को राजपाट सौंपकर इसी स्थान पर गुप्त रूप से जल समाधि ले ब्रह्मलीन हो गए थे। यहां स्नान का बड़ा महात्म्य है, अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है। इसे बहुत पवित्र घाट माना जाता है। हमने भी सरयू नदी में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त किया। यहां दान पुण्य, गायों को चारा, श्राद्ध आदि भी करवाए जाते हैं।

मणि पर्वत_ जिसके बारे में कहा जाता है कि लक्ष्मण जी के मूर्छित हो जाने पर संजीवनी की तलाश में हनुमान जी पूरे पहाड़ को उठा लाए थे, उसी समय पहाड़ का एक छोटा टुकड़ा टूट कर अयोध्या में गिर गया था। इस पर्वत को उसी का हिस्सा माना जाता है। हालांकि यहां दर्शनीय ज्यादा कुछ नहीं है।देश के कोने कोने से, विदेश से लाई गई श्री राम नाम अंकित पूजित शिलाएं, कार्यशाला में रखी हुई थी, वहां निरंतर कार्य जारी है इनका उपयोग भी निर्माण कार्य में किया जाएगा। इसे भी देख अचम्भित हुए, अब तक थक चुके थे, पेट में चूहे कूद रहे थे और खाने की तलाश जारी थी। फिर एक छोटे से ढाबे पर बैठ गरम खाना बनवाया, ढाबे वाले ने भी बड़े प्रेम से खिलाया और हमारी भूख शांत की। यहां मार्केट इतना समृद्ध नहीं दिख रहा था या हो सकता है समयाभाव के कारण हम ही नहीं पहुंच पाए।
#त्रेता के ठाकुर मंदिर, कहते हैं यहां पर भगवान श्री राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया था।
अयोध्या में और भी कई दर्शनीय स्थल हैं, जो आपको सुकून देते हैं। “सीता की रसोई” यहां मां सीता खाना बनाती थीं। “नागेश्वर नाथ मंदिर” जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने करवाया था।“तुलसी चौरा” वह स्थान है जहां #तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना प्रारंभ की थी। प्रह्लाद घाट के पास #गुरुनानक जी भी आकर ठहरे थे। जैन धर्म, बौद्ध धर्म के प्राचीन और भी कई विशेष स्थान, अवशेष प्राप्त हैं। लेकिन समयाभाव के कारण इन सब से वंचित रहना पड़ा। हालांकि ये सारी जानकारी जहां हम रुके हुए थे वहीं सहयोगियों से ही प्राप्त हुई।
कर बद्ध करें प्रार्थना, अरज सुनो रघुराज।
धन्वंतरी आरोग्य दें, धन कुबेर यक्षराज।।
लाखों दीप प्रज्वलित करें, पूरी हुई है साध।
लगे,राम पधारे अयोध्या,जगमग बरसों बाद।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान

















