पुरानों को कोई ठौर नहीं, अब एक नया और

-भाजपा की सांसद दीया कुमारी की श्रेय लूटने की बेकार सी कोशिशों के बीच नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने उदयपुर संभाग में कुंभलगढ़ में टाइगर रिजर्व बनाने को अपनी सैद्धांतिक सहमति दे दी है लेकिन इस बात को देखने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं की गई है कि रणथंभौर-सरिस्का नेशनल पार्क के अलावा राज्य में हाल के सालों में बनाए गए कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व, बूंदी के रामगढ़ और धौलपुर के टाइगर रिजर्व की क्या स्थिति है? क्या वहां बाघ बसाए जा चुके हैं और जंगल सफारी शुरू की जाकर वहां पर्यटन को बढ़ावा दिया जा चुका है? जवाब सिफ़र है।

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प्रतीकात्मक फोटो

कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व की नींव भी रणथम्भोर नेशनल पार्क के भरोसे ही रखी जा रही है क्योंकि यह कहा जा रहा है कि चूंकि रणथम्भोर नेशनल पार्क में वहां की क्षमताओं से कहीं अधिक बाघ-बाघिन हो गए हैं तो वहां से इन बाघों को कुंभलगढ़ में बसाकर यहां नए टाइगर रिजर्व को विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। ऐसी ही संभावनाओं के बीच तो पहले ही राजस्थान में कोटा, बूंदी और करौली के टाइगर रिजर्व विकसित कर दिए गए हैं जहां मौजूदा समय में क्या स्थिति है, इसे बताने की आवश्यकता नहीं है।

