
-देवेन्द्र कुमार शर्मा-

जैसे जैसे मनुष्य विकास करता है प्रकृति, पर्यवारण और निरीह पक्षियों का विनाश होता है। इसका उदाहरण आपको कोटा में चंद्रेसल रोड पर मिल जाएगा।
चंद्रेसल रोड की बाईं तरफ सदियों से एक नाला बहता है। यह नाला कच्चा था और इसके दोनों और झाड़ियां और पेड़ थे। लेकिन इसका कच्चा होना ही पर्यावरण के अनुकूल था। नाले के किनारे के पेड और झाडियों में बया पक्षी के ढेरों घोंसले थे। झाड़ियों में जलमुर्गी रहती थीं और प्रजनन करती थीं। इस क्षेत्र में कई अन्य तरह के पक्षियों को बसेरा मिला हुआ था। इसी क्षेत्र में मगरमच्छ भी यहां पलते थे। लेकिन पिछले वर्ष विकास के नाम पर इस नाले के दोनों तरफ पत्थर की दीवार खड़ी कर के इसे पक्का बनाया गया। इस दीवार को बनाने के लिए सारी झाड़ियां और पेड़ काट दिए गए। इसका दुष्परिणाम देखिए अब यहां पर न कोई बया का घोंसला बचा और न कोई पक्षी।

अब भी नाले का वो भाग जो सड़क से दूर बहता है वह कच्चा है और प्राकृतिक छटा बिखेर रहा है।
इस में मुझे कुछ पक्षी दिखे और एक मगरमच्छ का बच्चा भी दिखा। पानी इस में अब भी बह रहा है और कल-कल ध्वनि पैदा कर रहा है। जो नाला सैकड़ों वर्षों से बिना किसी आपदा को पैदा किए बह रहा था उसके स्वरूप को नष्ट कर के किसी को क्या मिला यह एक विचारणीय प्रश्न है।

पर्यावरण को बचाने की बात आम जन और प्रकृति प्रेमी करते हैं लेकिन प्रशासन को इसकी कोई चिंता नहीं है। वास्तविकता यह है कि शहर के आसपास कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनकी झाडियों को काटा गया लेकिन यह नहीं देखा कि यह पर्यावरण के लिए कितनी मददगार हैं।
झाडियों की यह कटाई ज्यादातर नालों के किनारे की गई। इन्हीं जगह ऐसे पक्षी बसेरा करते थे जो हानिकारण कीट पतंगों का भक्षण कर मनुष्य के हित चिंतक थे। लेकिन मनुष्य ने इन हितचिंतकों को ही मिटा दिया। हाल यह है कि जो कीट पतंगे बगैर किसी मेहनत के साफ हो जाते थे उनके लिए रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है। इसका दुष्परिणाम भी हम भुगत रहे हैं।
(लेखक रेलवे के सेवानिवृत अधिकारी हैं और पर्यावरण, वन्य जीव एवं पक्षियों के अध्ययन के क्षेत्र में कार्यरत हैं)