-कृष्ण बलदेव हाडा-

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कृष्ण बलदेव हाडा

अफ्रीकी देशों से लाए गए चीतों को बसाने के स्वर्णिम अवसर को खो चुके और लगातार अव्यवस्थाओं से घिरे रहे कोटा जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में आबाद किए गए बाघों और उनके शावकों के प्राणों की रक्षा करने में विफल रहने वाले राजस्थान में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने अब राज्य को उदयपुर संभाग के कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व के रूप में छठा नया टाइगर रिजर्व की सौगात देने जा रहा है और इसके लिए एनटीसीए ने सैद्धांतिक रूप से अपनी सहमति भी दे दी है।
इसके विपरीत हास्यास्पद स्थिति यह है कि देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए स्थापित किए गए टाइगर रिजर्व में से सवाई माधोपुर जिले के रणथम्भोर नेशनल पार्क और अलवर जिले के सरिस्का नेशनल पार्क को छोड़कर अन्य कभी कोई भी टाइगर रिजर्व पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल नहीं हुआ है जबकि वहां के बाघों की बात की जाए तो कोटा के मुकुंदरा हिल्स रिजर्व टाइगर रिजर्व की स्थिति तो सबसे अधिक बदतर है जहां वर्ष 2003 में 15 जुलाई को अंतिम बाघ ब्रोकन टेल की फ्रंटियर मेल से टकराने के कारण हुई मौत के उपरांत पिछले दशक में यहां बसाएं गए चार बाघों से तीन की मौत हो चुकी है और उनके दो शावक भी मारे जा चुके हैं। केवल एक बाघ बचा हुआ है जो पिछले दो सालों से भी अधिक समय से एकाकी जीवन जी रहा है।
हालांकि इस टाइगर का जोड़ा बनाने के लिए पिछले बुधवार को ही रणथम्भोर नेशनल पार्क की फलौदी रेंज से एक बाघिन को कोटा लाया जा चुका है लेकिन मुकुंदरा के बाघ-5 के साथ इस नई बाघिन एमपी-6 के जोड़ा बना लेने के बाद भी मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व बाघों की दृष्टि से आबाद हो पाएगा या देसी-विदेशी पर्यटक यहां खिचे चले आएंगे, इसकी संभावना अभी भी बिल्कुल शून्य ही है। हाडोती संभाग में बूंदी जिले के रामगढ़ विषधारी अभयारण्य को भी नेशनल पार्क का दर्जा दिया जा चुका है और वह राजस्थान का चौथा टाइगर रिजर्व बनाया गया था। अब वहां पर्यटन की संभावनाओं की बात करें तो करीब तीन महीने पहले सारी तैयारियों के साथ रामगढ़ टाइगर रिजर्व में जंगल सफारी शुरू की जानी थी लेकिन एक राज्य स्तर के मंत्री के वहां दौरा करने के अलावा अभी एक भी पर्यटक को जंगल सफारी के लिए नहीं ले जाया जा सका है।
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में तो हालत इससे भी बदतर है। वहां तो पिछले साल ही जंगल सफारी के लिए बकायदा न केवल सरकारी कागजों में रोड मेप बना दिया गया था बल्कि यहां पर्यटन की विभिन्न संभावनाओं के बारे में बढ़-चढ़कर के दावे तक कर दिए गए थे। कुछ साल पहले तक मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में चार बाघ-बाघिन आबाद थे, लेकिन वर्ष 2022 में तीन बाघों व शावकों भी मर चुकी है व एक बाघ बचा है जिसका जोड़ा बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है।
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को लेकर अकसर कोटा जिले की सांगोद विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक
भरत सिंह कुंदनपुर यह कहते रहे कि यह देश का एकमात्र “टाइगर रहित टाइगर रिजर्व” है। राज्य सरकार के वन्यजीवों और वनों के प्रति नकारात्मक रवैए के कारण ही श्री भरत सिंह ने हाल ही में राज्य के वाइल्ड़ लाइफ़ बॉर्ड़ की सदस्यता से अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भेज दिया था।
अब नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) कुंभलगढ़ में 2766 वर्ग किलोमीटर के ऐसे इलाके में टाइगर रिजर्व बनाने जा रहा है जहां वर्तमान में न तो पर्याप्त प्रे बेस मौजूद है और ना ही बाघों के शिकार करने की दृष्टि से उपर्युक्त ग्रासलैंड़ ही है। इसके अलावा अभयारण्य क्षेत्र में पहले से ही गांव बसे होने की समस्याओं से जूझ रहे अन्य टाइगर रिजर्व की तरह नए बनने जा रहे कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व में भी पहले से ही 20 से भी अधिक गांव मौजूद हैं जिनमें बड़ी संख्या में पशुपालक रहते हैं जिन्होंने मवेशी पाल रखे हैं और वे न केवल अभी यहां के जंगल के लिए एक बड़ा खतरा बने हुए हैं बल्कि आने वाले समय में यदि इन गांवों को विस्थापन के बिना बाघों को बसाया गया तो यह ग्रामीण बाघों के अस्तित्व के लिए भी खतरा बन सकते हैं।
कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व की नींव भी रणथम्भोर नेशनल पार्क के भरोसे ही रखी जा रही है क्योंकि यह कहा जा रहा है कि चूंकि रणथम्भोर नेशनल पार्क में वहां की क्षमताओं से कहीं अधिक बाघ-बाघिन हो गए हैं तो वहां से इन बाघों को कुंभलगढ़ में बसाकर यहां नए टाइगर रिजर्व को विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। ऐसी ही संभावनाओं के बीच तो पहले ही राजस्थान में कोटा, बूंदी और करौली के टाइगर रिजर्व विकसित कर दिए गए हैं जहां मौजूदा समय में क्या स्थिति है, इसे बताने की आवश्यकता नहीं है।
वैसे भी यह आरोप आमतौर पर लगते रहे हैं कि रणथम्भोर नेशनल पार्क का ट्यूरिज्म-होटल माफिया राजस्थान के किसी और अन्य हिस्से में बाघों को आबाद होने देने की स्थिति बनने ही नहीं देना चाहता क्योंकि इससे उनके अपने आर्थिक स्थिति पर गहरी चोट पहुंचने की भरपूर आशंका निश्चित रूप से मौजूद है।

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